जीवती की आयु उस समय केवल १४ वर्ष थी, जिस रात उसे एक अनजान शख्स से ब्याह करने के लिए ले जाया गया। उसके साथ ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जीवती के परिजनों ने ब्याह करने वाले व्यक्ती से १००० अमेरिकी डॉलर का कर्ज लिया था। जीवती की मां अमेरी काशी कोहली को यकीन है कि उनकी बेटी को शादी के लिए नहीं अपितु ‘कभी खत्म नहीं होने वाले’ कर्ज की वसूली के लिए ले जाया गया।
अमेरी कहती हैं कि जब वह और उनके पति यहां काम करने आए थे तब उन्होंने जमींदार से तकरीबन ५०० अमेरिकी डॉलर का कर्ज लिया था। लेकिन वह फिर हाथ झटकते हुए यह दावा भी करती हैं कि उन्होंने कर्जा चुका दिया है।
बेटियों को समझा जाता है संपत्ति
दक्षिणी पाकिस्तान के लिहाज में यह आम बात है। मामूली कर्ज की रकम धीरे-धीरे नामुमकिन रकमों में तब्दील होती जाती है और चुकाई गई रकम कभी घटती ही नहीं। यहां अमेरी जैसी औरतों और उनकी बेटियों को संपत्ति समझा जाता है। इन्हें कभी कर्ज के भुगतान के रूप में ले लिया जाता है तो कभी झगड़े निपटाने की खातिर। बदला लेना हो या फिर जमींदार द्वारा दी गई मजदूर को सजा हो, इनका उपयोग होता रहता है। यहां तक कि कभी-कभी तो मां-बाप खुद ही ‘कभी खत्म नहीं होने वाले कर्ज’ के खात्मे के लिए अपनी बेटी देने की पेशकश कर देते हैं !
पुरुषों के लिए महिलाएं किसी ट्रॉफी की तरह
यहां पुरुषों के लिए महिलाएं किसी ट्रॉफी की तरह हैं। वे उनपर कब्जा जमाने में अपनी शान समझते हैं। सबसे सुंदर, सबसे छोटी, कम उम्र की और सबसे ज्यादा दब्बू किस्म की लड़कियों को चुनते हैं। यहां तक कि कई बार तो उनको अपनी दूसरी पत्नी के तौर पर रख लेते हैं ताकि उनके घर की देखभाल हो सके। कई पुरुष उनको वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेल देते हैं ताकि उनको पैसे कमाकर दे सकें। जबकि कुछ लोग इन लड़कियों को उठा ले जाते हैं क्योंकि वह अपना बाहुबल जताना चाहते हैं।
मूल रूप में हिंदू अमेरी ने बताया कि वह पुलिस और न्यायालय के पास कई बार गईं लेकिन कोई भी उनकी व्यथा सुनने को तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि जमींदार ने उनकी बेटी को जबरन इस्लाम कबूल कराया और उनकी बेटी को बतौर दूसरी बीवी ले गया। जमींदार ने अमेरी को बताया कि उसकी लडकी ने इस्लाम कबूल कर लिया है और अब वह उसे कभी वापस नहीं पा सकेंगी।
२० लाख से अधिक पाकिस्तानी आधुनिक गुलाम
२०१६ के ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के अनुसार, २० लाख से अधिक पाकिस्तानी आधुनिक गुलाम की तरह रहते हैं। लोगों को गुलाम बनाकर रखने के मामले में पाकिस्तान आज भी दुनिया के मुल्कों में तीसरे स्थान पर है। लोगों को खेत-मजदूर बनाकर रखा जाता है। कुछ को ईंटों के भट्टे पर तो कुछ को घरेलू नौकर बना दिया जाता है। इन्हें मारा-पीटा जाता है तो कभी-कभी इन ‘गुलामों’ को जंजीरों से जकड़कर रखा जाता है ताकि वह भाग न जाएं।
ग्रीन रूरल डेवलपमेंट आॅर्गनाइजेशन से जुड़े गुलाम हैदर की मानें तो गुलाम बनाकर रखे गए लोगों के पास कोई अधिकार नहीं होते और उनकी बीवियों, बेटियों पर घात लगाना सबसे आसान होता है। गुलाम की संस्था पाकिस्तान में बंधुआ मजदूरों को आजाद कराने के मकसद से काम रही है।
साउथ एशिया पार्टनरशिप आॅर्गनइजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में हर वर्ष लगभग १ हजार हिंदू और ईसाई लड़कियों(जिनमें से ज़्यादातर नाबालिग होती हैं) को उनके घरों से निकाल दिया जाता है। उन्हें मुसलमान बनाया जाता है और उनसे शादी कर ली जाती है। हैदर कहते हैं कि सुंदर हिंदू या ईसाई लड़कियों का ही चुनाव कर उनको मुस्लिम बनाया जाता है।
दक्षिण सिंध प्रांत में गर्मी से बचने के लिए लोग अमूमन घर के बाहर सोते हैं। जीवती भी सोई हुई थी। सुबह परिजन उठे तो उन्हें पता चला कि जीवती गायब थी। उसकी मां कहती हैं कि किसी को आहट तक नहीं नहीं हुई। इसके बाद परिवार ने कार्यकर्ता वीरो कोहली से मदद की गुहार की, ताकि लड़की को आज़ाद कराया जा सके।
वीरो का अमेरी कोहली के परिवार से कोई रिश्ता नहीं है। वह खुद भी गुलाम के रूप में पैदा हुई थीं। वर्ष १999 में बंधुआ मज़दूरी से आज़ाद हो जाने के बाद उन्होंने अपना जीवन ताकतवर ज़मींदारों को चुनौती देने के लिए समर्पित कर दिया। वह अबतक हजारों परिवारों को बंधुआ मजदूरी से निजात दिला चुकी हैं।
‘वे मुझे मार डालना चाहते हैं लेकिन…’
पुरुष प्रधान संस्कृति वाले मुल्क में वीरो उनके ही खिलाफ खड़ी थीं इसलिए यह पुरुषों को फूटी आंख नहीं भाता। वीरो का कहना है कि मैं जानती हूं कि वे मुझे मार डालना चाहते हैं लेकिन मैं अपनी लड़ाई बंद नहीं करूंगी। जीवती को ढूंढने के लिए पांच महीने पहले वीरो अमेरी को साथ लेकर पुलिस स्टेशन ले गईं थी। पुलिस वालों ने कहा कि जीवती अपनी मर्जी से घर से गई है।
वीरो ने बताया कि, ‘मैंने उनसे कहा कि अगर वह मर्जी से गई है तो मुझे और जीवती की मां को उससे बात करने दो लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया।’
इसके बाद जीवती से संपर्क कराने के स्थान पर पुलिसवालों ने उस शख्स हामिद ब्रोही को बुलवाया जो कि अमेरी के मुताबिक उसकी बेटी ले गया था। वीरो बताती हैं कि हामिद अकेला आया था। वह जीवती को नहीं लाया। वह बोला कि जीवती कर्ज लिए गए १ लाख रुपयों का भुगतान है जो कि उसकी मां ने लिया था।
वीरो उसके बाद अक्सर पुलिस स्टेशन पहुंच जाती थीं लेकिन पुलिस अधिकारी अकील अहमद उसे देखकर बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से पर काबू करते और इसे फाइलों के ढेर में छिपाते थे। आखिरकार, उन्होंने एक दिन उसी ढेर में से एक ऐफिडेविड निकालकर वीरो को दिखाया। इसमें लिखा था कि जीवती, जिसे धर्म परिवर्तन के बाद फातिमा के नाम से जाना जाता है, ने अपनी मर्जी से इस्लाम कबूल किया था, अपनी मर्जी से हामिद से शादी की थी।
धर्म परिवर्तन और शादी तक रखते हैं छिपाकर
उसमें यह भी लिखा था कि वह अपनी मां से इसलिए नहीं मिल सकती है क्योंकि अब वह मुसलमान है और उसका मूल परिवार हिंदू था। हिंदू कार्यकर्ताओं की मानें तो इन लड़कियों को उठा ले जाने के बाद छिपाकर तब तक रखा जाता है जब तक उनका जबरन धर्म परिवर्तन और शादी न करा दी जए।
आखिरकार, दबाव में पुलिस को मशीनगन से लैस एक जीप में वीरो और एक विदेश पत्रकार को जीवती के पास ले जाना पड़ा। जीवती की मां पुलिस का सामना करने से डर रही थीं इसलिए वह नहीं गईं। वहां हामिद ब्रोही मिला, जो कि शक्ल से ही चिड़चिड़ा दिखने वाला था। उसकी बारीक सी मूंछ थी। उसने पुलिस वाले का स्वागत गले लगाकर किया। पुलिस स्टेशन में किए गए दावे के ठीक उलट उसने कह दिया कि जीवती को कर्जे के भुगतान के तौर पर नहीं उठाया गया था।
जीवती अंदर ही जमीन पर बिछे एक गद्दे पर बैठी थी। उसके सिर पर काले रंगा का शॉल लिपटा हुआ था। आंखों पर मेकअप और होठों पर लाल रंग की लिपस्टिक की मोटी परत थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी बच्ची की मां ने मेकअप किट से अपनी बेटी का मेकअप किया हो या फिर लड़की जानबूझकर अपनी उम्र ज्यादा दिखाने की कोशिश कर रही हो।
हालांकि, वह जरा भी डरी नहीं लग रही थी लेकिन उसकी आंखे उस दरवाजे पर टिकी थीं जहां उसका पति लगातार मंडरा रहा था। जब वह बोली तो साफ लगा कि उससे ऐसा बुलवाने ने लिए लगातार रियाज कराया गया हो।
जीवती ने अपने शौहर को संबोधित करते हुए कहा, ‘मैंने उनसे शादी की, क्योंकि मैं ऐसा चाहती थी। मैंने खुद उनसे कहा कि हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं। हमें शादी कर लेनी चाहिए। फिर उन्होंने कहा कि चलो शादी कर लेते हैं और हमने हां कह दी।’
जीवती ने इस बात को नकार दिया कि शादी के बाद उसने अपनी मां को नहीं देखा है। जब उससे पूछा गया कि आखिरी बार मां को कब देखा था तो वह नहीं बता पाई। मां से जुड़े अन्य सवालों पर भी वह खामोश रही। उसने कहा कि कोर्ट में दिए गए ऐफिडेविट के बारे में वह नहीं जानती। अगले दिन वहां पहुंचे दोनों लोग(वीरो और विदेशी पत्रकार) बिना पुलिस की गाड़ी के लौट जाते हैं।
स्तोत्र : नवभारत टाइम्स