कार्तिक कृष्णपक्ष अष्टमी, कलियुग वर्ष ५११६
१. गुप्तसाम्राज्यकी कालावधिको भारतके इतिहासमें सुवर्णयुगके रूपमें पहचाना जाना
भारतके प्राचीन इतिहासके तेजस्वी, भव्यदिव्य गुप्त साम्राज्यकी यशोगाथा ! भारतके इतिहासमें सुवर्णयुगके रूपमें पहचाने जानेवाला गुप्तसाम्राज्यका समय ! बिखरा हुआ वैदिकधर्म सृदुढ करनेवाला; धर्म, अर्थ, नीति एवं युद्ध आदि शास्त्रोंमें निष्णात, उत्साहसंपन्न एवं महाप्रज्ञावान राजाधिराज गुप्त सम्राट ! उस समयके बलवान रोम साम्राज्यको भी पलटानेवाले एवं विलक्षण क्रूर हुणोंको भारतके सीमापार पराजित करनेवाला महापराक्रमी स्कंध गुप्त !
२. गुप्तकालीन भारतको सुवर्णयुग कहनेमें बाधा लानेवाले इतिहासके पाठ्यपुस्तक लिखनेवाला शासन !
चारों ही दिशामें स्थित राजे जिसके चरणोंपर नतमस्तक होते थे, समस्त भारतवर्ष जिसके मांगल्यकी आकंठ कामना करता था एवं नित्य उसका ही स्पष्ट रूपसे यशोगान करता था, ऐसे गुप्त सम्राटके इतिहासका नामनिशान आज न रहना !
विश्वमें उपद्रव मचानेवाले हुणोंका पराभव करनेवाले गुप्तकालीन भारतको सुवर्णयुग कहनेमें लज्जाजनक कर्तृत्ववाले इन राजनेताओंद्वारा बाधा लाना ! यह कैसा दुर्विलास है !
गुप्तकालावधिको सुवर्णयुग न कहने हेतु इतिहासके पाठ्यपुस्तक सिद्ध करनेवाली ऐसी योजनाएं नेहरुवादी शासनने चलाई ! कितना खूनखराबा !
– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात