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‘धर्म का विस्मरण होना’ यही कलह का मूल कारण – पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळे

उज्जैन (मध्य प्रदेश) में धर्माभिमानी हिन्दुओं को मार्गदर्शन !

मार्गदर्शन करते हुए पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी

उज्जैन (मध्य प्रदेश) : आज अनेक राजनीतिक भाषणों मे जातियों के कारण हिन्दू समाज का विभाजन होने के संदर्भ में बताया जाता है। यदि जाति ही कलह, विवाद अथवा विभाजन का कारण होगा, तो एक ही घर में, एक ही संस्कार में पले-बढे भाईयों में क्यों विवाद होते हैं ? तो धर्म का विस्मरण होना यही कलह का मूल कारण है ! जब हर व्यक्ति धर्माचरण करेगी, तभी परिवार, समाज, जाति आदि में व्याप्त कलह दूर होकर पुनः रामराज्य आयेगा ! हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने ऐसा प्रतिपादित किया। वे यहां के किड्डू सिटी स्कूल में हाल ही में आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे।

पू. डॉ. पिंगळेजी ने आगे कहा कि, रामायणकाल में प्रभु श्रीरामजी ने अपने पिता को दिया हुआ वचन पूरा करने हेतु वनवास जाकर अपने पुत्रधर्म का पालन किया तथा माता सीता ने भी अपने पतिसहित वनवास जा कर अपने पत्निधर्म का पालन किया। सिंहासन पर ज्येष्ठ पुत्र का अधिकार होता है, इसे ध्यान में लेकर लक्ष्मण एवं भरत ने सिंहासन का त्याग किया। इस प्रकार से रामायणकाल में हरएकद्वारा धर्म को ध्यान में रखकर त्याग किए जाने के कारण कलह का स्थान रामराज्य ने लिया। जब हम धर्म को समझ लेकर त्याग की वृत्ति स्वयं में उत्पन्न करेंगे, तभी रामराज्य का प्रारंभ होगा !

मार्गदर्शन का लाभ लेते हुए धर्माभिमानी

इस कार्यक्रम का सूत्रसंचालन हिन्दू जनजागृति समिति के मध्य प्रदेश राज्य समन्वयक श्री. योगेश व्हनमारे ने किया। कार्यक्रम में ४० से भी अधिक हिन्दू धर्माभिमानी उपस्थित थे।

एकाधिकारी तानाशाही से यदि लोकतंत्र श्रेष्ठ हो; तो अनेक रूप में कार्य करनेवाले ईश्‍वर को माननेवाला हिन्दू धर्म एकेश्‍वरवाद से बुरा कैसे ?

पू. डॉ. पिंगळेजी ने आगे कहा कि, किसी एक की बुद्धि के अनुसार चलनेवाली हिटलर के राजतंत्र की अपेक्षा केंद्रशासन के नियंत्रण में स्थित अनेक मंत्रालयोंद्वारा चलनेवाले विकेंद्रित लोकतंत्र को श्रेष्ठ समझा जाता है। उसी की भांति हिन्दू धर्म अनेक रूपों में कार्य करनेवाले एक ईश्‍वर के तत्त्व को मानता है। हिन्दू धर्म में पानी जीवन होता है, इसे ध्यान में रखकर उसके प्रदाता वरुणदेवता को पूजनीय माना जाता है। प्राणवायु के बिना हम जीवित नहीं रह सकते, इसे ध्यान में रखकर वायुदेवता का पूजन किया जाता है। जो भूमि, एक दाने से सहस्रो दाने देकर सभी का पोषण करती है, उस भूमि को माता का स्थान देकर उसका पूजन किया जाता है।

इतनी समृद्ध एवं शास्त्रीय परंपरा होनेवाले हिन्दू धर्म को दूषण देने का अर्थ लोकतंत्र को नकार कर हिटलर शही का पुरस्कार करने जैसा ही है !

क्षणचित्र

१. कार्यक्रम में उपस्थित जिज्ञासुओं ने अनेक प्रश्‍न पूछकर अपनी शंकाओं को निराकरण करा लिया।

२. कार्यक्रम में हिन्दू धर्म का महत्त्व स्पष्ट करते हुए, मंदिर से प्रक्षेपित होनेवाली ऊर्जा का आधुनिक यंत्रोंद्वारा किया गया प्रयोग एवं यज्ञ में अग्निप्रवेश कर भी कुछ न होनेवाले तमिलनाडू के पू. रामभाऊ स्वामीजी का चलतचित्र दिखाया गया।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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