इस्लामाबाद : पाकिस्तान की संसद के उच्च सदन सीनेट ने ऐतिहासिक हिंदू मैरिज बिल को पास कर दिया है। अब इसके बाद देश में हिंदुओं की विवाह को कानूनी दर्जा मिलने का रास्ता साफ भी हो गया है। गौरतलब है कि, वर्ष २०१६ के सितंबर महीने में पाकिस्तान के संसद के निचले सदन नेशनल असेंबली ने इस विधेयक पर अपनी मुहर लगा दी थी। तो वहीं यह विधेयक देश के नेशनल असेंबली ६९ वर्ष बाद उपस्थित किया गया था।
इस विधेयक के कानून बनने के बाद अब पाकिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यक हिंदुओं को अपना विवाह का पंजीकरण कराने का अधिकार भी मिल गया। ध्यान हो कि, पाकिस्तान की १९ करोड़ की आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी १.६ फीसदी है। वर्ष १९४७ में देश बंटवारे के बाद पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं के पास कानूनी तौर पर ऐसा तरीका नहीं था जिससे वो अपना विवाह का पंजीकरण करा सकें। तो वहीं देश के अन्य अल्पसंख्यक समुदाय ईसाई लोगों के लिए विवाह से जुड़ा १८७९ का एक कानून है।
पाकिस्तान की सत्ताधारी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज विधेयक के समर्थन में है। पाकिस्तान के कानून मंत्री ज़ाहिद अहमद ने सीनेट में हिंदू मैरिज बिल को उपस्थित किया, जिसे बिना किसी विरोध या आपत्ति के पास कर दिया गया है। तो वहीं अभी तक अल्पसंख्यक हिंदुओं को पंजीकरण के नाम पर विवाह की तस्वीरों से काम चलाना पड़ता है। लॉ एंड जस्टिस की स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट पर विधेयक को पिछले वर्ष पाक संसद में उपस्थित किया गया था।
गौरतलब है कि, इससे पहले २ जनवरी को मानवाधिकार पर पाक संसद के सीनेट की कार्यकारी कमिटी ने इसे बहुमत के साथ पास किया था। यह पाकिस्तानी हिंदुओं का पहला पर्सनल लॉ है, जो पंजाब, बलोचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में लागू होगा. सिंध में पहले से अलग हिंदू मैरिज लॉ है।
जानें हिन्दु मैरिज बिल के विषय में
इस नए विधेयक में हिंदुओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु १८ वर्ष रखी गई है। वहीं अन्य धर्मों में विवाह के लिए लड़के की आयु कम से कम १८ जबकि लड़की की आयु १६ होनी चाहिए। इससे कम आयु में विवाह करने पर पाकिस्तान में ६ महीने की जेल और ५ हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान बताया गया है।
सूत्रों के अनुसार, विधेयक में कहा गया है कि हिंदुओं की विवाह पंडित करवाएंगे, लेकिन विवाह का पंजीकरण उसे रजिस्ट्रार के पास ही कराना होगा। स्टैंडिंग कमिटी ने विवाह के लिए लड़के और लड़की की आयु कम से कम १८ वर्ष रखने पर सहमति दे दी है। तो वहीं विवाह के बाद लड़का और लड़की आपसी सहमति से एक दूसरे से अलग भी हो सकते हैं। हालांकि इसके उन्हें न्यायालय से इजाजत लेनी होगी।
स्त्रोत : राजस्थान पत्रिका