शिमला : भगवान शिव को ऐसे स्थान अधिक पसंद हैं जिनका संबंध तपस्या से है। यूं तो संपूर्ण भारत में ही शिव के अनेक मंदिर हैं किंतु उत्तराखंड और हिमाचल के पर्वतीय क्षेत्रो में ऐसे कई चमत्कारी मंदिर हैं, जहां श्रद्धालु भोलेनाथ को नमन करने के अलावा उस मंदिर से जुड़ी प्राचीन व अलौकिक मान्यताओं के कारण भी दर्शन करने आते हैं।
पढ़िए इस मंदिर की संपूर्ण कथा . . .
ऐसा ही एक अनोखा मंदिर कांगड़ा जिले के इंदौरा में स्थित है। यहां भगवान शिव काठगढ़ महादेव के नाम से पूजे जाते हैं। यहां शिवलिंग दो भागों में बंटा हुआ है। आधा नर और आधा नारी यानी आधे भाग में भगवान शिव और शेष आधे में मां पार्वती का वास है। शिवलिंग से जुड़ी एक और अनोखी बात है कि दोनों हिस्सों में फासला विभिन्न तिथियों में कम-ज्यादा होता रहता है।
ब्रह्मा-विष्णु को दिए थे दर्शन
शिवलिंग से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी है। कहा जाता है कि एक बार ब्रह्मा और विष्णु के बीच यह विवाद हो गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है? यह स्थिति देखकर भगवान शिव वहां अनंत ज्योति के रूप में प्रकट हुए।
अब ब्रह्मा और विष्णुजी उस ज्योति स्तंभ का आदि और अंत जानने के लिए जुट गए। विष्णु पाताल तक चले गए किंतु अंत नहीं मिला। ब्रह्मा ने भी आकाश की ऊंचाई स्पर्श कर ली किंतु भगवान शिव का न तो कोई आदि बिंदु मिला और न अंत।
इसके बाद भोलेनाथ प्रकट हुए और बोले, आप दोनों देव समान हैं। ब्रह्मा और विष्णुजी ने भगवान शिव को नमन किया। ऐसी मान्यता है कि वह दिव्य ज्योति स्तंभ ही बाद में काठगढ़ महादेव के रूप में पूजित हुआ।
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार इसका उदय फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुआ था। शिवलिंग के दोनों भागों के बीच अंतर घटता-बढ़ता रहता है। शिवरात्रि के दिन दोनों का मिलन हो जाता है।
इस शिवलिंग से कई ऐतिहासिक मान्यताएं भी जुड़ी हैं। कहा जाता है महान योद्धा सिकंदर ने भी शिव की शक्ति को महसूस किया था। उसने एक फकीर को यहां भगवान शिव की पूजा करते हुए देखा तो वह उसकी भक्ति से प्रभावित हुआ।
उसने फकीर को प्रलोभन दिया कि मेरे साथ यूनान चलिए, मैं आपको दौलत से मालामाल कर दूंगा, किंतु फकीर ने उसकी दौलत को ठोकर मारते हुए कहा, तुम थोड़ा पीछे हटो ताकि मुझ तक सूर्य का प्रकाश आ सके।
इसके बाद फकीर फिर अपने प्रभु की भक्ति में लीन हो गया। कहा जाता है कि सिकंदर ने भगवान शिव के मंदिर के लिए भूमि को समतल करवाया और चारदीवारी व चबूतरे भी बनवाए।
महाराजा रणजीत सिंह जब गद्दी पर बैठे तो वे भी यहां भगवान को प्रणाम करने आते थे। हर शुभ काम में वे यहां का जल मंगवाते थे। भगवान श्रीराम के भाई भरत भी यहां आते थे। जब वे अपने ननिहाल जाते तो काठगढ़ में भोलेनाथ का पूजन जरूर करते थे। आज भी यहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं और भगवान शिव के इस चमत्कार को नमस्कार करते हैं।
स्त्रोत : राजस्थान पत्रिका