हिमाचल प्रदेश : जब भी यहां समस्या आने वाली होती है उससे पहले यहां के मंदिर की मूर्ति से आंसू बहने लगते हैं। लोग समझते की कोई परेशानी आने वाली है । हिमाचल प्रदेश के चप्पे-चप्पे पर देवी देवताओं का वास है।
देवभूमि के नाम से विख्यात इस प्रदेश में देवी देवताओं से कई रोचक बातें भी जुड़ी हुई हैं। ऐसी ही एक रोचक कड़ी शक्तिपीठों में से एक बज्रेश्वरी देवी माता मंदिर कांगड़ा से भी जुड़ी है। इस मंदिर में देवी के साथ भगवान भैरव की भी एक चमत्कारी मूर्ति है। कहते हैं जब भी इस जगह पर कोई समस्या आने वाली होती है तो भगवान भैरव की मूर्ति से आंसू और पसीना बहने लगता है। स्थानीय लोगों के अनुसार, यहां पर ये चमत्कार कई बार देखा है।
मंदिर परिसर में ही भगवान लाल भैरव का भी मंदिर है। यहां विराजे भगवान लाल भैरव की यह मूर्ति करीब पांच हजार वर्ष पुरानी बताई जाती है। कहते हैं कि,जब भी कांगड़ा पर कोई समस्या आने वाली होती है तो इस मूर्ति की आंखों से आंसू और शरीर से पसीना निकलने लगता है। तब मंदिर के पुजारी विशाल हवन का आयोजन कर मां से आने वाली आपदा को टालने का निवेदन करते हैं और यह बज्रेश्वरी शक्तिपीठ का चमत्कार और महिमा ही है कि आने वाली हर आपदा मां के आशीर्वाद से टल जाती है। बताया जाता है कि ऐसा यहां कई बार हुआ है।।
स्थानीय लोगों के अनुसार, भैरव की यह मूर्ति बहुत पुरानी है। कहते हैं कि वर्ष १९७६-७७ में इस मूर्ति में आंसू व शरीर से पसीना निकला था। उस समय कांगड़ा बाजार में भीषण अग्निकांड हुआ था। काफी दुकानें जल गई थीं। उसके बाद से यहां ऐसी विपत्ति टालने के लिए हर वर्ष नवंबर व दिसंबर के मध्य में भैरव जयंती मनाई जाती है। उस दौरान यहां पाठ व हवन होता है। यह मूर्ति मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही बाईं तरफ है। यहां गिरा था देवी सती का दाहिना वक्ष।
कांगड़ा का बज्रेश्वरी शक्तिपीठ देवी के ५१ शक्तिपीठों में से मां की वह शक्तिपीठ हैं जहां सती का दाहिना वक्ष गिरा था और जहां तीन धर्मों के प्रतीक के रूप में मां की तीन पिंडियों की पूजा होती है। मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित पहली और मुख्य पिंडी मां बज्रेश्वरी की है। दूसरी मां भद्रकाली और तीसरी और सबसे छोटी पिंडी मां एकादशी की है।
स्तोत्र : जागरण