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कालमाहात्म्य के अनुसार ‘व्यष्टि’ साधना के साथ ‘समष्टि’ साधना आवश्यक ! – श्री. अभिजीत देशमुख, हिन्दू जनजागृति समिति

समिति के इस शिविर से धर्माभिमानी हुए सक्रिय !

श्री. अभिजीत देशमुख तथा मार्गदर्शन करती हुई कु. वैभवी भोवर
श्री. अभिजीत देशमुख तथा मार्गदर्शन करती हुई कु. वैभवी भोवर

पिंपरी : यहां के बळीराज मंगल कार्यालय में १२ नवम्बर के दिन संपन्न हुए हिन्दू धर्माभिमानियों के शिविर में हिन्दू जनजागृति समिति के पुणे जिला समन्वयक श्री. अभिजीत देशमुख संबोधित कर रहे थे। अपने संबोधन में उन्होंने प्रतिपादित किया कि, ‘कालमाहात्म्य के अनुसार व्यष्टि साधना के साथ समष्टि साधना आवश्यक है। छत्रपति शिवाजी महाराज को भी श्री भवानीमाता, समर्थ रामदासस्वामी तथा संत तुकाराम महाराज का आशीर्वाद था, अतएव उनके लिए हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना करना संभव हुआ। व्यष्टि साधना कोई भी कार्य सिद्धि तक ले जाने का मूलभूत आधार है। साधना के कारण स्वयं में परिवर्तन होता है तथा उससे उस साधक के साथ उसके संपर्क में आनेवाले सभी लोगों को भी उसका लाभ होता है। हम सभी को ईश्वर के आशीर्वाद से ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना करने हेतु संगठितरूप से सक्रिय होना चाहिए !’

शिविर का सूत्रसंचलन श्री. अभिजीत कुलकर्णी ने किया। इस शिविर में पिंपरी-चिंचवड, भोर, जुन्नर, मंचर, पुणे शहर आदि स्थानों के कुल मिलाकर ५० से भी अधिक धर्माभिमानी सम्मिलित हुए थे।

समापन अवसर पर धर्माभिमानियोंद्वारा इस प्रकार मनोगत व्यक्त किया गया ….

१. श्री. युवराज पवळे – शिविर के समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि, अपना शुद्धीकरण हो रहा है ! हम नामजप, प्रार्थना, कृतज्ञता का उपयोग कर समष्टि साधना करेंगे।

२. श्री अविनाश देसले – ऐसा प्रतीत हुआ कि, शिविर के कारण नई उर्जा उत्पन्न हुई है !

३. श्री. अविनाश शेटे – सत्कर्म करने के लिए साधना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ! धर्म के लिए प्रतिदिन १ घंटा व्यतीत करूंगा।

४. श्री. सर्जेराव ढोकरे – ऐसा प्रतीत हुआ कि, शिविर के स्थल पर श्रीकृष्ण का अस्तित्व है !

५. श्री. अनिकेत हराळे – यह बात ध्यान में आयी कि, स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया हमारे लिए कितनी अनिवार्य है !

६. श्री. हरिप्रसाद दामले – नामसाधना में वृद्धि, धर्मशिक्षण वर्ग में नियमितता तथा स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया का प्रारंभ ये ३ बातें करने का निश्चय किया है ! (शिविर के स्थान पर धर्माभिमानियों को आध्यात्मिक बातें ध्यान में आना, यह तथाकथित बुद्धिप्रामाण्यवादियों के मुंह पर एक तमाचा ही है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

शिविर की विशेष घटनाएं

१. शिविर का उद्देश्य बताने के पश्चात धर्माभिमानियों ने साधना के कारण उनमें कैसा परिवर्तन हुआ, यह उत्स्फूर्त रूप से बताया !

२. स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया का सत्र अधिकांश धर्माभिमानियों को नया था; फिर भी उसकी प्रत्यक्ष कृति हेतु उन्होंने अपने दोष प्रांजलता से कथन किये !

३. प्रायोगिक सत्र में किसी प्रकार का पूर्वानुभव न होते हुए भी किया गया ‘आंदोलन’ का अभ्यास विशेष उल्लेखनिय सिद्ध हुआ !

इस प्रकार से संपन्न हुआ धर्माभिमानियों का शिविर ….

१. शिविर के समय भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रार्थना की गई। तदनंतर प्रा. श्रीकांत बोराटे ने शिविर का उद्देश्य बताया।

२. ६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त श्री. अभिजीत देशमुख ने धर्माभिमानियों का मार्गदर्शन किया।

३. स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया करते समय स्वयंसूचना किस प्रकार देनी चाहिए, प्रसंग के साथ इसका सोदाहरण मार्गदर्शन ६५ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. वैभवी भोवर ने किया।

४. ‘राष्ट्रीय हिन्दू आंदोलन’ की सिद्धता का प्रायोगिक अभ्यास किया गया। प्रत्यक्ष आंदोलन करना, उस समय कोई भी अनुचित प्रकार घटने पर अथवा व्यत्यय आने पर क्या करें, आंदोलन की प्रसिद्धि करना तथा जिलाधिकारियों से प्रत्यक्ष भेंट कर ज्ञापन प्रस्तुत करना आदि बातें इस प्रयोग में अंतर्भूत थीं।

५. प्रायोगिक आंदोलन के समय जो गलतियां हुर्इं, उन पर क्या उपाय कर सकते हैं, समिति के सर्वश्री अभिजीत देशमुख तथा कृष्णाजी पाटिल ने इस संदर्भ में मार्गदर्शन किया।

६. तदनंतर धर्माभिमानियों की गुटचर्चा हुई। उसमें सभी धर्माभिमानियों ने सहभाग लेकर प्रत्यक्ष साधना तथा सेवाओं का नियोजन किया।

७. कृतज्ञतापूर्वक कहे गये सद्गुरु के श्लोक से शिविर का समापन हुआ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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