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२७ साल से हम कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी का जीवन जी रहे हैं – अनुपम खेर

कश्मीरी पंडितों के विस्थापन दिवस पर अनुपम खेर ने जारी किया विडियो

नई देहली – जिहादी आतंकवाद के कारण कश्मीरी पंडितों के घाटी से विस्थापन की २७ वीं बरसी पर अभिनेता अनुपम खेर ने उन्हें एक कविता समर्पित की है। उन्होंने ट्वीट करके लिखा है, ‘२७ साल हो गए, हम कश्मीरी पंडित अपने ही देश में अब भी शरणार्थी हैं। यह कविता उनके उस खामोश विरोध की प्रतीक है। बता दें कि अनुपम खेर स्वयं एक कश्मीरी ब्राह्मण हैं। मुस्लिम बहुल जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडित अल्पसंख्यक हैं।

इस कविता को प्रसिद्ध कश्मीरी कवि डॉ शशि शेखर तोशखानी ने लिखा है। वीडियो में खेर कहते हैं, ‘फैलेगा-फैलेगा हमारा मौन समुद्र में नमक की तरह। नसों के दौड़ते रक्त में घुलता हुआ पहुंचेगा दिलों की धड़कनों के बहुत समीप। और बोरी से रिसते आटे सा देगा हमारा पता (पूरी कविता नीचे सुनें)।’ उन्होंने यह भी कहा कि ये आवाजें अब और खामोश नहीं रहेंगी।

न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में खेर ने कहा कि २७ साल बीत जाने के बावजूद किसी ने हथियार नहीं उठाए क्योंकि वे शांति और अपने देश की महानता में विश्वास करते हैं। उन्होंने कहा, ‘कोई कश्मीरी पंडित उस दिन को भुला नहीं सकता। मस्जिदों से ऐलान किया जा रहा था, कश्मीरी पंडितों अपना घर छोड़कर चले जाओ। वह रात हमारे कश्मीरी पंडित दोस्त और रिश्तेदार कभी नहीं भूल सकते।’

उन्होंने आगे कहा, ‘आज २७ साल हो गए। घर से निकाले जाने के उस दिन को याद रखे जाने की जरूरत है। हमारी कोशिश उन लोगों तक अपनी आवाज पहुंचाना है, जो इस बारे में सुनना ही नहीं चाहते।’

अनुपम खेर १९ जनवरी १९९० के उस घटना के बारे में याद कर रहे थे, जब ६० हजार से ज्यादा कश्मीरी पंडित परिवार जम्मू-कश्मीर छोडकर चले गए। घाटी में पाक समर्थित आतंकवाद के बढते प्रभाव की वजह से उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा। २००८ में जम्मू-कश्मीर पुलिस की ओर से बनाई गई रिपोर्ट के मुताबिक, १९८९ में आतंकवाद के उदय के साथ ही २४ हजार से ज्यादा कश्मीरी पंडितों का परिवार घाटी छोड़कर चला गया था।

स्त्रोत : नवभारत टाइम्स

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