कार्तिक कृष्ण पक्ष प्रतिपदा, कलियुग वर्ष ५११६
महाभयंकर भूकंप एवं सुनामीके भयंकर आघातमें जापान उद्ध्वस्त हो गया । निसर्गके प्रकोपका यह भीषण स्वरूप देखकर पूरा विश्व कांप उठा । मन द्रवित हुए; परंतु इस महासंहारक संकटकी अवधिमें भी जापानी मनुष्यने विश्वको अपने सदगुणोंका परिचय करवाया । केवल हिन्दुस्थान ही नहीं, अपितु प्रत्येक राष्ट्रके लिए जापानसे सीखनेयोग्य दस बातें विश्वके समक्ष आइं ।
भारतीयोंको यह ध्यानमें आने हेतु यह लेख…
१. प्रेम : उपाहारगृहोंने खाद्यपदार्थोंका भाव न्यून किया । धनवान व्यक्तियोंने निर्धन लोगोंपर ध्यान दिया । ए.टी.एम् यंत्रकी सुरक्षा हटा दी गई; परंतु एक भी ए.टी.एम. नहीं लूटा गया ।
२. संयम : फटी हुई भूमि एवं लहरोंके ताण्डवमें जापानी मनुष्य सब कुछ गंवा बैठा; परंतु अति दुःखके कारण छाती पीटनेवाले एक भी जापानी मनुष्यका छायाचित्र विश्वके समक्ष नहीं आया ।
३. प्रतिष्ठा : संकटकी कालावधिमें भी जापानी मनुष्यने एक-दूसरेकी प्रतिष्ठा संजोकर रखी । पानी अथवा अनाजके लिए लम्बी लम्बी पंक्तियां अवश्य बनाई गइं; परंतु इन पंक्तियोंमें कोई किसीपर कभी क्रोधित नहीं हुआ । अपशब्द तो दूर, साधारणसे क्रोधकी दृष्टि भी किसीने नहीं डाली ।
४. भान : यहांके लोगोंको इस बातका भान है कि प्रत्येक व्यक्तिको कुछ न कुछ मिलना चाहिए । इसीलिए किसीने भी आवश्यकतासे अधिक वस्तु क्रय कर जमाखोरी नहीं की । ‘आवश्यकताके अनुसार’ ही उनकी नीति थी ।
५. सुव्यवस्था : वास्तविक रूपसे ऐसे महासंकटके समय चोरी आदि घटनाएं बहुत होती हैं । परंतु जापानमें एक भी दुकान नहीं लूटी गई । डकैती भी नहीं की गई । यातायात भी नियमके अनुसार चालू थी । कहीं भी ओवरटेकिंगकी शीघ्रता नहीं थी । जो थी वह समझदारी थी !
६. त्याग : ५० श्रमिकोंने अपने प्राणोंकी चिंता न करते हुए अणुभट्टियोंको शांत करने हेतु समुद्रका पानी निकालनेका कार्य किया । उनके शौर्य एवं त्यागका मूल्य कैसे चुकाएंगे ?
७. भान : एक दुकानमें बिजली बंद होनेपर ग्राहकोंने क्रय करने हेतु हाथमें ली वस्तुएं पुनः टेबलपर रख दीं एवं वे शांतिसे दुकानके बाहर आकर रुके रहे ।
८. प्रशिक्षण : इस संकटकी कालावधिमें संघर्ष कैसे करें तथा कैसी सावधानी बरतें, बडे लोगोंने छोटोंको इसकी शिक्षा दी । जानकार लोगोंने अनजान लोगोंको समझाया । प्रत्येक व्यक्तिद्वारा दूसरेपर ध्यान दिया गया ।
९. प्रसिद्धिमाध्यम : प्रसिद्धिमाध्यमोंका कार्य प्रशंसायोग्य ही था । भूकम्प एवं सुनामी जैसी आपत्तियोंके समाचार अत्यंत संयमपूर्वक दिए गए । छलकती पत्रकारिताके लिए वहां कोई स्थान नहीं था । दिखावा तो बिलकुल ही नहीं था ।
१०. निर्माणकार्य : जपानी तंत्रज्ञोंने यहांके निर्माणकार्य इतने सुदृढ रूपसे किए हैं कि वे गिरे ही नहीं ।
देखिये कुछ उदहारण –
(इसके विपरीत सितंबर २०१४ में जम्मू-कश्मीरमें मेघके फटनेसे जो आपत्ति आई, उसका सामना करते समय पानीमें फसें नागरिकों को बाहर निकालते समय विचित्र अनुभव आए । घरके चारों बाजूमें पानी रहनेसे घरकी छतपर आश्रय लिए नागरिकोंने संकटसे बचाने हेतु आए वायुदलके हेलिकॉप्टरपर पथराव किया । सैनिकोंके साथ मारपीट की एवं सैनिकोंद्वारा दी गई सूचनाओंको भंग किया । अपने प्राण संकटमें डालकर सैनिकोंके साथ नागरिकोंको बचाते समय अपना ही विचार करनेवाले कश्मीर घाटीके नागरिकोंने अनेक अमानवीय कृत्य किए । इसके पश्चात भी सैन्यद्वारा अपना कार्य भली-भांति किया गया । भारतीयों में जापानियों के समान नैतिकता नहीं है; इसका कारण है, राजा कालस्य कारणम् । – सम्पादक, दैनिक सनातन प्रभात)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात