प.पू. पांडे महाराजजी का अनमोल विचारधन
३.५.२०१६ के दैनिक सनातन प्रभात में ‘श्रीयंत्र का निर्माण मानवीय न होकर परग्रहवासियोंद्वारा होने का एलियनवादी अनुसंधानकर्ताओं का दावा’ इस शीर्षक के अंतर्गत जानकारी प्रकाशित हुई है। यह श्रीयंत्र १३ मील लंबाई का है तथा वर्ष १९९० में अमेरिका के आरेगॉन के सूखे सरोवर में रहस्य उत्पन्न हुआ। आज विदेश के लोगों को श्रीयंत्र के संदर्भ में व्याप्त रहस्य ध्यान में आया है; किंतु,भारत देश मूलरूप से ही श्रीचक्रांकित है, यह निम्न दिए गए विवेचन के आधारपर स्पष्ट होगा !
भौगोलिकदृष्टि से भारत देश के मानचित्र में श्रीयंत्रकी रचना
हमारा भारत देश आरंभ से ही ‘श्रीयंत्रांकित’ है ! उपर का त्रिकोण हिमालय, अरवली एवं सातपुडा पर्वतों से मिलाकर बना है। विंध्य पर्वत नीव होनेवाला तथा बाजू की दो पूर्वघाटियां एवं पश्चिम घाटी को मिलाकर नीचला त्रिकोण बना है। सातपुडा एवं विंध्य पर्वत समांतर रेखा में बद्ध हैं तथा उनके बीच नर्मदा नदी बहती है। इन पर्वतों से बने श्रीचक्र के कारण ही भारत में आध्यात्मिक चैतन्यशक्ति का विहार हो रहा है। इसके अतिरिक्त पूरे भारत में चैतन्ययुक्त तीर्थस्थान प्रस्थापित हुए हैं तथा उसी के कारण भी चैतन्य का प्रभाव होता है।
कुछ उदहारण
इसीलिए इसी भूमिपर ईश्वर एवं साधु-संतों का अवतारकार्य हुआ है तथा अभी भी संतों की उत्पत्ति हो रही है और यहां ईश्वरीय शक्ति का वास है। अवतार कार्य ऐसी ही भूमिपर होता है; इसीलिए ऐसी भारत भूमिपर जन्म लेना, भाग्य का लक्षण माना जाता है; क्योंकि यहां गुरुकृपाद्वारा साधना कर जीव अपना कल्याण एवं उत्कर्ष साधकर ईश्वर प्राप्ति कर लेता है। अतः ये जीव जन्म-मृत्यु के फेरे से मुक्त हो जाते हैं !
– प.पू. परशराम माधव पांडे, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात