अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआयए के गोपनीय दस्तावेजों के सार्वजनिक होने के बाद चौंकानेवाली जानकारियां सामने आई हैं। इन दस्तावेजों में कहा गया कि, सोवियत संघ ने इंदिरा गांधी सरकार के समय कांग्रेस पार्टी और कम्युनिस्ट नेताओं को पैसा पहुंचाया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि, इंदिरा गांधी के कार्यकाल में उनके ४० प्रतिशत सांसदों को सोवियत संघ से राजनीतिक चंदा मिला था। २००५ में रूसी गुप्तचर एजेंसी केजीबी के लीक हुए गोपनीय दस्तावेजों में भी कुछ ऐसी ही जानकारियां सामने आयीं थीं। सीआयए की सोवियत संघ के भारत पर प्रभाव को लेकर दिसंबर १९८५ की रिपोर्ट में कहा गया कि सोवियत संघ राजनीतिक दलों और व्यक्तियों को छिपाकर रकम देने के जरिए भारतीय राजनीतिक प्रक्रिया में बड़ी भूमिका रखता है। रिपोर्ट के अनुसार,, ‘इंदिरा गांधी की पिछली सरकार में कांग्रेस के लगभग ४० प्रतिशत सांसदों को सोवियत संघ से राजनीतिक चंदा मिला था। सोवियत संघ का दूतावास कांग्रेस के नेताओं को छिपकर रकम देने सहित कई खर्चों के लिए बड़ा रिजर्व रखता है !’
इससे पहले केजीबी के एक पूर्व जासूस वासिली मित्रोकिन की २००५ में आई एक किताब में भी इसी तरह के दावे किए गए थे। वासिली सोवियत संघ से हजारों गोपनीय दस्तावेज चुराकर देश से बाहर ले गए थे। उनमें दावा किया गया था कि इंदिरा गांधी को कांग्रेस पार्टी के लिए सूटकेसों में भरकर रकम भेजी गई थी और केजीबी ने १९७० के दशक में पूर्व रक्षा मंत्री वी के मेनन के अलावा चार अन्य केंद्रीय मंत्रियों के चुनाव प्रचार के लिए फंड दिया था।
इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, सीआयए के दस्तावेजों में आरोप लगाया गया है कि, सोवियत संघ ने भारतीय कारोबारियों के साथ समझौतों के जरिए कांग्रेस पार्टी को रिश्वत दी थी। इनमें सीपीआय और सीपीएम को भी सोवियत संघ से फंडिंग मिलने की बात कही गई है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि, सभी राजनेताओं को वित्तीय मदद नहीं दी गई। इसमें ऐसे व्यक्तियों का उल्लेख है जिन्होंने सोवियत संघ के साथ कथित तौर पर व्यवहार किए थे। इनमें इंदिरा गांधी को चुनौती देने की संभावना रखनेवाले एक राजनेता का भी नाम है !
उस समय सीआयए का आकलन था कि, केजीबी की ओर से फंड दिए जाने के कारण बहुत से नेताओं तक सोवियत संघ की पहुंच थी और इससे उसे भारतीय राजनीति को प्रभावित करने में मदद मिली थी। इससे पहले केजीबी के लीक हुए दस्तावेजों में भी भारत को तीसरी दुनिया की सरकारों में केजीबी की घुसपैठ का एक मॉडल बताया गया था। इन दस्तावेजों में सरकार में केजीबी के बहुत से सूत्र होने की बात कही गई थी।
स्त्रोत : जनसत्ता