आश्विन शुक्लपक्ष अष्टमी, कलियुग वर्ष ५११६
जम्मू – मंदिरों के शहर जम्मू की ऊंची पहाड़ी पर स्थित महामाया माता के मंदिर में पिछले २६ साल से अखंड ज्योति जल रही है। यहां साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी रहती है। नवरात्र में तो पूरी पहाड़ी मां के जयकारों से गूंज रही होती है।
सरकार की मदद के बिना मंदिर प्रबंधन हर संभव सुविधा मुहैया करवा रहा है। रविवार और मंगलवार को श्रद्धालुओं के लिए लंगर लगाया जाता है। नवरात्र में दुर्गा सप्तसती का पाठ व हवन यज्ञ होता है। बाहु फोर्ट से यह मंदिर चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। घने जंगल के बीच स्थित महामाया मंदिर तक पहुंचने के लिए बाइपास मार्ग से रास्ता है। जम्मूवासियों में इस मंदिर को लेकर काफी आस्था है। मंदिर के पुजारी सुभाष चंद्र ने बताया कि नवरात्र के दौरान यहां श्रद्धालुओं का तांता रहता है। आम दिनों में भी श्रद्धालुओं की चहल-पहल रहती है। पास ही एक मंदिर महात्मा शंकर गिरि जी ने बनवाया है जहां माता महाकाली की मूर्ति प्रतिष्ठापित की है। माता महामाया दरबार के भीतरी भाग को रंगदार शीशों व अन्य देवी-देवताओं के चित्रों से सजाया गया है। माता की पवित्र अखंड ज्योति दिन-रात जलती रहती है। यह ज्योति माता के एक भक्त ने वर्ष १९८८ में स्थापित की थी। इसके अलावा धूप और फूलों की सुंगध से माता का दरबार महक रहा होता है।
१९८६ में मंदिर का हुआ पुणर्निर्माण १९८६ई में भारी वर्षा के कारण महामाया का मंदिर गिर गया। इस दौरान केवल माता की मूर्ति तथा मोहरे ही बाकी रह गए। उन्हीं दिनों तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ने इस इलाके का दौरा किया। माता की मूर्ति के दर्शन किए और मंदिर निर्माण करवाया। उन्होंने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए बाईपास से छोटी सड़क मंदिर तक बनवाई है। मंदिर के चारों तरफ पौधे लगवा कर क्षेत्र को और सुंदर बना दिया। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर में एक बड़े हॉल का भी निर्माण किया गया है।
ऐसा विश्वास है कि सैकड़ों साल पहले यहां धारा नगरी समृद्ध राज्य था। उस जमाने में भी महामाया का मंदिर इसी स्थान पर स्थित बताया जाता है। विभिन्न कारणों से धारा नगरी के विध्वंस होने के बाद यह मूर्ति सैकड़ों वषरें तक तवी किनारे के जंगलों में पड़ी रही। जब गुलाब सिंह जम्मू-कश्मीर के महाराजा बने तो उन्होंने जम्मू के आसपास कई मंदिरों, किलों तथा भवनों का निर्माण करवाया। कहा जाता है कि देवी महामाया ने महाराजा को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि मेरी मूर्ति तवी नदी के किनारे कई सौ साल से पड़ी हुई है। उसे वहां से उठाकर मंदिर में स्थापित करो। सुबह होते ही महाराज अपने दरबारियों और सिपाहियों के साथ मूर्ति की तलाश में निकल पड़े। तवी नदी के किनारे जंगल का चप्पा-चप्पा छान मारा परंतु मूर्ति न मिली। सभी थक हार कर महलों को लौट आएं। महाराजा परेशान थे कि क्या किया जाए। कुछ दिन बीतने पर देवी महामाया ने फिर स्वप्न में उन्हें दर्शन दिए और मूर्ति की तलाश करने को कहा। माता ने उनको निश्चित स्थान बता दिया।
माता के आदेशानुसार महाराजा ने मूर्ति की तलाश करके उसे मंदिर में प्रतिष्ठापित करवाया।
पौराणिक कथा
खजूरिया बिरादरी कर रही मंदिर का रखरखाव। खजूरिया बिरादरी चार पीढि़यों से मंदिर का रखरखाव का जिम्मा संभाले हुए है। मंदिर के मुख्य पुजारी सुभाष चंद्र ने बताया कि उनके पूर्वज ही मंदिर में पुजारी का काम करते आ रहे हैं। घने जंगल के बीच होने के कारण यहां श्रद्धालु कम आते हैं परंतु नवरात्र में भक्तों का तांता लगा रहता है। नवरात्र में दुर्गा पाठ व हवन-यज्ञ किया जा रहा है। श्रद्धालुओं के लिए लंगर लगाया जाएगा। मंदिर में चढ़ने वाली राशि मंदिर विकास पर ही खर्च कर दी जाती है।
स्त्रोत : जगारण