आठवां ‘भारतीय युवा विज्ञान कांग्रेस’ का अनावरण समारोह
मुंबई : यहां के विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित किए गए आठवे ‘भारतीय युवा विज्ञान कांग्रेस’ के अनावरण अवसर पर समुद्रशास्त्रज्ञ डॉ. अरविंद उंटवाले संबोधित कर रहे थे। अपने संबोधन में उन्होंने प्रतिपादित किया कि, ‘वेद विज्ञानसंपन्न हैं। वेदों के श्लोकों में विज्ञान अतंर्भूत हुआ है। अतएव आधुनिक विज्ञान की जडें वेदों में समाविष्ट हैं। आधुनिक वैज्ञानिक बनने का ध्येय रखनेवाले युवक यदि प्राचीन धर्मग्रंथों का अभ्यास करें, तो उनके लिए विज्ञान के अनेक द्वार एवं क्षितिजें सामने आएंगी !
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डॉ. अरविंद उंटवाले ने युवकों को किए मार्गदर्शन के महत्त्वपूर्ण सूत्रं कुछ इस प्रकार हैं . . .
१. प्राचीन इतिहास का तथा ऋषि-मुनीद्वारा किए गए कार्य का समाज ने गहन विचार करना चाहिए। ऋषि-मुनियों ने यह ज्ञान ध्यान में प्राप्त किया है। वेदों के श्लोंकों का विचार केवल उपरी तौर पर न करें !
२. यह दुर्दैव की बात है कि, युवा पिढी वैज्ञानिक प्राचीन ज्ञान प्राप्त करने के संदर्भ में उदासीन है। वेदों का ज्ञान सांकेतिक लिपी में है। किंतु यह बात सभी के ध्यान में नहीं आ सकती। साथ ही सभी ने इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि, यदि विज्ञान में प्रगति करते हुए आगे बढना है, तो इतिहास का विस्मरण नहीं करना चाहिए। यदि संस्कृत के अभ्यास से वेदों की सांकेतिक भाषा सर्वसाधारण व्यक्तियों को अनुवादित करते हुए स्पष्ट की गई, तो ही वेदों की महानता सभी के ध्यान में आएगी। ग्रहों की प्राचीन, अर्वाचीन तथा भविष्य की परिक्रमा केवल वेदाभ्यास के कारण की ज्ञात हो सकती है। ग्रहों की स्थिति के साथ-साथ अनेक विषय वेदोंद्वारा ही सीख सकते हैं !
३. आधुनिक वैज्ञानिक वेदों के संदर्भ में अनभिज्ञ हैं; क्योंकि उन्हें संस्कृत भाषा नहीं आती। उन्होंने वेदों को पढ़ा भी नहीं है। ‘वेदों में वैज्ञानिक जानकारी ‘अतिरंजित’ स्वरूप में दी गई है !’, ऐसा कुछ वैदिक अभ्यासकों का मत है। किंतु वेदों में अनेक तात्त्विक समीकरणं तथा शास्त्रीय कक्षा से बाहर होनेवाले अलग अलग विषयों का गहरा ज्ञान अंतर्भूत है। ऋषियों ने ध्यान में शक्ति प्राप्त की है तथा वे परग्रहों पर भी जाकर आए हैं !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात