रतलाम के सरस्वती शिशू विद्या मंदिर में छात्रों को मार्गदर्शन !
रतलाम (मध्यप्रदेश) : आज हैलो कहना, शेकहैंड करना, फादर-मदर डे मनाना ऐसे अनेक छोटे छोटे कृत्यों से जाने अनजाने में हम अर्थहीन पाश्चात्त्य संस्कृति का अंधानुकरण कर रहे हैं, तो दूसरी ओर पाश्चिमात्य लोग अपनी संस्कृति की निरर्थकता ध्यान में आने से हिन्दू संस्कृति की ओर आकृष्ट हो रहे हैं ! इसलिए हमें पाश्चात्त्यों का अंधानुकरण छोड कर अभिमान एवं बड़े गर्व से अपनी संस्कृति का पालन करना चाहिये !
हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने यहां के श्रीराम शिक्षण संस्थान संचालित सरस्वति शिशु विद्या मंदिर में छात्रों का मार्गदर्शन करते हुए वे बोल रहे थे।
इस अवसर पर व्यासपीठ पर सरस्वती शिशू मंदिर के संचालक श्री. वीरेंद्र सकलेचा, अध्यक्ष श्री. ब्रजेशनंदन मेहता एवं अध्यापक श्री. महेश शर्मा उपस्थित थे। इस मार्गदर्शन का ४ थी से १० वीं तक के ३०० छात्रों ने लाभ उठाया।
पू. डॉ. पिंगळे ने आगे कहा कि, तंत्रशास्त्र में किसी को कष्ट पहुंचाने हेतु उसके नाम पर गुडिया बना कर उसे काटा जाता है। आज तो हम विदेशी लोगों का अंधानुकरण करते समय केक पर स्वयं का नाम लिख कर हम ही काटते हैं, यह कहां तक उचित है ? जन्मदिवस तिथि के अनुसार मनाएं। अपने सभी देवी-देवताओं के उत्सव तिथि को ही मनाए जाते हैं। तो हम अपना जन्मदिवस अंग्रेजी कॅलेंडरनुसार के अनुसार क्यों करें ? हम दिया बुझाने को अशुभ मानते हैं। हमारे यहां दीपप्रज्वलन करने की अर्थात अंधेरे की ओर से उजाले की ओर जाने की परंपरा है। तो अपने शुभदिवस पर हम मोमबत्ती बुझा कर अंधेरा करते हैं। क्या, ये उचित है ?, सभी को इसका विचार करना चाहिये !
हम सभी लोग आजीवन ज्ञानदाता देवी सरस्वती के शिशू (छात्र) रहते हैं ! – पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळे
इस शिशू विद्या मंदिर का नाम केवल सरस्वति है, ऐसा विचार न करें। सरस्वति शिशू अर्थात सरस्वती के पूत्र ! सरस्वति ज्ञानदेवता है। जो सदैव सीखने की स्थिति में रहता है, वही जीवन में उन्नति कर सकता है ! इसलिए हम सभी लोग आजीवन इस सरस्वती देवी के विद्यालय के छात्र हैं !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात