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केवल ‘अध्यात्म’प्रसार से ही वास्तव में सामाजिक समरसता संभव – पू. (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति

भोपाल (मध्य प्रदेश) की आधारशिला कॉलनी में मार्गदर्शन

मार्गदर्शन करते हुए पू. (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी एवं आधारशिला कॉलनी के जिज्ञासु

भोपाल (मध्य प्रदेश) : अध्यात्म को समझ लिए बिना हम किसी भी समस्या का उसकी मूल रूप से समाधान नहीं ढूंढ सकेंगे। आज आये दिन हर जगह सामाजिक समरसता की चर्चा चलती रहती है। उसमें जब ‘जातिभेद को भूल जाने’ का संदेश दिया जाता है, तब अप्रत्यक्ष रूप से अलग-अलग जातियां होने की बात स्वीकार की जाती है। इसकी अपेक्षा ‘हम सभी एक ही ईश्‍वर के अंश है’, यह आध्यात्म सिखाता है !

संतोंद्वारा हरएक में ईश्‍वर का अंश देखे जाने के कारण उनके पास विभिन्न जाति के लोग साधना हेतु आते हैं तथा वे भी हर एक के प्रति समान प्रेम रख सकते हैं। वास्तविक सामाजिक समरसता आने हेतु अध्यात्म का ही प्रसार होना चाहिये। हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने ऐसा प्रतिपादित किया। वे, यहां की आधारशिला कॉलनी के लोगों के लिए आयोजित बैठक में बोल रहे थे।

इस समय अनेक जिज्ञासुओं ने स्वयंस्फूर्ति से ‘राष्ट्र एवं धर्म’ के संदर्भ में अपनी शंकाओं का निराकरण करा लिया।

पू. डॉ. पिंगळेजी ने आगे कहा कि, ‘अध्यात्म का बोध न होने के कारण ही कुछ लोग उनको प्राप्त छोटी अनुभूतियां अथवा सिद्धियों में अटक कर तात्कालिन स्वार्थ हेतु उसका उपयोग करते हैं। अध्यात्म में ‘पिंडी से लेकर ब्रह्मांड तक’ यह तत्त्व बताया गया है। अतः ‘व्यष्टि एवं समष्टि’ जीवन में बिलकुल भेद नहीं है। जब कोई व्यक्ति अपने व्यक्तिगत , सामाजिक एवं धार्मिक कर्तव्यों का यथायोग्य निर्वहन करता है, तब अज्ञानवश उससे समष्टि का ही कल्याण होता है !

वास्तविक जो संत है वो सिद्धियों में न अटक कर केवल ‘राष्ट्र एवं धर्म’ हेतु ही कार्य करते रहते हैं !’

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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