Menu Close

नागौर (राजस्थान) : यहां गौसेवा के लिए अस्पताल में हैं २१ एम्बुलेंस, बीमार गाय के बदले देते हैं स्वस्थ गाय !

रोजाना चार लाख का खर्च !

पैसा नहीं तो, सेवा के उद्देश्य गौसेवा करनेवाले इस चिकित्सालय को सरकारी की आेर से मदद मिलनी चाहिए, यह हिन्दुआेंकी अपेक्षा है – सम्पादक, हिन्दूजागृति

‘गैय्या लागे भगवती, ग्वाला कृष्ण स्वरूप।
इन आँखासु देखणो, फेर भारत में ओ रूप।।’

दिल को छू लेनेवाला यह श्लोक राजस्थान के नागौर जिले से ७ किलोमीटर दूर जोधपुर रोड पर बने विश्वस्तरीय गौ चिकित्सालय के मुख्य द्वार पर लगे बैनर पर बड़े अच्छरों में लिखा है। आपने भी देश के अलग-अलग हिस्सों में गौशाला जरूर देखी होगी, किंतु गौ चिकित्सालय वह भी निजी तौर पर और उपचार भी बिल्कुल मुफ्त, शायद ही कहीं देखा होगा।

राजस्थान के बीकानेर से उदयपुर जाने के रास्ते नागौर-जोधपुर सड़क एनएच-६५ पर गाय का अस्पताल देखकर हमने अपनी बस रुकवाई। बस रुकते ही वहां हरे रंग की ड्रेस पहने सेवादार हाथों में चाय का थर्मस और कप लिए हमारे पास आए और चाय पीने का आग्रह करने लगे। पानी पीने का इंतजाम भी बढ़िया। सब मुफ्त। हैरत की बात कि यह आव भगत हरेक रुकनेवाले वाहन के यात्रियों के लिए है। आपकी मर्जी दान दीजिए या नहीं। कोई जोर जबरदस्ती नहीं। यह अस्पताल श्री श्री १००८ महामंडलेश्वर स्वामी कुशालगिरी जी महाराज की देखरेख में चलता है। सरकार से कोई मदद नहीं मिलती। दाताओं के दान, चंदे से या फिर स्वामीजी के घूम-घूम कर कथा और मानस प्रवचन से मिले चढ़ावे से ही यह अस्पताल चलता है। जिनके मन में गौ माता के प्रति श्रद्धा है और दान देना चाहते हैं उन्हें नागौर जाना चाहिए क्योंकि गौशाला में दान देकर दूध का फायदा तो मिल सकता है किंतु बीमार गायों की सच्ची सेवा का अवसर शायद ही मिल सकता है।

यहां का यह अस्पताल अपने आप में अजूबा है। यहां २१ एम्बुलेंस हैं, जिनका काम ३०० किलोमीटर के दायरे से बीमार, घायल गायों या सांडों को यहां इलाज के लिए लाना है। लावारिस हो या निजी सभी की सेवा में ये एम्बुलेंस लगे हैं। खटाल में कैंसर से पीड़ित, पैर कटी, सींगों पर जख्म, पांच पैरवाली मसलन तरह-तरह की बीमारियों से पीड़ित गाय और सांड की देखभाल और इलाज इस कदर शायद ही कहीं देखने को मिले। पशु चिकित्सकों और कमांडरों की टीम सुबह से शाम तक गौसेवा में लगी रहती है। उनका उद्देश्य पैसा नहीं सिर्फ सेवा है।

दिलचस्प बात यह भी है कि स्वस्थ हो जाने के बाद गायों, सांडों को वापस उसी स्थान पर पहुंचाया जाता है, जहां से उन्हें लाया गया था। इतना ही नहीं यदि कोई अपनी निजी बीमार गाय इलाज करवाने यहां लाता है तो तत्काल स्वस्थ गाय बदले में उन्हें दी जाती है। चिकित्सालय के सेवादार सुनील बिश्नोई बताते हैं कि यहां का एक रोज का खर्च सवा चार लाख रुपए है।

अस्पताल में आधुनिक ऑपरेशन थियेटर है जहां गायों और सांडों का जरुरत के अनुसार ऑपरेशन होता है। बीमार गोवंश की दवाइयों का खर्च हरेक महीने ९ लाख रुपए का है। पौष्टिक आहार का खर्च भी करीब ९ लाख प्रति महीना है। पशु एम्बुलेंस का खर्च ५ लाख आता है। यह तो मोटामोटी खर्च का हिसाब है। सैकड़ों बीमार गायें और सांड खटाल में खड़े या बैठे हैं मगर गंदगी के नाम पर गोबर तो क्या एक कंकड़ तक नजर नहीं आता ! मसलन, सफाई देखते ही बनती है। स्वच्छता का पूरा ध्यान है। कई गाय और सांड तेजाब और बन्दूक के छर्रे से जख्मी दिखी। कुछ बेरहम लोग इन पर तेजाब फेंक देते हैं। कुछ प्लास्टिक के थैली खाकर बीमार हुए, नतीजतन ऑपरेशन करना पड़ा। इतना ही नहीं यहां कछुआ, कबूतर, चील, हिरण, लववर्ड जैसे वन्य जीवों का भी उपचार किया जाता है। इनके लिए अलग-अलग जालीदार घर बने हैं। इनकी देखभाल में टीम चौबीस घंटे लगी है।

स्त्रोत : जनसत्ता

Related News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *