जबलपुर (मध्य प्रदेश) : लोगों का यदि वास्तव में ही विज्ञानपर अधिक विश्वास होता, तो उनकेद्वारा किसी भी प्रकार का बिमा नहीं उतरवाया जाता। आज परमाणुबम बनाने का तंत्र सर्वज्ञात है; किंतु आज विश्व के केवल ५ देश ही उनको बना सकें, अन्य बना नहीं सकें। इसका अर्थ विज्ञान अयोग्य है, ऐसा नहीं होता, अपितु जो उसे बना नहीं सकते उनकी कुछ सीमाएं हैं, इसे हमें ध्यान में लेते हैं। उसी प्रकार से योग्य उपासना करनेपर ईश्वर के अस्तित्व की अनुभूति होती ही है। उसके लिए प्रयास करने की आवश्यकता है। अनुभव न होने के कारण ईश्वर के अस्तित्व को नकारना हास्यास्पद है !
हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने ऐसा प्रतिपादित किया। वे, यहां के विजयनगर क्षेत्र में हिन्दू जनजागृति समिति के संकेतस्थल के पाठक श्री. आशीष श्रीवास्तव के घर आयोजित एक बैठक में बोल रहे थे।
पू. डॉ. पिंगळेजी ने आगे कहा, ‘शस्त्रकर्म करनेवाला आधुनिक वैद्य शस्त्रकर्म करने से पहले उस रोगी की अथवा उसके परिजनों से लिखित रूप से अनुमति लेता है। यहां पर ही वह उसकी एवं विज्ञान की सीमाओं को स्पष्ट करता है। उसी प्रकार से किसी भी औषधि की गोली से उस प्रकार के सभी रोगियों का रोग दूर क्यों नहीं होता ? ईश्वर के अस्तित्व के संदर्भ में संदेह करनेवालों को पहले विज्ञान की सीमाएं तथा उसमें व्याप्त अंधविश्वासों के संदर्भ में बात करनी चाहिए।
जिसका अनुभव नहीं होता, उन सभी बातों के अस्तित्व को नकारने की अपेक्षा अपनी सीमाओं को ध्यान में लेना चाहिए !’
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात