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हिन्दूबहुल देश में एक वेदाचार्य को ही ऐसी खंत व्यक्त करनी पडती है, यह स्वयं को ‘हिंदुत्ववादी’ कहलानेवाली सरकार को लज्जाजनक है !
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इस मांग की ओर ध्यान देकर क्या, केंद्र सरकार वेदपाठशालाओं के लिए पर्याप्त राशि उपलब्ध कराएगी ?
पुणे : भारतीय संस्कृति में वेदाध्ययन को अनन्यसाधारण महत्त्व है। नई पीढी को वेद समझाना एवं अपनी संस्कृति को अबाधित रखने का कार्य वेदपाठशालाएं करती हैं। पूरे भारत में लगभग ३०० वेदपाठशालाएं हैं।
उन सब को कुल मिला कर शासन एक वर्ष में केवल ८ करोड रुपयों का अनुदान देती है। मतितार्थ ये है कि; वेदपाठशालाओं को शासन की ओर से मदरसों जितना अनुदान नहीं मिलता, ऐसी यहां के वेदभवन के प्रधानाचार्य वेदाचार्य मोरेश्वर घैसासगुरुजी ने खंत व्यक्त की ! (कांग्रेस सरकार से हिन्दुओं को यह अपेक्षा नहीं थीं; परंतु न्यूनतम भाजप सरकार ने तो इसके लिए प्रयास करने चाहिये, ऐसा अपेक्षित है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
वेदाचार्य घैसासगुरुजी ने आगे कहा कि, एक ओर ऐसी परिस्थिति होते हुए वेदपाठशाला से पदविका लेकर बाहर निकले छात्रों को शुद्ध मंत्र का उच्चारण करना नहीं आता। इसलिए पर्याप्त वैदिकों की नियुक्ति होनी आवश्यक है तथा जो कोई १५ वर्ष तक अध्ययन कर उसमें तज्ञ होता हैं, उसे अध्यापन का अवसर न मिलने से उसे समाज में केवल ‘पौरोहित्य’ करना अनिवार्य हो जाता है ! इसलिए आज ‘वेदज्ञान’, पौरोहित्य तक ही सीमित रह गया है !
वेदशास्त्र का कोई एक विद्यापीठ हो, इस हेतु मेरे पिता ने निरंतर शासन से पत्रव्यवहार किया; परंतु उसका कोई उपयोग न होने से हमने प्रयास करना छोड दिया ! (इस से यह ध्यान में आता है कि, मदरसों को बिना मांगे अनुदान देनेवाले शासनकर्ता हिन्दुओं के वेदाचार्यद्वारा भेजे गए पत्र पर ध्यान भी नहीं देते ! ‘हिन्दू राष्ट्र’ में वेदपाठशालाओं की ओर विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात