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भारत को पुनर्वैभव प्राप्त कर देने के लिए अपनी संस्कृति के अनुसार आचरण करें ! – श्री. प्रवीण नाईक, हिन्दू जनजागृति समिति

संविधान दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम

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पुणे : विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत में युवकों की संख्या सर्वाधिक है, इसलिए समाज को आगे ले जाने का दायित्व भी उन्हीं का ही है ! अतः युवकों ने भारतीय संस्कृति का स्वीकार करना चाहिए। पाश्‍चात्त्य नहीं, अपितु भारतीय संस्कृति ही मनुष्य को आनंद प्राप्त करवा सकती है। युवकों में भारत को पुनर्वैभव प्राप्त करा देने की क्षमता है, यह ध्यान में लेकर युवकों ने भारतीय संस्कृति के अनुसार आचरण करना चाहिए। हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. प्रवीण नाईक ने ऐसा प्रतिपादित किया।

मार्गदर्शन करते हुए श्री. प्रवीण नाईक
मार्गदर्शन करते हुए श्री. प्रवीण नाईक

वडगाव बुद्रुक के ‘सिंहगढ कॉलेज ऑफ फार्मसी’ में २ दिसंबर को संविधान दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में वे बोल रहे थे।

इस अवसर पर ‘सिंहगढ कॉलेज ऑफ फार्मसी’ के प्राचार्य डॉ. गुजर, ‘सिंहगढ इन्स्टिट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल सायन्सेस’ के प्राचार्य डॉ. काणे, प्राध्यापक श्री. हेमंत रणपिसे, हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. कृष्णाजी पाटिल आदि मान्यवर उपस्थित थे। कार्यक्रम के लिए महाविद्यालय के १०० से भी अधिक छात्र एवं अध्यापक उपस्थित थे।

श्री. नाईक ने आगे कहा कि, देश एवं स्वयं की उन्नति के लिए लगाए गए बंधन अर्थात संविधान ! युवकों को अपने निजी जीवन का विचार करने के साथ देश एवं समाज की उन्नति का भी विचार करना आवश्यक है। विश्व के अनेक देश आयुर्वेद एवं संस्कृत भाषा का अभ्यास करने लगे हैं। इसलिए भारतीय संस्कृति को संजोना एवं पुनर्जिवित करना अब केवल युवकों के हाथ में है !

युवकों, भारतीय संस्कृति को संजो कर उसकी रक्षा करें ! – प्राचार्य डॉ. गुजर

२ दिसंबर प्रदूषण नियंत्रण दिवस है; परंतु समाज का वैचारिक प्रदूषण दूर करने हेतु विशिष्ट प्रबोधन करना महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है। यदि युवकों को उचित समय पर उचित विचार मिले, तभी वे उज्जवल भविष्य की ओर मार्गक्रमण कर सकते हैं। ऐसा नहीं कि विदेशियों का सिक्का रहनेवाली हर वस्तु अच्छी है, यह ध्यान में रख कर भारतीय संस्कृति को संजो कर उसकी रक्षा करनी चाहिए। संविधान केवल कंठस्थ करने के लिए नहीं है, अपितु उसे आचरण में लाना चाहिए। चलचित्र गृहों में राष्ट्रगीत लगाया जाना चाहिए, ऐसा न्यायालय को बताना पडता है, इस संदर्भ में भारतियों ने आत्मपरीक्षण करना आवश्यक है !

उपस्थित अध्यापक वर्ग, मान्यवर एवं छात्र
उपस्थित अध्यापक वर्ग, मान्यवर एवं छात्र
प्रदर्शनी देखते हुए छात्र
प्रदर्शनी देखते हुए छात्र

क्षणिकाएं

१. कार्यक्रम के आरंभ में कयपंजी से दीपप्रज्वलन किया गया।

२. परीक्षा की कालावधि होने से छात्रों के लिए कार्यक्रम में आना ऐच्छिक रखा था, फिर भी व्याख्यान के लिए छात्र भारी संख्या में उपस्थित थे !

३. कार्यक्रम स्थल पर क्रांतिकारियों की जानकारी देनेवाली चित्रप्रदर्शनी भी लगाई गई थी। महाविद्यालय के १४० विद्यार्थियों ने इस का लाभ लिया।

प्रतिक्रिया

प्रा. हेमंत रणपिसे – छात्रों में राष्ट्रभक्ति एवं राष्ट्रप्रेम उत्पन्न होने हेतु एवं क्रांतिकारकों की जीवनी से देशसेवा की प्रेरणा लेने हेतु ऐसा व्याख्यान एवं प्रदर्शन सर्वत्र होना आवश्यक है !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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