आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्दशी, कलियुग वर्ष ५११६
खरगोन (मध्य प्रदेश) : मत्स्य पुराण के अध्याय १३ के अनुसार भगवती के १०८ स्थानों में सिद्धपीठ होने का वर्णन है। उन्हीं में से एक यह स्वाहा पीठ महेश्वर का भवानी माता मंदिर है।
यह मंदिर महाभारतकालीन होने की मान्यता है। जानकारों के अनुसार अहिल्या देवी ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
मंदिर के पुजारी पं. नरेन्द्र झावरे व पं. विलास झावरे के अनुसार प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में अंचल सहित प्रदेश के अनेक स्थानों व शहरों से मन्न्तें लेने व पूरी होने पर श्रद्धालु आते हैं। चैत्र व शारदीय नवरात्रि में विशेष भीड़ होती है।
यह मंदिर भगवती विंध्यवासिनी देवी के ‘स्वाहा पीठ” के नाम से भी जाना जाता है। इसकी स्थापना अग्निदेव की धर्मपत्नी स्वाहादेवी ने की थी। काले प्रस्तरों के नक्काशीदार इस मंदिर का निर्माण परमारकालीन शैली में किया गया है। मंदिर के प्रवेश द्वार के सम्मुख जहां महेश्वरी नदी बहती है। वहीं पत्थरों के दो सुंदर दीप स्तंभ भी बने हुए हैं। चैत्र व शारदीय नवरात्र में देवी पाठ के साथ विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान होते हैं।
प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्रि में मंदिर के प्रांगण में विशाल ९ दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में करीब १५० से ज्यादा छोटी-बड़ी दुकानें लगती हैं। वहीं इस मेले से सैकड़ों लोगों को रोजगार मिलता है। इसी प्रकार वर्षभर आने वाले श्रद्धालुओं के कारण भी लोगों को रोजगार मिलता रहता है।
खंडवा का हिंगलाज माता मंदिर
द्वापर युग का यह मंदिर माली कुआं क्षेत्र में अनेक वर्षों पूर्व का बताया जाता है। इससे अनगिनत श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी है।नवरात्रि के दौरान मंदिर परिसर के आसपास पूजन सामग्री और प्रसाद की कई दुकानें लगती हैं। इसके साथ ही विद्युत सज्जा एवं अन्य लोगों को भी नवरात्रि पर्व के दौरान रोजगार मिलता है। कोलकाता से आने वाले बंगाली मूर्तिकार भी गंगाघाट की मिट्टी से मंदिर परिसर के पास ही इकोफ्रेंडली प्रतिमाओं का निर्माण करते हैं।
माता की ५२ शक्ति पीठों में से एक हिंगलाज शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित है। दूसरा हिंगलाज माता मंदिर खंडवा के मालीकुआं क्षेत्र में है। खंडवा में स्थित हिंगलाज मंदिर को देश का एकमात्र हिंगलाज मंदिर माना जाता है। यहां मैया की स्वयंभू मूर्ति स्थापित है। माता को विशेष रूप से हलवा का भोग लगता है। नवरात्रि के दौरान मंदिर में आरती और गरबों का आयोजन होता है।
बुरहानपुर का आशादेवी माता मंदिर
महाभारतकालीन यह मंदिर असीरगढ़ के ऐतिहासिक किले के उत्तर पूर्व भाग में स्थित है।यहां नवरात्रि में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु करते हैं दर्शन।
इंदौर-इच्छापुर राजमार्ग के समीप स्थित सतपुड़ा की पहाड़ी पर असीरगढ़ के ऐतिहासिक दुर्ग में उत्तर पूर्व भाग में स्थित यह मंदिर महाभारतकालीन है।
यहां पर दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि उनकी सभी आशाएं पूर्ण होती है इसलिए इस मंदिर का नाम आशादेवी मंदिर पड़ा। यहां पर चैत्र व शारदीय दोनों ही नवरात्रि में मेला भरता है। विजयादशमी पर मेले का समापन होगा।
मां दुर्गा मंदिर, सरदारपुर
सरदारपुर का मां दुर्गा मंदिर, सरदारपुर अंग्रेजों के शासनकाल के पूर्व का बताया जाता है। इंदौर-अहमदाबाद राजमार्ग के पास यह मंदिर स्थित है। मंदिर का जीर्णोद्धार १९८१ में महंत जमनादासजी महाराज की प्रेरणा से हुआ था। यहां मंदिर में मां दुर्गा, मां देवल एवं मां चामुंडा माता की प्रतिमाएं विराजित हैं। नगर में कई वर्ग के लोग कुलदेवी के रूप में मां की पूजा-अर्चना करते हैं।
चार आरती होती हैं
पूर्वजों के समय से ही सुबह चार बजे कांकड़ आरती, ६ बजे मंगला आरती, ४ बजे दुर्गा सप्तमी पाठ के बाद ७.३० बजे संध्याकालीन आरती होती है। नवमी के दिन दुर्गा सप्तसती पाठ, हवन एवं दशमी को हवन के बाद मां का विसर्जन कर नवरात्रि पर्व का समापन होता है।
विभिन्न स्थानों से आती है अखंड ज्योत
पं. चांदनारायण भट्ट ने बताया कि मंदिर जीर्णोद्धार के पश्चात से मंदिर की व्यवस्था उत्सव समिति एवं भक्तों के सहयोग चल रही है। जीर्णोद्धार के समय से मुझे नियुक्त किया गया है, जब से मैं निशुल्क सेवाएं दे रहा हूं। मां के दरबार में प्रतिवर्ष नवरात्रि पर्व पर देश के विभिन्ना स्थानों से अखंड ज्योत लाई जाती है तथा पर्व को उत्साह के साथ मनाया जाता है। नव दिवसीय पर्व के दौरान आसपास के अंचलों से बड़ी संख्या में भक्त आते हैं व र्धर्म लाभ लेते हैं।
झाबुआ का प्राचीन खोडियार माता मंदिर
पीजी कॉलेज के समीप यह मंदिर प्राचीन समय से है। यहां जिले के बाहर के भी श्रद्धालु आते है दर्शन के लिए। श्रद्धालुओं के अनुसार यहां मांगी गई मुरादें पूर्ण होती हैं। नवरात्रि में तो यहां भक्तों का तांता लगा रहता है।
स्त्रोत : नई दुनिया