पश्चिम बंगाल किस प्रकार इस्लामी कट्टरवाद के चंगुल में फंस चुका है, वह यहां एक के बाद एक प्रकाश में आ रहे घटनाक्रमों से स्पष्ट है। अभी हाल ही में प. बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्षा ममता बनर्जी ने जिस पर्व, सरस्वती पूजा को बहाना बनाकर १ फरवरी को लोकसभा में पेश हुए बजट का बहिष्कार किया था, उसी उत्सव से संबंधित कार्यक्रमों को इस्लामी कट्टरपंथियों ने प. बंगाल के कुछ विद्यालयों में नहीं होने दिया।
जब राज्यसभा में मनोनीत सांसद स्वप्र दासगुप्ता ने उक्त मामला सदन में उठाना चाहा, तो तृणमूल सांसदों ने हंगामा शुरू कर दिया। क्या यह सत्य नहीं कि भारत में धर्म-निरपेक्षतावादीों के लिए असहिष्णुता और धार्मिक स्वतंत्रता के हनन पर चर्चा का मापदंड केवल चयनात्मक है ?
प. बंगाल में सरस्वती पूजा की एक लम्बी परम्परा रही है। इस अवसर पर प्रदेश सहित कई राज्यों में सार्वजनिक अवकाश भी होता है। घरों के अतिरिक्त छात्र और शिक्षक विद्यालयों में विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करते हैं किन्तु प. बंगाल के राजरहाट, हावड़ा सहित कई विद्यालयों में कट्टर मुस्लिम संगठनों के अव्यावहारिक हस्तक्षेप के कारण यह पूजा नहीं हो सकी !
पूरा मामला वर्ष दिसम्बर २०१६ का है, जब तेहट्टा में कुछ छात्र, मुस्लिम कट्टरपंथियों के प्रभाव में आकर पैगंबर मोहम्मद की जयंती ‘नबी दिवस’ पर स्कूल परिसर में कार्यक्रम के आयोजन की मांग करने लगे। इस संबंध में जमात-ए-इस्लामी हिन्द की प्रदेश इकाईद्वारा विद्यालयों में पुस्तकें भी बांटी गई थीं। तेहट्टा स्कूल प्रशासनद्वारा नबी दिवस पर कार्यक्रम को स्वीकृति नहीं दिए जाने पर विघटनकारी शक्तियों ने हंगामा शुरू कर दिया। शिकायत के बाद भी स्थानीय पुलिस मूकदर्शक बनी रही !
जिसके कारण स्कूल कट्टरपंथियोंद्वारा नियमित रूप से बाधित होने लगा। अंततः प्रशासन के आदेश पर स्कूल को अल्पकाल के लिए बंद करना पड़ा। बसंत पंचमी के दिन जब स्कूली छात्रों ने हर वर्ष की तरह इस साल भी सामान्य रूप से सरस्वती पूजा का आयोजन करना चाहा, तो स्थानीय इस्लामी कट्टरपंथियों ने इसका पुरजोर विरोध शुरू कर दिया। बंद पड़े स्कूल को खोलने व सरस्वती पूजा को लेकर जब छात्रों ने मार्च निकाला, तो इसने हिंसक रूप धारण कर लिया। पुलिस के लाठीचार्ज में कई छात्राएं घायल हो गईं।
प. बंगाल की उक्त घटना, उसी रुग्ण दर्शन और कुत्सित विचारधारा से जनित है, जिसने वर्ष १९४७ में वामपंथियों की सहायता से देश को धर्म के नाम पर दो टुकड़ों में बांट दिया था। उसी मानसिकता को बीते कई दशकों से झूठे पंथनिरपेक्षकोंद्वारा केवल वोटबैंक के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। ममता सरकार का कट्टर इस्लामी अनुयायियों के प्रति प्रेम सर्वविदित है। हाल ही में सैकुलरवाद के नाम पर स्कूल पुस्तिकाओं में रामधेनु (इंद्रधनुष) का नाम बदल कर ‘रॉन्गधेनु’ (रंगधेनु) करना, इसकी तार्किक परिणति है !
धुलागढ़ की साम्प्रदायिक अहिंसा पर मीडिया रिपोटर्स को भी ममता बनर्जी गलत ठहराती रहीं किन्तु पीड़ितों का कहना है कि, प्रदेश सरकार उनकी सहायता करने के विपरीत उनके साथ हुईक्रूरता और जघन्यता पर पर्दा डालने का प्रयास कर रही है। गत वर्ष मुहर्रम के कारण दुर्गा पूजा में प्रतिमाओं के विसर्जन पर भी इसी सरकार ने आंशिक पाबंदी लगाई थी। जिसे कलकत्ता उच्च न्यायालय ने धर्म आधारित निर्णय बताकर सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी !
प. बंगाल में गत कई माह से बहुसंख्यकों के प्रति असहिष्णुता निरंतर बढ़ रही है किन्तु धर्म-निरपेक्षतावादी, वामपंथी और मीडिया का इस पर मौन है। वर्ष २०१५ में दादरी में अखलाक की हत्या के बाद कई सप्ताहों तक इस घटना को समाचारपत्रों ने असहिष्णुता के नाम पर सुर्खियों में जगह दी, टी.वी. स्टूडियो की बहस में चर्चा का केन्द्र बनी। राजनेताओं से लेकर अभिनेताओं और साहित्यकारों व बुद्धिजीवियों को देश असुरक्षित लगने लगा, पुरस्कार वापसी की मुहिम शुरू हो गई परन्तु प. बंगाल की दु:खद और चिंताजनक घटनाक्रमों पर सन्नाटा फैला हुआ है, क्यों ?
भारत में मुस्लिमों की जनसंख्या कितनी है ?
२०११ की जनगणना के अनुसार, देश की कुल जनसंख्या में मुसलमानों का हिस्सा २००१ में १३.४ प्रतिशत से बढ़कर १४.२ प्रतिशत हो गया है। १९९१ से २००१ के दशक की २९ प्रतिशत वृद्धि दर की तुलना २००१-२०११ के बीच मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि दर घटकर २४ प्रतिशत अवश्य हुई, किन्तु यह अब भी राष्ट्रीय औसत १८ प्रतिशत से अधिक है। देश के जिन राज्यों में मुस्लिमों की जनसंख्या सबसे अधिक है, उनमें क्रमश: जम्मू-कश्मीर (६८.३ प्रतिशत) और असम (३४.२ प्रतिशत) के बाद प. बंगाल (२७.०१ प्रतिशत) तीसरे स्थान पर आता है। जबकि केरल (२६.६ प्रतिशत) चौथे स्थान पर है !
प. बंगाल की ९.५ करोड़ की जनसंख्या में २.५ करोड़ से अधिक मुसलमान हैं। २९४ विधानसभा क्षेत्रों में से लगभग १४० विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम निर्णायक भूमिका में हैं। १९४७ में विभाजन के बाद प. बंगाल में जहां प्रत्येक जनगणना के साथ हिन्दुओं की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है, वहीं तुलनात्मक रूप से मुसलमानों का अनुपाततेजी से बढ़ा है। १९५१ की जनगणना में प. बंगाल की कुल जनसंख्या २.६३ करोड़ में मुसलमानों की जनसंख्या लगभग ५० लाख थी, जो २०११ की जनगणना में बढ़कर अढ़ाई करोड़ हो गई। प. बंगाल में २०११ में हिन्दुओं की १०.८ प्रतिशत दशकीय वृद्धि दर की तुलना में मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर दोगुनी यानी २१.८ प्रतिशत है। मुस्लिमों की यह दर सदैव ही हिन्दुओं के साथ-साथ प. बंगाल की औसत वृद्धि दर की तुलना में काफी अधिक रही है !
ऐसा क्यों है कि, बंगलादेश की सीमा से सटे प. बंगाल, बिहार और असम के अधिकतर क्षेत्रों का राजनीतिक व सांस्कृतिक परिदृश्य बदल गया है ? प. बंगाल के सीमावर्ती उप-जिलों की बात करें, तो ४२ क्षेत्रों में से ३ में मुस्लिम ९० प्रतिशत से अधिक, ७ में ८०-९० प्रतिशत के बीच, ११ में ७०-८० प्रतिशत तक, ८ में ६०-७० प्रतिशत और १३ क्षेत्रों में मुस्लिमों की जनसंख्या ५०-६० प्रतिशत तक हो चुकी है। सीमावर्ती क्षेत्रों में मुस्लिम जनसंख्या में अभूतपूर्व वृद्धि के पीछे केवल महिलाओं की प्रजनन क्षमता ही एकमात्र कारण नहीं हो सकता, क्योंकि यह प्राकृतिक मानव उत्पत्ति के सभी वैज्ञानिक तर्कों से दूर है। स्पष्ट है कि, इस वृद्धि का बड़ा कारण बंगलादेशी घुसपैठ और बलपूर्वक धर्मान्तरण है !
यदि मुसलमानों की उच्च जन्म दर के लिए गरीबी और निरक्षरता को जिम्मेदार ठहराया जाए, तो भी वह पूर्ण रूप से गलत होगा। केरल का मुसलमान किसी भी भारतीय मानक से न ही निरक्षर है और न ही गरीब ! फिर भी २०११ में केरल का मुस्लिम अनुपात २६.६ प्रतिशत तो दशकीय वृद्धि दर १२.८४ प्रतिशत रहा था !
करोड़ों की संख्या में अवैध रूप से घुसे बंगलादेशी और म्यांमारी मुस्लिम आज देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन चुके हैं। इस समय बंगलादेश में लोकतांत्रिक शक्तियां और इस्लामी कट्टरपंथी वर्ग आमने-सामने हैं। वहां गैर-मुस्लिम मौत के घाट उतारे जा रहे है। यही कारण है कि, बंगलादेश से सटे प. बंगाल जैसे राज्यों में इस्लामी कट्टरपंथी संगठनों के पैर मजबूत हुए हैं, जो अपने वमनजनक एजैंडे को राज्याश्रय के माध्यम से पूरा कर रहे हैं, तेहट्टा प्रकरण उसी का सटीक चित्रण है !
भारत में हिन्दू विरोधी मानसिकता और कट्टरपंथियों को आशीर्वाद केवल प. बंगाल तक सीमित नहीं है। समाजवादी पार्टी शासित उत्तर प्रदेश में कैराना आदि कस्बों से हिन्दुओं का पलायन, देहली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवालद्वारा भेंट स्वरूप भगवद्गीता लेने से इंकार करना और देहली के मंत्री इमरान हुसैनद्वारा हिन्दू रीति-रिवाजों के अंतर्गत दाह संस्कार को प्रदूषण बढऩे का कारण बताना, तथाकथित धर्म-निरपेक्षतावादीयों द्वारा हिन्दुओं के प्रति घृणित भाव को ही रेखांकित करता है !
सैकुलरवाद के नाम पर जब तक जिहादी मानसिकता को राज्य संरक्षण मिलता रहेगा, तब तक तेहट्टा जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहेगी !
स्त्रोत : पंजाब केसरी