आश्विन शुक्ल पक्ष द्वितीया, कलियुग वर्ष ५११६
पुणे (महाराष्ट्र) – आज हम प्रगत विज्ञान एवं अनुसंधानकी बातें करते हैं । इन सबका मूल वेद-पुराण एवं ग्रंथोंमें मिलता है । उन्हें शाश्वत करनेका कार्य शिल्पकी रचनाओंसे किया गया है । ‘इस विषयमें मैं संशोधन कर रहा हूं तथा उसके प्रमाण भी मिल रहे हैं’, श्री. उदयन इंदुरकरने ऐसे उद्गार व्यक्त किए । उन्होंने ‘ब्लशिंग इण्डियन स्टोन्स संस्था’द्वारा ‘एक था मंदिर’ इस विषयपर लघुचित्र बताया, इस अवसरपर वे ऐसा बोल रहे थे । पुणे स्थित श्री. इंदुरकरने भारतीय विद्या विषयमें स्नातकोत्तरकी शिक्षा ग्रहण की है । वर्तमानमें वे आधुनिक विज्ञानसे हिन्दू देवी-देवताओंका सन्बम्ध एवं प्राचीन देवालयोंमें उन संबंधोंके प्रमाण देनेके विषयमें शोध (पी. एच.डी.) कर रहे हैं ।
१. इस लघुचित्रमें देवालयोंका इतिहास, उनकी स्थापना, वराहमिहिरके लिखे ग्रंथोंसे बताया गया वास्तुस्थापत्य, तत्पश्चात हुई देवालयोंकी उत्पत्ति तथा वेदोंमें बताए गए युग, मन्वंतर, कल्प एवं ब्राहमान्डके आयुर्मानके विषयमें ऋषिमुनियोंद्वारा किए गए शोधनकी जानकारी दी गई है ।
२. उन्होंने कहा कि अणुका शोधन विज्ञानद्वारा नहीं, अपितु कणाद ऋषिने लगाया है । श्री. इंदुरकरने लघु चलचित्रोंद्वारा मूर्तिविज्ञान एवं कलाके संशोधन हेतु अजिंठा वेरूल (महाराष्ट्र) तथा मध्यप्रदेशके खजुराहोकी गुफाओंकी मूर्तिओंका भी अभ्यास एवं अन्य देशके मंदिरोंके विषयमें जानकारी दर्शायी ।
विश्वके समक्ष देवालयोंके सम्बन्धमें अथाह ज्ञान लानेकी जिज्ञासासे २० वर्षोंसे कार्यरत श्री. इंदुरकर !
लघुचित्रके पश्चात श्री. इंदुरकरको उनके कार्यके उद्देश्यके विषयमें पूछनेपर उन्होंने कहा कि प्राचीन मूर्ति एवं देवालयोंमें जो तत्त्वज्ञान एवं विज्ञान हैं, उन्हें लोगोंके समक्ष लानेका कार्य कर रहा हूं । यह कार्य ब्लशिंग इण्डियन स्टोन्स संस्थाके माध्यमसे कर रहा हूं । यह विषय विश्वके समक्ष लानेका कार्य मैं पिछले २० वर्षोंसे कर रहा हूं । मुझे अपने देवालयोंका अथाह ज्ञान विश्वके समक्ष लानेकी इच्छा है । कंबोडियाके कुछ देवालयोंमें यह भंडार भारी मात्रामें है । विज्ञानके आधारपर उनकी रचना हुई है । ‘विज्ञान एवं हिन्दू देवी- देवता’, इस दृष्टिसे यह कार्य चालू है । इस माध्यमसे मैं शिल्पोंमें विद्यमान सौंदर्यदृष्टी विश्वके समक्ष लानेका कार्य एवं जागृति कर रहा हूं ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात