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आगामी शतक ‘हिन्दुत्व’ एवं ‘वारकरी संप्रदाय’ का होगा ! – प.पू. स्वामी गोविंददेव गिरी

वारकरी शिक्षण संस्था का शताब्दिपूर्ति महोत्सव

प.पू. स्वामी गोविंददेव गिरीजीद्वारा व्यक्त किए गए विचार ….

श्रीक्षेत्र आळंदी (पुणे) : स्वानंद सुखनिवासी सद्गुरु जोग महाराज संस्थापित वारकरी शिक्षण संस्था के शताब्दिपूर्ति समारोह के निमित्त आयोजित कार्यक्रम में प.पू. स्वामी गोविंददेव गिरीजी (पूर्वाश्रमी के आचार्य किशोरजी व्यास) संबोधित कर रहे थे। अपने संबोधन में उन्होंने कहां कि, ‘वारकरी शिक्षण संस्था के कार्य को १०० वर्ष पूरे हुए हैं। अब यह दूसरा शतक आरंभ हो रहा है। आगामी शतक केवल भारत का ही नहीं, तो ‘हिन्दुत्व’ तथा ‘वारकरी संप्रदाय’ का होगा ! इसमें से पुरे विश्व को मार्गदर्शक ज्ञान दिया जाएगा !’ उस समय व्यासपिठ पर श्री क्षेत्र देवगड संस्थान के महंत भास्करगिरी महाराज, ह.भ.प. रामेश्वर शास्त्री महाराज, राष्ट्रीय वारकरी सेना के संस्थापक ह.भ.प. (पू.) निवृत्ती महाराज वक्ते, ह.भ.प. मारुति महाराज कुर्‍हेकर, संस्था के अध्यक्ष ह.भ.प. संदीपान महाराज हसेगांवकर आदि मान्यवरों के साथ वारकरी संप्रदाय के अनेक संत एवं महंत उपस्थित थे।

प.पू. स्वामी गोविंददेव गिरीजी ने आगे ऐसा भी बताया कि, ‘आज देश में जो भगवा दिखाई दे रहा है, वह वारकरियों का भगवा है। संतश्रेष्ठ ज्ञानेश्वर महाराज तथा जगद्गुरु संत तुकाराम महाराज ये केवल महाराष्ट्र तक सीमित नहीं हैं, तो वे वैश्विक हैं। उनके ग्रंथ तथा साहित्य विश्व के सभी भाषाओं में प्रकाशित करने चाहिए। मराठी भाषा सब से भाग्यवान भाषा है। संत ज्ञानेश्वर महाराज के साथ-साथ आजतक के अनेक संतों ने मराठी में ही विपुल ग्रंथसंपदा निर्माण की है !’

वारकरी शिक्षण संस्था, ‘जीवन’ का शिक्षण देनेवाली संस्था !

संस्था के संदर्भ में प्रंशसोद्गार व्यक्त करते समय उन्होंने बताया कि, ‘वारकरी शिक्षण संस्था सभी को मार्गदर्शक है। बाहर व्यवहार में प्राप्त होनेवाला शिक्षण केवल उपजीविका के लिए ही उपयोग में आता है, तो यहां ‘जीवन’ का शिक्षण दिया जाता है। यहां अपना भाव, पहनावा, मनन, चिंतन क्या करना चाहिए तथा किस प्रकार होना चाहिए, इस का शिक्षण दिया जाता है। संस्था के संस्थापक सद्गुरु जोग महाराज अर्थात रामकृष्ण परमहंस हैं, तो ह.भ.प. सोनोपंत दांडेकरमामा अर्थात स्वामी विवेकानंद हैं। ह.भ.प. दांडेकरमामाद्वारा किए गए कार्य के कारण ही आज वारकरी ‘असाधारण’ रूप में सर्वत्र दिखाई देता है !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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