भोपाल में धर्मरक्षा संगठन की ओर से ‘द्वितीय हिन्दू अधिवेशन’ का आयोजन !
भोपाल (मध्यप्रदेश) : जब धर्म को ग्लानि आती है, तब ईश्वर अवतार धारण करता है। धर्म-अधर्म की लडाई अभी भी चल रही है। हिन्दुओं को ‘हिन्दू’ शब्द का अर्थ भी ज्ञात नहीं है, तो वे तपश्चर्या कैसे करेंगे ? भगवान का धर्मसंस्थापना का कार्य चल रहा है। यह जान कर केवल भावनात्मक कार्य न करते हुए एक तपश्चर्या एवं धर्मकार्य के रूप में समर्पित भाव से कार्य करना चाहिये। छत्रपति शिवाजी महाराज समान ‘यह स्वराज्य होना चाहिये, यह ईश्वर की इच्छा’, ऐसा भाव रखने पर अवश्य सफलता मिलेगी। रावण के विरोध में युद्ध करने से पूर्व साक्षात प्रभु श्रीरामचंद्रजी को भी उपासना करनी पडी थी। उसीप्रकार हमें भी धर्म के पक्ष में खडे रहने हेतु उपासना करनी चाहिये !
हिन्दू जनजागृति समिति के मध्यप्रदेश समन्वयक श्री. योगेश व्हनमारे ने ऐसा प्रतिपादित किया। धर्मरक्षक संगठन की ओर से यहां २४ एवं २५ दिसंबर को हिन्दू अधिवेशन आयोजित किया गया था। इस अवसर पर वे बोल रहे थे।
इस अधिवेशन के लिए ४० धर्माभिमानी युवक उपस्थित थे। इस अधिवेशन में विविध मान्यवरों के उद्बोधन, व्यायाम एवं योगासन अंतर्भूत थे। इस अधिवेशन को आयोजित करने हेतु धर्मरक्षक संगठन के श्री. विनोद यादव ने दायित्व लिया था। (हिन्दुओं के संगठन हेतु इस प्रकार अधिवेशन आयोजित कर प्रभावी कार्य करनेवाला धर्मरक्षक संगठन एवं उसके अध्यक्ष श्री. विनोद यादव का अभिनंदन ! श्री. विनोद यादव का यह प्रयास प्रशंसायोग्य एवं अनुकरणीय है।– संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
हमें छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास आगे ले जाना है ! – श्री. मनोज उपाध्याय, धर्मजागरण प्रमुख, भोपाल
पाकिस्तान भारत का ही भाग था। जब मुसलमानों की संख्या २१ प्रतिशत हुई, तब भारत का विभाजन हो कर पाकिस्तान बना। अभी भी भारत पुनः विभाजन की दिशा में जा रहा है; अपने इस काले इतिहास की पुनरावृत्ति नहीं होना चाहिये। पूर्व में धर्मांधों के पक्ष में खडे रहनेवाले एक ही गांधी थे, अब सैकडो धर्मनिरपेक्ष उनके पक्ष में है। अब हमें गांधीजी का नहीं, अपितु छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास आगे ले जाना है !
धर्माचरण के बिना अच्छा संगठन असंभव ! – श्री. योगेश परमार, भाजपा कार्यकर्ता
संगठन हेतु धर्माचरण करना चाहिये; परंतु तत्पूर्व ‘धर्म अर्थात ईश्वर’ क्या है, यह जान लेना चाहिये। ईश्वर के गुण हमारे अंदर लाने चाहिये। तंत्र, मंत्र एवं यंत्र ये तीनों बातें संगठन हेतु आवश्यक है। तंत्र अर्थात व्यवस्था-अनुशासन, मंत्र अर्थात ध्येय एवं यंत्र अर्थात समर्पित कार्यकर्ता, इन तीनों बातों के आधार पर ही संगठन स्थापित होता है। धर्माचरण करनेवाला व्यक्ति ही अच्छा संगठन स्थापित कर सकता है !
आक्रामकों से लडनेवालों का इतिहास आगे आने की आवश्यकता ! – श्री. निमिष, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
हमें केवल भारत पर किए गए आक्रमण का इतिहास बताया जाता है; परंतु हर आक्रमण कर्ता को पृथ्वीराज चौहान, छत्रपति शिवाजी महाराज तथा बाप्पा रावल समान पराक्रमी राजाओं ने मजा चखाया। डट कर सामना किया; परंतु हमें यह सिखाया नहीं जाता। आक्रमण कर्ताओं का राज्य केवल देहली में ही रहे; बाकी शेष भारत में हिन्दू राजाओं का ही राज्य था। आज हमें इन आदर्शों को युवकों के सामने रख कर उनके समान आचरण करना सिखाना चाहिये !
क्षणचित्र : अधिवेशनस्थल पर हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से ‘हिन्दू राष्ट्र’ विषयक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था। सभी वक्ताओं ने इस प्रदर्शनी का भ्रमण किया एवं उन्होंने अपने वक्तव्य में ‘हिन्दू राष्ट्र’ की आवश्यकता का उल्लेख भी किया !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात