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हिंदुत्व की उपेक्षा करनेवालों का अस्तित्व मिटा देंगे : शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती

देश में रहनेवाले सभी धर्मों के लोगों का हित हिंदुत्व को बढ़ावा देकर ही सुनिश्चित किया जा सकता है, क्योंकि ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के सिद्धांत पर आधारित सनातन (हिंदू) धर्म में कहीं कोई संकीर्णता नहीं है। इसमें अन्य धर्मावलंबियों के साथ भेदभाव की कल्पना भी नहीं की जा सकती ! – शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंदजी सरस्वती

पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंदजी सरस्वती ने देश की सभी मौजूदा राजनीतिक पार्टियों को चेतावनी दी है कि, यदि उन्होंने हिंदुत्व की उपेक्षा बंद नहीं की तो संत समाज एकजुट होकर उनका अस्तित्व मिटाकर रख देगा। शंकराचार्य ने यहां स्थित हरिहर आश्रम में आईएएनएस के साथ बातचीत में कहा कि, साधु-संतों को अब प्रचीन ऋषि-मुनियों की भूमिका में आना ही पड़ेगा। उन्होंने इस बात से असहमति व्यक्त की कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हिंदू समर्थक राजनीतिक दल है।

उनका कहना है कि, भाजपा समेत कोई भी मौजूदा राजनीतिक पार्टी हिंदू समर्थक नहीं है। अन्य पार्टियों की तरह भाजपा भले ही स्पष्ट तौर पर हिंदू विरोधी न हो, परंतु यह हिंदू समर्थक तो कतई नहीं है। जगद्गुरु ने भाजपा को हिंदू समर्थक माननेवालों को याद दिलाया कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘विकास’ के मुद्दे पर सत्ता में आए हैं, हिंदुत्व के मुद्दे पर नहीं। इसलिए वह हिंदू हित की बात कैसे कर सकते हैं ?

उन्होंने कहा कि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के दबाव में भाजपा के नेता हर बार चुनाव से पहले तो हिंदू जनमानस को झकझोरनेवाले राम मंदिर निर्माण, गोवंश रक्षा और गंगा की पवित्रता जैसे मुद्दों में दिलचस्पी लेने लगते हैं, परंतु सत्ता में आने के बाद खासतौर पर राम मंदिर मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय में विधाराधीन होने का बहाना बनाकर इससे कन्नी काट लेते हैं।

शंकराचार्य ने कहा कि, आज देश को एक ऐसी राजनीतिक पार्टी की सरकार है, जो सत्ता में आने पर सतत विकास के साथ ही न केवल राम मंदिर के निर्माण की दिशा में, बल्कि गोवंश की रक्षा, गंगा, यमुना व अन्य पवित्र नदियों को प्रदूषण मुक्त करने समेत सनातन धर्म के सभी मान्य बिंदुओं की रक्षा और उन्नयन के लिए तुरंत कार्य करना शुरू कर दे। उन्होंने कहा कि, यदि कोई गैर भाजपाई पार्टी ऐसा करती है तो संत उसका समर्थन करेंगे।

स्वामी निश्चलानंदजी ने कहा कि, भाजपा से निराश होने के बाद संतों को अब प्राचीन ऋषि-मुनियों की तरह अपनी भूमिका निभानी होगी और देश के जनमानस को इस बात के लिए तैयार करना होगा कि वे हिंदू हितों की रक्षा करनेवाली पार्टी को ही सत्ता सौंपें।

उन्होंने कहा कि, संत एकबार एकजुट हो जाएं तो इस ध्येय को प्राप्त करना कठिन नहीं होगा। आदि शंकराचार्य और आचार्य चाणक्य जैसी विभूतियां यह कार्य बखूबी कर चुकी हैं। उन्होंने देश के मौजूदा राजनीतिक ढांचे पर टिप्पणी करते हुए कहा कि, विदेशी तंत्र इसे एक यंत्र की तरह चला रहा है। उन्होंने कहा कि, शतप्रतिशत भारतीयता की भावना के साथ ही हिन्दू-हितों की रक्षा हो सकती है।

उन्होंने हिंदुत्व को संकीर्णता के दायरे में रखनेवालों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि, हिंदुत्व का मूल सिद्धांत ही है – सब का हित। देश में रहनेवाले सभी धर्मों के लोगों का हित हिंदुत्व को बढ़ावा देकर ही सुनिश्चित किया जा सकता है, क्योंकि वसुधैव कुटुम्बकम् के सिद्धांत पर आधारित सनातन (हिंदू) धर्म में कहीं कोई संकीर्णता नहीं है। इसमें अन्य धर्मावलंबियों के साथ भेदभाव की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

स्त्रोत : जनसत्ता

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