अजमेर : गोवधर्नपीठ पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंदजी ने कहा कि, उत्तर प्रदेश के चुनाव एेतिहासिक धरातल पर महत्वपूर्ण रहे। राम के नाम पर जातिगत उन्माद को स्थान नहीं मिला। राजनेताओं के संदर्भ में कहा कि, वह किसी पार्टी विशेष की नुमाइंदगी नहीं करते परंतु सत्ता लोलुप नेताओं ने वोट बैंक के लिए हिन्दुओं का मनोबल गिराया।
उन्होंने मुसलमानों से स्नेह सम्मान दूरदर्शिता पूर्वक आग्रह किया कि, वह हिंदुओं की उदारता पर ध्यान दें। उदारता को दुर्बलता न समझा जाए। इसी प्रकार सवर्ण व असवर्ण के भी खाई नहीं खोदी जा सकी। निश्चलानंदजी अपने दो दिवसीय यात्रा पर पुष्कर से अजमेर पहुंचे। यहां सागर विहार कॉलोनी स्थित व्यवसायी कालीचरण खंडेलवाल के निवास पर वह पत्रकारों से बातचीत कि।
उन्होंने कहा कि, सोमनाथ मंदिर निर्माण भी नेहरू नहीं चाहते थे परंतु सरदार वल्लभ भाई पटेल ने डा. राजेन्द्र प्रसाद को आगे बढ़ाकर मंदिर निर्माण कराया। उन्होंने कहा कि, अंग्रेजो ने १८४० से ही भारत से कांधार, गांधार, अफगानिस्तान, श्रीलंका, वर्मा व पाकिस्तान जैसे देश विभाजन कर बनाए।
उन्होंने कहा कि, म. गांधी ने विभाजन के बाद मुसलमानों को पाक जाने से रोका। स्वतंत्रता के बाद भी हिंदुओं को न्याय नहीं मिला। अयोध्या में तीन गुंबद हैं, मस्जिद होती तो मीनारें होतीं। विश्व की सबसे पहली राजधानी ही अयोध्या रही।
गौहत्या राजद्रोह होना चाहिए
उन्होंने कहा कि, गौहत्या करने पर कठोर कानून बने या राजद्रोह जैसा अपराध माना जाना चाहिए। मुरारजी देसाई के प्रधानमंत्री काल में जब धार्मिक प्रतिनिधि व एक सांसद ने उनसे गोहत्या के संबंध में कानून बनाने की बात कही तो उन्होंने कहा कि वह कसाईयों के भी प्रधानमंत्री हैं। निश्चलानंदजी ने कहा कि, जिन्होंने हिंदुओं के शस्त्रागार की गोपनीयता भंग की वह सबसे पहले मारे गए। जो नेता गोहत्या का विरोध नहीं करते वह चुनाव ही नहीं लड़ सकते।
उन्होंने गौरक्षकों पर गोली चलाने जैसी घटनाओ व उन्हें गुंडा कहने को अफसोसजनक बताया। कांग्रेस ने अंग्रेजों की पार्क में लगी मूर्तियां सिर्फ इसलिए हटाई कि उनसे भावनाएं आहत होती हैं। अब तो हिंदू समाज के कुछ नेता ही मस्जिद बनाने की बात करने लगे हैं। अब तक उत्तर प्रदेश में आजमखां ने भी गौहत्या का विरोध किया है।
हिंदुओं को दबाया जाएगा तो प्रतिक्रिया होगी। आदर्श व अस्तित्व पर आंच आएगी तो क्रांति का स्वत: उद्भव होगा। राजनीति व धर्म का समावेश के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि, धर्म ही राजनीति है। राज धर्म, दंडनीति व अराजकता का दमन अर्थनीति धर्म से चलेगी। इन्हें अलग कर दिया जाए तो दोनो पंगु हो जाएंगे। धर्म सेवा, संयम, परोपकार आदि सिखाता है
यह है स्वतंत्र भारत का स्वरूप गौरक्षा, विभाजन बाद भी परतंत्रता, किसान आत्महत्या नहीं हो अब देशी को आवारा कहा गया तो कभी इंसान को भी आवारा नहीं कह दिया जाए। एेसी परिस्थितियां दिशाहीन क्रांति करती हैं। उन्होंने कहा कि युवा आदर्श बनाने के लिए उसे अध्यात्मिक शिक्षा देनी चाहिए जिससे विकसित भारत का निर्माण हो सके।
स्त्रोत : राजस्थान पत्रिका