तमिलनाडु में मनाए जानेवाले ‘पोंगल’ इस त्योहार के अवसर पर ‘जल्लीकट्टू’ नामक पारंपारिक खेल खेलने की प्रथा सहस्त्रों वर्षों से चली आ रही है। इस संदर्भ का उल्लेख प्राचीन तमिल साहित्य संघ के दस्तावेजों में पाया जाता है। इस खेल के संदर्भ में विभिन्न प्रकार की जानकारी दी जाती है। उसे हमारे वाचकों के लिये यहां प्रकाशित कर रहे हैं . . .
१. ‘जल्ली’ अर्थात सिक्का तथा ‘कट्टू’ अर्थात् थैली ! प्राचीन समय में इस खेल का वास्तव स्वरूप अर्थात सांड के सिंग को सिक्कों की थैली लटकाकर उसे मैदान में खुला छोडा दिया जाता था। गांव का जो पुरुष उस सांड को अपने वश में कर वह थैली लेकर आयेगा, उसे एक ‘वीर’ पुरुष के रुप में सम्मानित किया जाता था। कुछ समय पश्चात इस खेल में कुछ परिवर्तन हुआ। वर्तमान में इस खेल का स्वरूप यह हुआ है कि, जो भी पुरुष उस उधेड़ते हुए सांड के वशिंड को एक मिनट तक पकडकर रखेगा, अर्थात वह विजेता !
२. ऐसा कहा जाता है कि, इस खेल का मुख्य उद्देश्य यह है, भारतीय देसी वंश के गोधनों का संवर्धन करना तथा हिन्दुओं के बीच वीरता एवं शौर्य जागृत रखना ! प्राचीन समय में विजयी सांड सामूहिक रीति से मंदिर में ‘ग्राम नंदी’ के रूप में संभाला जाता था। साथ ही सुदृढ एवं निरोगी गोसंवर्धन के लिये हर ३ वर्ष के पश्चात पडोसी गांवों में ऐसे ग्राम नंदी का अदल-बदल किया जाता था।
३. ‘भागवतम्’ इस ग्रंथ का संदर्भ देकर इस खेल के संदर्भ में कथा कही जाती है कि, पंडु राजा की कन्या नीलादेवी (तमिल में उसे ‘नैपिणी’ कहा जाता है) के स्वयंवर के समय एक शर्त रखी गई थी। वह यह थी कि, जो कोई ७ सांडों को अपने वश में करेगा, उसका विवाह राजकन्या नीलादेवी के साथ किया जायेगा। भगवान श्रीकृष्ण ने यह शर्त जीतकर राजकन्या के साथ विवाह किया।
‘जल्लीकट्टू’ इस क्रीडा प्रकार के समर्थन हेतु केंद्र सरकार से दिया ‘भगवान श्रीकृष्ण’ का, तो तमिलनाडू सरकार ने दिया ‘सिंधु संस्कृति’ का संदर्भ !
१. केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत किये गये प्रतिज्ञापत्र में जल्लीकट्टू का समर्थन किया है। उसके लिये सरकार ने भगवान श्रीकृष्ण तथा महाभारत का संदर्भ दिया है। सांडों को आपस में लडवाना यह एक प्राचीन खेल का प्रकार है। भगवान श्रीकृष्ण को राजकन्या नागनाजिती के साथ विवाह करने हेतु ७ सांडों अपने वश में करना बाध्य हुआ था। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार ने अपने प्रतिज्ञापत्र में ऐसा भी कहा है कि, सांडों की दौड़, सांड-गाडी की दौड़ अथवा जल्लीकट्टू आदि खेल जैव विभिन्नता का पालन करने हेतु महत्त्वपूर्ण हैं !
२. तमिलनाडू सरकार ने भी सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत किये गये अपने प्रतिज्ञापत्र में जल्लीकट्टू का पौराणिक महत्त्व कथन किया है। उसमें यह प्रस्तुत किया है कि, सिंधु संस्कृति में भी जल्लीकट्टू का उल्लेख पाया गया है। प्राचीन समय में भी इस प्रकार की क्रीडा स्पर्धाओं का आयोजन किया जाता था। संविधान के नियमानुसार सांस्कृतिक धरोहर का पालन करने हेतु ‘जल्लीकट्टू’ को कायम रखना आवश्यक है !
‘जल्लीकट्टू’ पर आपत्ति ऊठाना, यह भारत को उसके मूल संस्कृति से दूर ले जाने का ‘षडयंत्र’ ! – तमिलनाडू राज्य सरकार
तमिलनाडू राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत किये गये प्रतिज्ञापत्र में ऐसा कहा है कि, कुछ लोग बहुराष्ट्रीय आस्थापनों के पीछे लगे हैं। यह भारत को उसकी मूल संस्कृति से दूर ले जाने के लिये रचाया गया ‘षडयंत्र’ है !
‘जल्लीकट्टू’ इस खेल में कालानुसार निर्माण हुई ‘विकृती’ दूर होना आवश्यक है !
वर्तमान समय में इस खेल में कुछ विकृतियां (उदा. सांडों को भगाने के लिये मद्य पिलाना, उनकी आंखों में मिर्च पावडर डालना, इस खेल पर बेटींग (पैज) लगाना आदि) निर्माण हुई हैं। साथ ही हिन्दु धर्मविरोधकों के अनुचित हस्तक्षेप के कारण वह वादविवादों के चंगुल में फंसा है। अतः अनेक संस्कृतिप्रेमियों की यह मांग है कि, इस खेल में आयी हुई विकृतियों को दूर करना आवश्यक है !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात