स्वयं को इस्लामिक स्टेट कहने वाले चरमपंथी संगठन को मूसल शहर से निकाल देने के लिए इराक़ी सेना ने ६ सप्ताह पहले अभियान छेड़ा था। परंतु अब भी उसे शहर के पूर्व के कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में ही सफलता मिली है। बीबीसी संवाददाता रिचर्ड गैल्पिन ने वहां के गांवों में उन ईसाइयों से बात की, जो किसी तरह बच गए और अपनी ज़िंदगी पुनः शुरू करने का प्रयास में हैं।
आईएस के हमले में नष्ट हो चुके एक ऐतिहासिक मकान को देख कर करमलिस गांव की ईसाई नागरिक बसमा अल-सऊर गुस्से से कहती हैं, “वे लोग शैतान के पोते हैं” । वे अपनी मां के साथ सांता बारबरा चर्च गई थीं। वे पास के एक दूसरे ईसाई गांव में जला दिए गए मकानों से बची-खुची कुछ चीजें चुन कर ले आई थीं। इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों ने करमलिस की तरह ही दूसरे गांव के बाशिंदों से भी कह दिया था कि वे मुसलमान बन जाएं या गांव छोड़ कर चले जाएं। लगभग सभी लोग गांव छोड़ पास के शहर इरबिल चले गए, जहां कुर्दों का बहुमत है।
फ़ादर पॉल थाबेत ने कहा कि, जब तक हमले के ज़िम्मेदार लोगों को सज़ा नहीं दी जाती, वो उन्हें क्षमा नहीं कर सकते। उन्हें शक है कि, स्थानीय सुन्नी मुसलमान आईएस के समर्थक हैं या वे उसमें शामिल हो सकते हैं। उन्हें यह आशंका भी है कि बंदूकधारी अब भी कहीं छिपे हो सकते हैं।
स्त्रोत : बीबीसी