श्रीनगर – २० जनवरी जब-जब यह तारीख आती है, कश्मीरी पंडितों के जख्म हरे हो जाते हैं। यही वह तारीख है जिसने जम्मू कश्मीर में बसे कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रहने को मजबूर कर दिया। इस तारीख ने उनके लिए जिंदगी के मायने ही बदल दिए थे। वर्ष १९८५ के बाद से कश्मीर पंडितों को कट्टरपंथियों और आतंकवादियों से लगातार धमकियां मिलने लगी। अंत में १९ जनवरी १९९० को कट्टरपंथियों ने ४ लाख कश्मीरी पंडितों को उनके घरों से भागने के लिए मजबूर कर दिया।
कश्मीर में हिंदुओं पर कहर टूटने का सिलसिला जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था। जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। उसने नारा दिया हम सब एक, तुम भागो या मरो।
कश्मीरी पंडितों को बताया काफिर
२० जनवरी १९९९ को कश्मीर की मस्जिदों से कश्मीरी पंडितों को काफिर करार दिया गया। मस्जिदों से लाउडस्पीकरों के जरिए ऐलान किया गया, ‘कश्मीरी पंडित या तो मुसलमान धर्म अपना लें, या चले जाएं या फिर मरने के लिए तैयार रहें।’ यह ऐलान इसलिए किया गया ताकि कश्मीरी पंडितों के घरों को पहचाना जा सके और उन्हें या तो इस्लाम कुबूल करने के लिए मजबूर किया जाए या फिर उन्हें मार दिया जाए। बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडितों ने अपने घर छोड दिए। एक अनुमान के अनुसार करीब १ लाख कश्मीरी पंडित अपने घरों को छोडकर कश्मीर से चले गए।
सरेआम हुए थे बलात्कार
एक कश्मीरी पंडित नर्स के साथ आतंकियों ने सामूहिक बलात्कार किया और उसके बाद मार-मार कर उसकी हत्या कर दी। घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण किए गए। हालात बदतर हो गए।
एक स्थानीय उर्दू अखबार, हिज्ब – उल – मुजाहिदीन की आेर से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की – ‘सभी हिंदू अपना सामान बांधें और कश्मीर छोड़ कर चले जाएं’।
एक अन्य स्थानीय समाचार पत्र, अल सफा, ने इस निष्कासन के आदेश को दोहराया।
मस्जिदों में भारत एवं हिंदू विरोधी भाषण दिए जाने लगे। सभी कश्मीरियों को कहा गया की इस्लामिक ड्रेस कोड अपनाएं।
डर की वजह से वापस लौटने से कतराते
आज भी कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ नहीं बदला है। कई बार कश्मीरी पंडितों से कहा गया कि वे अपने घर लौट आएं किंतु उनके अंदर का डर उन्हें वापस लौटने से रोक देता है। कुछ आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर २०१५ तक सिर्फ एक कश्मीरी पंडित परिवार घाटी में वापस लौटा है।
स्त्रोत : वन इण्डिया