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पुनः उभर रहा है स्वाभाविक भारत : प्रो. कुसुमलता केडिया

योगी आदित्यनाथ जी का उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री के पद पर आसीन होना वस्तुतः स्वाभाविक भारत का पुनः अपने स्थान पर प्रतिष्ठित होने की प्रक्रिया का प्रारम्भ है। वस्तुतः ट्रांसफर ऑफ पावर के जरिये अंग्रेजों से संधि कर जो समूह सत्तारूढ हुआ, वह १९४७ ईस्वी तक भारत में अलोकप्रिय एवं अस्वीकृत समूह था। श्री जवाहरलाल नेहरू स्वयं कांग्रेस में लोकप्रिय नहीं थे। इसका प्रमाण यह है कि प्रान्तीय कांग्रेस समितियों ने १९४७ में कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए उनके नाम का प्रस्ताव नहीं किया था। प्रस्ताव सरदार वल्लभभाई पटेल और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के नाम के आए थे। जब श्री नेहरू स्वयं कांग्रेस में अलोकप्रिय थे, तो उनका व्यापक भारत में लोकप्रिय होने का प्रश्न ही नहीं था। परन्तु सत्ता सम्हालने के बाद सोवियत संघ की तर्ज पर शिक्षा और संचार माध्यमों सहित राज्य के सभी अंगों और राष्ट्र के समस्त संसाधन पर नियंत्रण प्राप्त करने के बाद तरह-तरह के किस्से और मिथक रचे गये तथा लगातार तीन पीढियों तक भारत के नागरिकों को और जनगण को सत्य से दूर रखा जाता रहा।

अपनी अलोकप्रियता को छुपाने के लिए सत्ता के हस्तान्तरण से संधिपूर्वक सत्तारूढ हुए समूह ने कई तरह के किस्से रचे, जिनके द्वारा सत्य को पूरी तरह छिपाने और ढँककर रखने की जी-तोड कोशिशें की गयीं। जैसे कि १९५२ ईस्वी के आसपास इस गीत का फैलाया जाना कि ‘‘दे दी हमें आजादी बिना खड्ग, बिना ढाल। साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।’’ अगर केवल कांग्रेस नेतृत्व वाले सत्याग्रहियों के आहत और हत लोगों की ही गिनती कर ली जाती, तो स्पष्ट हो जाता कि कितना अधिक खून स्वयं इस ठण्डी धारा के लोगों का बहा है। देश का गरम खून, क्रान्तिकारी नवयुवकों और नवयुवतियों का खून, वनवासियों और परम्परागत तेजस्वी समूहों का खून तथा अन्याय के विरुद्ध स्वाभाविक वीरता के अभ्यस्त विशाल भारतीयों का खून तो इस समूह की नजर में मानो खून ही नहीं है। यहाँ तक कि जिस मजहबी विभाजन को स्वयं श्री नेहरू और उनके संरक्षकों ने स्वीकार किया, उसमें ही कई लाख लोगों का खून बहा और लाखों लोग घायल हुए। इसलिए बिना खड्ग, बिना ढाल वाली बात कितनी झूठ है, यह स्पष्ट है। १९४७ ईस्वी तक यह झूठ बोलने की किसी को हिम्मत नहीं थी। परन्तु बाद में इप्टा तथा अन्य कम्युनिस्ट समूहों के सहयोग से फ़िल्मों और गीतों के जरिये तथा पत्र-पत्रिकाओं के जरिये और राज्य के संरक्षण में फैलायी गयी पुस्तकों के जरिये इसी प्रकार के झूठ रचे गये।

इसी तरह भारत के जो समूह परम्परा से प्रतिष्ठित और पूज्य रहे हैं, उनसे नया सत्तारूढ समूह भय खाता था, इसलिए यहाँ के विद्वानों, ब्राह्मणों, राजाओं और धर्माचार्यों तथा मठों की छवि मलिन करने की योजनाबद्ध कोशिश की गयी। इसके लिए भारत के हिन्दू बहुल समाज द्वारा दिये गये करों से संचित राजकोष का बहुत बडा अंश हिन्दू समाज के विरुद्ध झूठ और जहर फैलाने के लिए दान में लुटाया गया। नये-नये किस्म के कलाकार, लेखक तथा अन्य समूह शासन के संरक्षण में प्रतिष्ठित किये गये, जिनका मुख्य काम नेहरू जी और उनके सेकुलरवादी रंग वाली कांग्रेस की भंडैती करना और हिन्दू समाज को अकारण कोसना रहा।

तीन पीढियों तक लगातार चले प्रचार और झूठ के विस्तार के कारण भारतीय समाज में बडी धुंध छा गयी। इसका लाभ उठाकर राष्ट्रीय जीवन के हर क्षेत्र में उच्छृंखलता फैलायी गयी। इस उच्छृंखलता के कारण भारतीय समाज का दम घुटने लगा। जिनका सरकारी दफ्तरों से साबका पडता था, वे सरकारी कर्मचारियों और अफसरों की उच्छृंखलता से परेशान थे, जो लोग पत्र-पत्रिकाओं के शौकीन थे, वे मीडिया के एक वर्ग में फैल रही उच्छृंखलता से परेशान थे। बाजार में व्यापारियों में भी उच्छृंखल तत्त्व पनपने लगे थे। सरकारी बैंकों से मनमाने कर्ज लेकर फिर उसे कभी वापस नहीं लौटाने की उच्छृंखलता पोसी गयी, जिससे सत्यनिष्ठ और ईमानदार लोग परेशान थे। परीक्षाओं को मजाक बना दिया गया। इससे पढने वाले विद्यार्थी परेशान थे। किसानों को उनकी फसल का दाम नहीं मिल रहा है और वे असहाय से हैं। इससे वे बहुत बेचैन हैं। गन्ना किसानों को चीनी मिलें वर्षों तक पूरे दाम नहीं देतीं और वे कुछ नहीं कर पाते। तरह-तरह के टैक्स एवं अन्य चीजों से जुडे हुए विभाग के कर्मचारी अपने ढंग से उच्छृंखल हो रहे थे। यहाँ तक कि, उच्छृंखलता को एक मूल्य की तरह प्रस्तुत करने वाले दल और स्वयंसेवी संगठन बेरोक फैल रहे थे और समाज इस बहुमुखी उच्छृंखलता से गहराई तक विचलित था। इसलिए जैसे ही उसे नरेन्द्र मोदी के रूप में एक कर्मठ और अनुशासित नेता नजर आया तथा मोदी जी ने स्वयं उत्तरप्रदेश की जनता से उसके मन को छूने वाली अनेक बातें कहीं और सुशासन की जिम्मेदारी स्वयं पर ली, वैसे ही मतदाता भाजपा के लिए उमड पडे।

स्पष्ट है कि उच्छृंखला के विरुद्ध दिया गया यह वोट भारतीय समाज, जिसका सबसे बडा अंश हिन्दू समाज है, उसकी अपनी परम्पराओं, मान्यताओं, मर्यादाओं और सामाजिक अनुशासन के लिए दिया गया वोट है। मोदी जी ठीक ही कहते हैं कि भारत के लोग बहुत संतोषी हैं और वे राज्य से कोई ज़्यादा अपेक्षा नहीं करते। क्योंकि उन्हें स्वावलम्बन का लाखों वर्ष पुराना अभ्यास है। परन्तु उन्हें इसी अभ्यास के कारण अनुशासन और मर्यादा बहुत प्रिय हैं। उच्छृंखलता उन्हें सहन योग्य नहीं लगती। कांग्रेस धीरे-धीरे उच्छृंखलता की संरक्षक पार्टी ही बन गयी, जिसका चरम रूप तथाकथित आम आदमी पार्टी के रूप में सामने आया है।
उत्तरप्रदेश के लोग इससे बहुत दुखी और क्षुब्ध थे। ऐसी उच्छृंखलता उनके लिए अराजकता का पर्याय है। वे अपने राज्य से प्रेम करते हैं और राज्य के प्रमुख पदों पर ऐसे ही लोगों को देखने के अभ्यस्त हैं, जिनकी वाणी और आचरण से सहज प्रसन्नता तथा प्रेम का अनुभव हो। इसीलिए योगी आदित्यनाथ जी तथा अन्य श्रेष्ठ हिन्दू नेताओं को देखकर मतदाताओं के मन में एक सहज प्रसन्नता और उल्लास का संचार होता है तथा उनके सत्ता में आने पर उन्हें मानसिक राहत मिलती है। इस प्रक्रिया में ७० वर्षों के झूठ और मर्यादाहीनता तथा अपप्रचार के बाद भारत पुनः अपने स्वाभाविक रूप में उभरने की ओर बढ रहा है। इसके वास्तविक नायक खडे हो रहे हैं और वे समाज में प्रीति और उल्लास का संचार कर रहे हैं।

मठ भारत में सदा से राज्य के प्रशिक्षण का केन्द्र रहे हैं। स्मरण रहे कि यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में भी राजपुरुषों का आधारभूत प्रशिक्षण ईसाई मठों में होता रहा है और चर्च ही उनके मनोजगत के नियामक रहे हैं, यद्यपि वे एक बडी सीमा तक अज्ञान और अंधकार भी फैलाते रहे हैं। फिर भारत का तो कहना ही क्या? यहाँ के मठ और मन्दिर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक साधना एवं प्रशिक्षण के केन्द्र के रूप में समाज के लिए आनन्द, ऊर्जा और प्रकाश के केन्द्र रहे हैं। शस्त्र और शास्त्र दोनों का प्रशिक्षण सदा से मठों में दिया जाता रहा है। भारत के प्रत्येक क्षेत्र में अपने-अपने क्षेत्र के प्रमुख मठों और मन्दिरों के प्रति गहरा अनुराग रहा है और है तथा ये लोगों की सांस्कृतिक चेतना एवं धडकन के केन्द्र हैं। नेहरू की धारा ने इन सभी केन्द्रों को बदनाम करने और नष्ट करने के लिए अनेक प्रकार के पापाचार किये। परन्तु अब जनता ने ऐसे लोगों को पहचान लिया है और वह अपने केन्द्रों को पुनः केन्द्रीय स्थान देना चाहती है।

आदित्यनाथ योगी जी का मुख्यमंत्री बनना स्वाभाविक भारत के उभार का प्रमाण है। ये भारतीय सांस्कृतिक चेतना, साधना और मर्यादा के ध्वजावाहक हैं। मेधा और प्रतिभा तथा प्रशिक्षण और अनुशासन के कारण हमारे मठाधीश लोग समाज को सही दिशा में संचालित और निर्देशित करने की क्षमता रखते हैं। उनके नेतृत्व में समाज का स्वाभाविक अनुशासन और मर्यादा पुनः प्रतिष्ठित होगी तथा भारतीय शक्ति के व्यापक प्रवाह में तीन पीढियों से जो अवरोध पैदा किया गया है, वह इस प्रवाह की प्रबलता से बहकर हिन्द महासागर में जा समायेगा।

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