उज्जैन (मध्यप्रदेश) – अंग्रेजों द्वारा भारत की सर्वश्रेष्ठ गुरुकुलव्यवस्था नष्ट कर स्थापित की गई शिक्षाव्यवस्था ने भारतियों में अपने ही संस्कृति के विषय में तिरस्कार की भावना उत्पन्न की । इसलिए यहां के युवकों को प्रत्येक विदेशी वस्तु के विषय में प्रतिष्ठा प्रतीत होने लगी । आज भारतीय युवक पाश्चात्त्य संस्कृति के मृगजल में दौडते समय विदेशी लोग शांति ढूंढने हेतु भारत की ओर आ रहे हैं । पाश्चात्त्य संस्कृति की निरर्थकता ज्ञात होने हेतु युवकों को धर्र्माfशक्षा ग्रहण करनी चाहिए । हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. आनंद जाखोटिया ने ऐसा प्रतिपादित किया । यहां के प्रा. राहुल अंजाना द्वारा उनके घर ६ दिसंबर को आयोजित एक कार्यक्रम में वे बोल रहे थे ।
श्री. जाखोटिया ने आगे कहा कि अपने ऋषिमुनियों ने मानवजाति के कल्याण के लिए इतना शोधन किया; परंतु उस पर ‘पेटंट’ लेकर कभी अपना अधिकार प्रस्थापित नहीं किया । आज विज्ञान ने कितनी भी उन्नति की हो, परंतु सच्चा सुखी एवं समृद्ध जीवन अपने दादाजी की पीढी का ही था; क्योंकि वह पीढी धर्माचरण करनेवाली थी । धर्म द्वारा शरीर, मन, बुद्धि एवं आत्मा इन सभी के आरोग्य का विचार कर मनुष्य की जीवनशैली निर्धारित की, जबकि विज्ञान आज यहां तक पहुंचा ही नहीं है । इसलिए हमें आज पुनः एक बार ऋषिमुनियों द्वारा नियोजित धर्मनियमों का आचरण करना चाहिए । इस धर्माचरण से ही भारत को पुनः वैभव के दिन आएंगे ।
क्षणिकाएं
१. श्री. राहुल अंजाना ने उज्जैन कुंभ में सनातन संस्था की धर्मशिक्षा प्रदर्शनी का भ्रमण किया था । तदुपरांत उन्होंने मासिक सनातन प्रभात भी आरंभ किया । धर्मशिक्षा के विषय में अन्य लोगों को जानकारी हो, इस हेतु उन्होंने इस बैठक का दायित्व लेकर आयोजन किेया ।
२. इस स्थान पर सनातन संस्था द्वारा प्रकाशित विविध विषयों पर ग्रंथ प्रदर्शनी भी लगाई गई थी ।
३. इस अवसर पर उपस्थित लोगों को हिन्दू धर्म का महत्त्व स्पष्ट करनेवाले कुछ चलचित्र भी दर्शाए गए ।
४. इस अवसर पर उपस्थित युवकों ने जिज्ञासु के रूप मे प्रश्न पूछ कर उनकी शंकाओं का निवारण करा लिया ।
५. इस बैठक में उपस्थित प्रा. सुजीत बडोदिया ने कहा, कि हमें हमारे दादाजी से धर्माचरण की घूटी मिली; परंतु आज मोबाईल-टिवी में लिप्त युवकों को धर्माचरण की कुछ जानकारी नहीं, इसकी चिंता प्रतीत हो रही थी; परंतु इस कार्यक्रम के उपरांत यह चिंता बंद हो गई ।