दूसरी ओर छत्रपति शिवाजी महाराज के इतिहास का जतन करने की इच्छा का अभाव होनेवाला महाराष्ट्र !
१. महाराष्ट्र का इतिहास है, ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ एवं ‘उनके गढ और किलें’ !
‘अन्य प्रांतों का तो केवल ‘भूगोल’ है; परंतु महाराष्ट्र का इतिहास है’, ऐसा यशवंतराव चव्हाण बडे गर्व के साथ कहते थे। महाराष्ट्र का इतिहास हैं ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ एवं उनके गढ और किलें’ ! यह इतिहास आज एक ध्वस्त हुई धर्मशाला बना है और आज इस इतिहास का जतन करने की इच्छा किसी में भी नहीं है !
२. राजस्थान में राजा-महाराजाओं के ऐतिहासिक भवन एवं राजमहलों का उत्तम प्रकार से जतन किया गया है !
३. छत्रपति शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज्य की राजधानी रहे ‘रायगढ’ की स्थिति उतनी अच्छी न होना
छत्रपति शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज्य की राजधानी रहे ‘रायगढ’ की अवस्था उतनी अच्छी नहीं है। अनेक वर्षों तक महाराज के सिंहासनपर होनेवाली मेघडंबरी ही नहीं थी तथा आज भी अनेक जगहों पर ये गढ ढह रहा है, वहांपर धूलमिट्टी का साम्राज्य है। यह सब देखकर ऐसा लगता है कि, इसके ढहने से जैसे इतिहास ही धूल में मिल गया है, जो अत्यंत क्लेशदायी है !
४. महाराणा प्रताप का विश्वासनीय एवं लाडला घोडा ‘चेतक’ !
४ अ. अपना एक पैर नाकाम होकर भी घनघोर युद्ध में महाराणा प्रताप की सहायता करनेवाला ‘चेतक’
जैसे महाराष्ट्र में ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’, वैसे ही राजस्थान में ‘महाराणा प्रताप’ ! महाराणा प्रताप के ‘चेतक’ नामक घोडे का स्मारक प्रभावित करनेवाला है। यह महाराणा प्रताप का विश्वसनीय और लाडला घोडा था !
हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने मुघलों के विरोध में शर्थी के प्रयास कियें। वे युद्धभूमि पर अपने चेतक घोडेपर सवार थे। गाजी खान का सेनापती मानसिंग था। प्रतापजी ने उसे देखते ही अपने घोडे को उस दिशा में मोड लिया। चेतक ने मानसिंग के हाथी के मस्तकपर अपने अगले दोनों पैर टिकाए। उसी क्षण प्रतापजी ने मानसिंगपर अपना भाला फेंका। तब मानसिंग अपनी अंबारी के हौदे में झुक गया और स्वयं को बचा लिया। इसमें मानसिंग का महावत मारा गया। उसके कारण हाथी बिथर गया और इधर-उधर भागने लगा। हाथी की सुंड में तलवार थी। उस तलवार से चेतक के पिछले पैरपर बल के साथ वार किया गया। भागनेवाले, बिथरे हाथी को नियंत्रण में लाने हेतु साथ ही मानसिंग जीवित है यह देख कर मुघलों की सेना पुनः उत्तेजित हो गई और उसने महाराणा प्रताप को घेर लिया। उसी समय पठाण बहलोल खान ने ‘अल्ला हो अकबर’ का नारा लगाते हुए प्रतापजी पर अपनी तलवार से वार किया; परंतु पलक झपकते ही प्रतापजी ने चेतक की पीठ पर होनेवाली रिकाब में अपने पैर जमाकर खड़े हो गए और तलवार से उस पठाण पर पूरी शक्ति के साथ वार किया तथा उसके सिरपर स्थित शिरस्त्राण को छेद कर पठाण की गर्दन ही उडा दी ! प्रतापजी की इस गरजती तलवार को देखते ही मुघलों की सेना भयकंपित हो गई। घायल चेतक की पीठपर सवार हो कर महाराणा प्रताप लडते रहे। युद्धभूमि में खून की नदियां बहने लगी। इससे मुघल पीछे हट गए। महाराणा प्रताप भी घायल चेतक की पीठपर सवार हो कर वहीँ जंगल में कहीं अदृश्य हो गए।
४ आ. अपनी घायल अवस्था में भी स्वामी को सुरक्षित जगह पर पहुंचाने का दायित्व निभानेवाला ‘चेतक’
अपने स्वामी महाराणा प्रताप को जैसे सुरक्षित पहुंचाने का दायित्व ही चेतक ने निभाया ! उसका एक पैर घायल होकर नाकाम हो गया था; परंतु वह अपने ३ पैरों पर ही दौडता रहा। अंततः बली के गांव के निकट यह अपाहिज हुआ चेतक एक नदीक्षेत्र से छलांग लगाने में असमर्थ रहा। वहीँ उसी घायल अवस्था में थकावट के कारण गिर पडा। महाराणा प्रताप ने अपने इस स्वामीभक्त घोडे को एक विशाल ईमली वृक्ष के नीचे बिठा दिया। शिवमंदिर की छाया में चेतक की पीठपर रखी हुई युद्ध की सामग्री एवं रिकब छोडने हेतु वे वहां बैठ गए। उसी समय चेतक ने उनकी गोद में अपना सिर रख कर अपने प्राण त्याग दिए !
४ इ. ५० एकड की विशाल टिलीपर ‘चेतक’ घोडे की भव्य प्रतिकृति खडी की गई है तथा विश्वभर के पर्यटक प्रतिदिन वहांपर उस स्वामीभक्त घोडे का मनोहारी स्मारक देखने हेतु आते हैं !
महाराणा प्रताप ने उसी स्थानपर चेतक का अंतिमसंस्कार किया तथा आज वहांपर इस स्वामीभक्त चेतक घोडे का भव्य स्मारक खडा किया गया है। ५० एकड की इस विशाल टिलीपर जाने के लिए मुलायम सडक बनाई गई है, जिसके कारण कोई भी वाहन इस स्मारक तक सहजता से पहुंच सकता है। स्वच्छता यहां की विशेषता है। यहांपर चेतक घोडे की भव्य प्रतिकृति खडी कर दी गई है। इसलिए विश्वभर के पर्यटक प्रतिदिन इस स्वामीभक्त घोडे का मनोहारी स्मारक देखने हेतु आते हैं। इस स्मारक के समीप ही उसकी स्वामीभक्ति का इतिहास विस्तारित किया गया है, जिसे पढ़ कर आनेवाले पर्यटक रोमांचित हो जाते हैं, और इसी को ही ‘इतिहास का जतन करना’ कहते हैं !
५. और यहां रायगढ के निचे स्थित छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वामीभक्त ‘वाघ्या’ नामक श्वान के स्मारक की हुई दुर्दशा !
रायगढ के निचे स्थित छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वामीभक्त ‘वाघ्या’ नामक श्वान के स्मारक की ‘अवस्था’ देखकर, खेद होकर २ आंसू छलकने ही चाहिएं !
ऐसी कथा बताई जाती है कि, छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यू के पश्चात उनके स्वामीभक्त वाघ्या नामक श्वान ने महाराज की जलती हुई चिता में छलांग लगाकर अपनी जीवनयात्रा समाप्त की थी, उस वाघ्या की समाधी की स्थिति देखकर उसका ‘उपहास’ एवं उसका ‘मजाक ही उड़ाया गया है’ ऐसा लगता है !
६. राजस्थान के सभी राजा एवं संस्थानिकों ने बड़े चतुराई के साथ संघटित होकर सरदार पटेलजीद्वारा अधिग्रहित किये गए राजमहलों को वापस लेना तथा इन सभी राजमहलों का रूपांतरण आज सप्ततारांकित होटलों में कर उससे आज सैकडों करोडों का कारोबार किया जाना
सरदार वल्लभभाई पटेल ने सभी राजे-महाराजे एवं उनके संस्थानों को विसर्जित कर उनके राजमहल एवं संपत्ति अधिग्रहित की और उन्हें एक ठराविक राशि वेतन स्वरुप में देना शुरू किया। तब राजस्थान के सभी राजा एवं संस्थानिक बड़ी चतुराई के साथ संघटित हो गए। उन्होंने इंदिरा गांधी के सामने अपने दुखड़े सुना कर उनको पूछा, ‘‘आपने हमारे राजमहलों को अधिग्रहित किया, हमारे राजवस्र उतारे, इससे समाज में हमारा क्या स्थान रहेगा ? ऐसी स्थिति में हम जीवनयापन कैसे करेंगे ? हमें आपका ‘वेतन’ नहीं चाहिएं। आप हमारे राजमहलों को हमें लौटा दें !’’ उनकी इस मांग को स्वीकार किया गया।
संस्थान में स्थित सभी राजमहलों को उन संस्थानिकों को लौटाया गया। आज इन सभी राजमहलों का रूपांतरण सप्ततारांकित होटलों में हुआ है और आज वहांपर करोडों का कारोबार चलता है। उदयपुर का प्रमुख राजमहल ‘लेक पैलेस’ सरोवर में है। उसका आज ६५ कक्षवाला होटल हुआ है। उसका स्वामित्व राजा अरविंद मेवाड के पास ही है और टाटा का ‘ताज होटल समूह’ इसको चला रहा है। वहांपर न्यूनतम ४५ सहस्र, तो अधिकतम ५ लाख रुपए किराया होनेवाले भव्य कक्ष हैं। यह होटल सदैव ‘आरक्षित’ ही रहता है। वहां के राजा ने अपने भवनों, महलों का रूपांतरण होटलों में कर बडा अर्थकारण चलाया है। इसके लिए वहां का ‘पुरातत्त्व विभाग’ कभी आड़े नहीं आया; परंतु महाराष्ट्र का ‘पुरातत्त्व विभाग’ इस संदर्भ में सदैव ही आड़े आता रहा और उसके कारण इतिहास के शिवकालीन बुर्ज आहिस्ते आहिस्ते ढहने लग गए !
७. महाराष्ट्र में जगह जगह पर फैले हुए गढ़ एवं किलें, हमारे देश का भूषण है, अतः उनका सुचारु रूप से जतन किया जाना चाहिए; परंतु दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ !
महाराष्ट्र में स्थित गढ़ एवं किलें हमारे देश का भूषण हैं, प्रायः उनका सुचारु रूप से जतन होना चाहिए; परंतु दुर्भाग्यवश ऐसा हुआ नहीं। यूरोप में स्थित ८०० वर्ष पुराने किलें आज भी ‘जैसे के वैसे’ दिखाई पडते हैं। ‘टॉवर ऑफ लंडन’ नामक ‘भुईकोट’ (चारों ओर पानी के खंदक रहनेवाला) किला ९०० वर्ष पुराना है। उसमें स्थित हरएक विभाग एवं इतिहास कालीन सामग्री जैसी थी वैसी ही जतन की गई है। वहां के पहरेदार सैनिक भी ऐतिहासिक वेशभूषा में तथा उसी प्रकार के शस्त्रोंसहित पहरा देते हैं। इंग्लैड का विंडसर, वॉरविक, लँकस्टर आदि किलें तो इतनी अच्छी स्थिति में रखे गए हैं कि, किलों के द्वार-खिडकियों के पटल, शस्त्रास्त्र, अलंकार, दिए, झुमर एवं पुरानी वस्तुओं को आप जैसे के वैसे स्थिति में आज भी देख सकते हैं !
८. छत्रपति शिवाजी महाराज के आदर्श को सामने रखकर महाराष्ट्र में राजनीति तो चलती ही रहती है; परंतु उनके इतिहास के साक्षी बने ‘सिंधुदुर्ग’ इस समुद्री किले की तथा उसमें स्थित विश्व के एकमात्र शिवराजेश्वर मंदिर की हो रही ‘उपेक्षा’ को दुर्भाग्यपूर्ण मानना पडेगा !
(संदर्भ : साप्ताहिक ‘वज्रधारी’ (अंक ३ से ९.३.२०११)
महाराणा प्रताप, गुरु गोविंदसिंह एवं रानी लक्ष्मीबाई पर आधारित व्याख्यान सुनने के लिए हिन्दुओं के पास ‘समय’ न होना !
मैं, शिवचरित्र एवं शंभुचरित्रसहित महाराणा प्रताप, गुरु गोविंदसिंह एवं रानी लक्ष्मीबाई इन धरोहरों पर व्याख्यान प्रस्तुत करता हूं; परंतु दुर्भाग्यवश विगत २३ वर्षों में उपर्युक्त तीनों वीरोंपर आधारित २३ व्याख्यान भी नहीं हो सकें ! अन्य अनेक विषयों को मिलाकर व्याख्यानों की १५०० की संख्या पार हुई है, तो भी इसका तो खेद है ही !’
– डॉ. सच्चिदानंद शेवडे (श्रीगजानन आशीष, जनवरी २०११)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात