Menu Close

बंदर क्या जाने अद्रक का स्वाद ? इस कहावत को हिन्दू धर्म के संदर्भ में वास्तविक बनानेवाले स्वतंत्रता से लेकर अबतक के सर्वदलीय राज्यकर्ता एवं बुद्धीजीवी (धर्मद्रोही) !

शिक्षा में व्याप्त भूगोल, गणित, विज्ञान, वनस्पतिशास्त्र, प्राणीशास्त्र, व्याकरण इत्यादि सभी विषय, साथ ही स्वास्थ्य, संगीत, भाषा, स्थापत्यशास्त्र, खगोलशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, राज्यशास्त्र, अध्यात्मशास्त्र इत्यादि सभी क्षेत्रों में निहित विस्मयचकित करनेवाला ज्ञान हिन्दू धर्म में बताया गया है; परंतु उसे स्वतंत्रता से लेकर अबतक के शैक्षणिक पाठ्यक्रम में अंतर्निहित कर उसे न सीखाकर छात्रों को एवं जनता को पाश्‍चिमात्यों का थोडासा ज्ञान देनेवाले राज्यकर्ता एवं बुद्धीजीवी ‘बंदर क्या जाने अद्रक का स्वाद ?’ इस कहावत को सार्थ बनाते हैं ! केवल इतना ही नहीं, अपितु छात्रों के एवं जनता के मन में हिन्दू धर्म के विषय में परमावधि का हीन मनोभाव उत्पन्न करते हैं ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *