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चुपके-चुपके पाकिस्तान को परमाणु शक्ति बना रहा था चीन : सीआयए

नई देहली : अमेरिकी की खुफिया एजेंसी सीआयए के हालिया सार्वजनिक किए गए दस्तावेजों से चीन और पाकिस्तान के न केवल दशक दर दशक गहराते सैन्य संबंधों के प्रमाण मिलते हैं, बल्कि यह भी पता चलता है कि, किस तरह पाकिस्तान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को बल देने के लिए पेइचिंग ने अमेरिका के साथ अपने परमाणु सहयोग को भी दांव पर लगाने से गुरेज नहीं किया।

फाइल्स के अनुसार, पाकिस्तान के साथ एक न्यूक्लियर अग्रीमेंट साइन करने के बाद चीन ने अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की निगरानी के लिए पाक से अपने परमाणु प्रतिष्ठानों की जानकारी साझा करने की मांग नहीं की थी। इस अग्रीमेंट में नॉन-मिलिटरी न्यूक्लियर टेक्नॉलजी, रेडियो-आइसोटॉप्स, मेडिकल रिसर्च और सिविलियन पावर टेक्नॉलजी जैसे विषयों पर फोकस किया गया था। अमरिका का कहना है कि इस अग्रीमेंट के माध्यम से चीन पाकिस्तान के ‘असंवेदनशील’ इलाकों में एक न्यूक्लिर एक्सपोर्ट मार्केट विकसित करना चाहता था। उससे इस कदम से पाकिस्तान के परमाणु ढांचे को लेकर अमेरिका जैसे देशों की चिंता बढ़नी स्वाभाविक है।

अमेरिका के अनुसार, इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि, चीन को लगा होगा कि IAEA की निगरानी की आड़ में गुपचुप ढंग से पाकिस्तान को मदद पहुंचाना आसान रहेगा। १९८३-८४ तक अमेरिका पर यह बात जाहिर हो चुकी थी कि, चीन-पाकिस्तान परमाणु सहयोग की जड़ें बहुत गहरे तक जा चुकी हैं। फरवरी १९८३ में सीआयए ने अमेरिकी कांग्रेस की एक समिति को इस बात की जानकारी दी कि, अमेरिका के पास चीन और पाकिस्तान के बीच परमाणु हथियारों के निर्माण को लेकर चल रही बातचीत के सबूत हैं।

सीआयए ने यह भी बताया कि, वे इस बात से अनभिज्ञ नहीं हैं कि, चीन ने लोप नॉर रेगिस्तान में जाँच किए गए परमाणु बम की रचना पाकिस्तान को मुहैया कराई थी। यह चीन का चौथा परमाणु परीक्षण था, और अमेरिका का मानना है कि, इस परीक्षण के दौरान एक ‘वरिष्ठ पाकिस्तानी अधिकारी’ भी उपस्थित था। अमेरिका को यह संदेह भी था कि, चीन ने पाकिस्तान को यूरेनियम भी मुहैया कराया है। इसका अर्थ था कि, चीन ने पाकिस्तान को न केवल परमाणु बम की रचना दी, बल्कि बम बनाने के लिए आवश्यक चीजें भी दी।

स्त्रोत : नवभारत टाइम्स

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