नई देहली : १८ साल की लाम्या हाजी बशर ताहा इराक में रहती हैं। उन्होंने अपने देश में इस्लामिक स्टेट (आयएस) का अत्याचार देखा है। उनके देश के कुछ हिस्सों पर अब भी जहां आतंकी संगठन आयएस का कब्जा है, वहीं इस कब्जे को हटाने के लिए उन्होंने पूरी दुनिया को अपनी कर्मभूमि बना ली है। आज लाम्या ने अलग पहचान बनाई है, जो इराक के अल्पसंख्यक यज्दी समुदाय पर आयएस के कहर को दुनिया के सामने रख रही हैं। लाम्या खुद कभी आयएस की कैद में प्रताड़ना झेल चुकी हैं।
बात २०१४ की है जब लाम्या १५ साल की थीं। वह ९वीं की छात्रा थीं। १५ अगस्त के दिन लाम्या के गृहनगर कोचो में आयएस का आक्रमण हुआ और वहां के पुरुषों का कत्ल कर दिया गया। केवल एक जगह ४०० पुरुषों को मार दिया गया था। महिलाओं और बच्चों को गुलाम बना दिया गया। लाम्या और उनकी बहनें भी उन्हीं बच्चों में शामिल थीं।
लाम्या अपनी कहानी खुद बताने के लिए सोमवार को देहली में शुरू हुए एशिया सुरक्षा सम्मेलन में पहुंचीं। लाम्या ने बताया कि अगवा होने के दौरान मुझे ५ बार बेचा गया, हर तरह से प्रताड़ित किया गया। कई बार खाना-पानी नहीं मिलता था। मोसुल में बम और आत्महत्या जैकेट बनाने के लिए मजबूर किया गया और फिर सीरिया भेज दिया गया। लाम्या ने कई बार भागने की कोशिश की, किंतु नाकाम रहीं। लाम्या के भाई और पिता को फांसी दे दी गई। लाम्या और उनकी बहनों ने आत्महत्या करने का प्रयास भी किया ।
पिछले साल अप्रैल में उन्हें छुड़ाने की कोशिश कामयाब हो गई। उनके दूर के रिश्तेदारों ने स्थानीय तस्करों को पैसे देकर लाम्या को छुड़ाने की तैयारी कर ली। वह जब इराक सरकार की सीमा में घुसने जा रही थीं, तभी आयएस आतंकवादियों की बिछाई बारूदी सुरंग में विस्फोट हो गया। चोटिल लाम्या की आंखों पर सबसे गहरा असर पड़ा। आखिर जर्मनी में उनका इलाज कराया गया और एक आंख बचने की उम्मीद बताई जा रही है।
उन्होंने कहा कि आयएस की कैद में मुझे इस बात से हिम्मत मिली कि मुझे दुनिया को अपनी कहानी बतानी है। आज मैं वही कर रही हूं, किंतु मेरी धरती पर हालात नहीं बदल रहे हैं। आज भी करीब ३५०० महिलाएं आयएस की कैद में हैं। उम्मीद है कि दुनिया एक दिन आयएस पर काबू पाएगी। उन्होंने बताया कि कैद में उन्होंने एक भारतीय लड़के को देखा था, जो आत्मघाती हमलावर बनना चाहता था।
स्त्रोत : नवभारत टाइम्स