कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी, कलियुग वर्ष ५११६
. . . इससे हिन्दुओं को धर्म-शिक्षा की कितनी आवश्यकता है, यह ज्ञात होता है !
आगरा (उत्तर प्रदेश) : जिन दुर्गा प्रतिमाओं की लोगों ने धूमधाम से पूजा-अर्चना कर नदी में विसर्जित किया, आज वह अपमानित हो रही हैं। शहर में प्रशासन द्वारा तय किए गए स्थलों पर श्रद्धालुओं ने तो देवी की प्रतिमा विसर्जित कर दी, लेकिन पानी उतरते ही वे बाहर आ आईं। हालत यह है कि अब उनके चारों तरफ आवारा पशु घूमते नजर आ रहे हैं। वहीं, इनकी बेकद्री को देख आस्थावान लोग प्रशासन और प्रतिमा विर्सजन करने वालों को कोसते नजर आ रहे हैं। हालांकि, अभी तक किसी ने इसके लिए कोई कदम नहीं उठाया है।
बताते चलें कि अभी हाल ही में दशहरा का त्योहार बीता है। इस दौरान शहर भर में दुर्गा की हजारों प्रतिमाएं स्थापित की गई थीं। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार, शहर के जिन घाटों पर प्रशासन ने कृत्रिम कुंडों का निर्माण कराया था उनमें लगभग १० हजार १४५ से अधिक प्रतिमाएं चिन्हित की गई थी। हालांकि, प्रशासन के सख्त कदम के बाद भी कुछ लोगों ने चोरी छिपे यमुना में भी प्रतिमाओं का विर्सजन किया था।
खुले में जस की तस पड़ी हैं मूर्तियां
ऐसे में लापरवाही से विसर्जित मूर्तियां अब सूखे में जस की तस पड़ी हुई हैं। खुले में पड़ी दुर्गा, लक्ष्मी और गणेश आदि मूर्तियों के आस-पास आवारा पशु घूम रहे हैं, लेकिन प्रशासन से लेकर किसी का इस ओर ध्यान नहीं है। दूसरी ओर, वहां आते-जाते लोग उन प्रतिमाओं को गंदगी में देखकर कोस जरूर रहे हैं, लेकिन कोई भी व्यक्ति अभी तक इसके लिए कोई सही कदम नहीं उठाया है।
क्या कहते हैं संत
मंदिर के एक संत का कहना है कि लोग जिस भक्ति-भावना से देवी-देवताओं की मूर्तियां रखकर पूजा करते हैं, लेकिन विसर्जित करने के दौरान यह भूल जाते हैं कि वे उन्हें किस तरह विसर्जित करना है। लोग जैसे-तैसे नदी या गड्ढे में मूर्तियों को फेंककर चले आते हैं, जो उनका अपमान है। उन्होंने कहा कि भक्त जैसे पैसे खर्च कर धूमधाम से पूजा करते हैं, वैसे ही उन देवी-देवताओं की विदाई भी करनी चाहिए। आज जिस तरह से मां दुर्गा की प्रतिमाएं खुले आसमान के नीचे गड्ढे में पड़ी हैं, यह देवी-देवताओं का अपमान है।
नदी के किनारे गड्ढों में पड़ी दर्जनों प्रतिमाएं, कुछ तस्वीरें . . .
स्त्रोत : दैनिक भास्कर