तथाकथित बुद्धिप्रामाण्यवादियों को तमाचा ! इस विषय में अंनिस क्या कहना चाहती है ?
पुणे : अंत में आईनस्टाईनसमान वैज्ञानिक भी अज्ञात शक्ति को स्वीकृति देता है । विज्ञान को विश्व के संबंध में जानकारी लेने की तीव्र इच्छा होती है एवं यहीं अध्यात्म की भूमिका आरंभ होती है । विज्ञान कि मर्यादा जहां समाप्त होती है, वहां से अध्यात्म आरंभ होता है । वैश्विक कीर्ति के शास्त्रज्ञ डॉ. सुबोध पंडित ने ऐसा प्रतिपादित किया । विश्वशांति केंद्र (आळंदी), माईर्स एम.आइ.टी, पुणे की ओर से ७ फरवरी को आयोजित एक विशेष व्याख्यान के अवसर पर ‘अध्यात्म एवं धर्म का पुरस्कार करने के पीछे विज्ञान की भूमिका’ विषय पर वे बोल रहे थे । इस अवसर पर माईर्स एम. आइ.टी. संस्था के अध्यक्ष डॉ. विश्वनाथ कराड, विचारक डॉ. एडिसन सामराज, नागपुर विद्यापीठ के भूतपूर्व कुलगुरु डॉ. एस.एन. पठाण आदि के साथ अन्य मान्यवर उपस्थित थे ।
डॉ. सुबोध पंडित ने कहा कि, विद्यार्थियों ने कहना चाहिए कि, मुझे यह ज्ञात नहीं है; परंतु वह जान लेने की मेरी सिद्धता है । कोई ऐसा दावा न करे कि मैं सर्वज्ञ हूं । कोई एक घटना किसप्रकार हुई, यह जान कर उस पर प्रयोग करे, परंतु ध्यान में रहे कि, परमेश्वर ही सर्वाेच्च शक्ति है । भौतिक शास्त्र का अर्थ है ज्ञान एवं शांति अर्थात सुसंवाद का प्रकटीकरण एवं अध्यात्म का अर्थ है आत्म्या से एकरूप होना । जहां प्रज्ञा का संबंध आता है । धर्म अर्थात विशेष चौखट में अध्यात्म । विज्ञान एवं तत्त्वज्ञान एक दूसरे से संबंधित होते हैं ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात