भगवन श्रीविष्णु
सारणी
- १. एकादशी व्रत
- २. ‘एकादशी’ तिथिका महत्त्व
- ३. एकादशीके लाभ
- ४. एकादशीके प्रकार
- ५. एकादशी मनानेकी पद्धति
- ६. श्री विठ्ठलको गोपीचंदन एवं तुलसी अर्पण करनेका शास्त्राधार
- ७. झांझ एवं मृदंगकी ध्वनिपर जयघोष करनेका महत्त्व
- ८. एकादशी व्रतपालन करते समय ध्यान रखने योग्य कुछ निषेध कृत्य
९. आषाढ एकादशीका माहात्म्य
१०. आषाढ एकादशीका महत्त्व
११. कार्तिक एकादशी
१२. कार्तिक एकादशीका अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व
१३. निर्जला एकादशीका महत्त्व
१. एकादशी व्रत
एकादशी का व्रत प्रत्येक महीने में एकादशीकी तिथि पर किया जाता है । एकादशी व्रतको महाव्रत कहा गया है ।
२. ‘एकादशी’ महत्त्व
२ अ. अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व
हिंदु पंचांग के अनुसार प्रत्येक महीनेके शुक्ल एवं कृष्ण पक्षकी ग्यारहवीं तिथिको एकादशी कहते हैं । यह भगवान श्रीविष्णुजीकी तिथि है । एकादशीको ‘हरिदिनी’ भी कहते हैं । अन्य दिनोंकी तुलनामें एकादशीका महत्त्व अधिक होनेके विविध कारण इस प्रकार हैं ।
२ अ. वातावरणमें विष्णुतत्त्वके स्पंदन अधिक मात्रामें होना ।
२ आ. सभी प्राणिओंमें सात्त्विकताकी मात्रा अधिक होना ।
२ इ. देहमें विद्यमान चैतन्यकी गति ऊध्र्व अर्थात ऊपरकी दिशामें होना ।
२ ई. साधना करना अधिक सरल होना ।
२ उ. साधनाका लाभ अधिक होना ।
ये हुए ‘एकादशी’ तिथिके महत्त्व ।
२ आ. ‘एकादशी’ व्रतका महत्त्व
एकादशी तिथिके समान ही एकादशी व्रतका भी महत्त्व है । पूरे वर्षमें एकादशी व्रत करनेसे अनेक व्रतोंका फल प्राप्त होता है । पद्मपुराणमें एकादशी व्रतका महत्त्व इस प्रकार बताया गया है,
एकादश्युपवासस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ।।
– पद्मपुराण उत्तरखंड ५९.१३
इसका अर्थ है, सहस्त्रों अश्वमेध यज्ञ एवं सैकडों राजसूय यज्ञोंका महत्त्व एकादशीके उपवासकी सोलहवीं कला जितना भी नहीं है ।
२ इ. ‘एकादशी’ व्रतका एक अन्य महत्त्व
प्राचीन मापन पद्धतिनुसार सोलहवीं कला अर्थात किसी वस्तुका सोलहवां भाग । आजके प्रतिशतकी मापन पद्धतिनुसार लगभग ६ प्रतिशत । एकादशी व्रतका एक अन्य महत्त्व है । अन्य सभी व्रत संकल्प करनेके उपरांत ही आरंभ करने होते हैं । संकल्प एक प्रकारकी प्रतिज्ञा ही है । मनके निर्धारका उच्चारण वाचासे करना एवं हाथसे जल छोडना । व्रतके आरंभ एवं अंतमें संकल्प करना चाहिए; अन्यथा व्रत निष्फल होता है । परंतु एकादशी व्रतके लिए संकल्पकी आवश्यकता नहीं होती । इससे स्पष्ट होता है कि यह एक ऐसा व्रत है, जो बिना संकल्पके भी मनुष्यको फल प्रदान कर सकता है ।
२ र्इ. संतोंकी दृष्टिसे एकादशीका महत्त्व
एकादशीका महत्त्व बताते हुए महाराष्ट्र के संत एकनाथ महाराज कहते हैं, ‘अनंत व्रतोंकी राशि एक ओर एवं एकादशी एक ओर ।’ अर्थात एकादशी व्रतका लाभ अनंत व्रतोंके लाभसे अधिक ही होता है । महाराष्ट्रके संत तुकाराम महाराज भी एकादशीका महत्त्व इस प्रकार बताते हैं, ‘जो मनुष्य एकादशीके दिन भोजन करते हैं, वे पापी होते हैं ।’
३. एकादशीके लाभ
एकादशी व्रत करनेसे, कार्यक्षमतामें वृद्धि होना, मनकी शक्तिमें वृद्धि होना, आयुवृद्धि होना एवं आध्यात्मिक उन्नति शीघ्र होनेमें सहायता मिलना । एकादशीके लाभ पद्मपुराणमें बताए गए हैं,
कलत्रसुतदा ह्येषा धनमित्रप्रदायिनी।।
न गंगा न गया राजन न च काशी च पुष्करम ।
न चापि कौरवं क्षेत्रं पुण्यं भूपहरेर्दिनात् ।।
– पद्मपुराण उत्तरखंड ५९.१५,१६
अर्थात एकादशी, स्वर्ग, मोक्ष, आरोग्य, सुभार्या एवं सुपुत्र देनेवाली है । हे राजा, गंगा, गया, काशी, पुष्कर एवं कुरुक्षेत्र इनमेंसे एककी भी तुलना हरिदिनी अर्थात एकादशीके साथ नहीं हो सकती । इस श्लोकमें उल्लेखित गंगा नदी तथा अन्य तीर्थक्षेत्र प्रातःस्मरणीय हैं । अर्थात इनके नामके उच्चारणमात्रसे भी तीर्थस्नानका लाभ प्राप्त होता है । ऐसे पवित्र स्थानोंमेंसे एककी भी तुलना एकादशीके साथ नहीं हो सकती । इससे ध्यानमें आता है कि एकादशीका दिन कितना पवित्र है । संक्षेपमें इस श्लोकसे स्पष्ट है कि एकादशीका व्रत करनेसे लौकिक एवं पारमार्थिक दोनों लाभ प्राप्त होते हैं ।
४. एकादशीके प्रकार
प्रत्येक महीनेके शुक्ल एवं कृष्ण पक्षमें एक, इस प्रकार महीनेमें दो तथा पूरे वर्षमें चौबीस एकादशी आती हैं । प्रत्येक महीनेमें आनेवाली एकादशी को पुत्रदा, मोक्षदा, कामदा, सफला, जया, विजया जैसे विभिन्न नामोंसे जानते हैं । साथही प्रत्येक ३ वर्षोंमें एकबार अधिक मास; जिसे मलमास अथवा पुरुषोत्तममास भी कहते हैं, इस मासमें आनेवाली एकादशीको ‘कमला’ एकादशी कहते हैं । जब एकादशी तिथि दो दिनकी होती है, तब शैव पंथीय प्रथम दिनकी एकादशी मानते हैं, तो वैष्णव दूसरे दिनकी । शैवोंकी ‘स्मार्त एकादशी’, तो वैष्णवोंकी ‘भागवत एकादशी’ कहलाती है । शुक्ल एकादशीको भगवान श्रीविष्णु अथवा श्रीविठ्ठलके मंदिरमें दर्शनके लिए जानेकी, तो कृष्ण एकादशीके दिन अपने संप्रदायसे संबंधित संतोंके समाधिस्थानपर जानेकी परंपरा है । जैसे प्रत्येक महीनेकी शुक्ल एकादशीको पंढरपुर जाते हैं, वैसे कार्तिक कृष्ण एकादशीको आळंदी अथवा ज्येष्ठ कृष्ण एकादशीको त्र्यंबकेश्वर जाते हैं ।
५. एकादशी मनानेकी पद्धति
शास्त्रोंके अनुसार वर्षमें आनेवाली सभी एकादशीपर व्रत एवं उपवास करना चाहिए । परंतु किसी कारणवश इनमेंसे एकही दिन उपवास करना संभव हो, तो शुक्ल पक्षमें आनेवाली एकादशीको व्रत एवं उपवास करनेका महत्त्व बताया गया है । एकादशीके दिन बिना कुछ खाए, केवल जल एवं सौंठ-शक्कर सेवन करना सर्वोत्तम है । यह संभव न हो, तो दूध एवं फलाहार अथवा उपवासके पदार्थोंका सेवन कर सकते हैं । कई स्थानोंपर तो गेहूं जैसे किसी एक अनाजके पदार्थका सेवन करते हैं । आबालवृद्धसहित लाखों श्रद्धालुजन इस दिन उपवास रखते हैं । भगवान श्रीविष्णुजीका पूजन करते हैं, तथा अहोरात्र अर्थात दिन-रात अखंड घी का दीपक जलाए रखते हैं । भजन, कीर्तन, स्तोत्रपाठ, ज्ञानेश्वरी, भागवत इत्यादि ग्रंथोंका पाठ तथा नामजप करते हैं । देवतादर्शनके लिये मंदिरोंमें जाते हैं । दूसरे दिन श्रीविष्णुजीको महानैवेद्य निवेदित करते हैं एवं व्रतका पारण अर्थात व्रतका समापन करते हैं । महाराष्ट्रके पंढरपुरके विट्ठलमंदिरके साथही भारतभर अनेक गांवोंमें एकादशीके दिन श्रीविष्णुके अथवा श्री विठ्ठल मंदिरोंमें विशेष पूजन होता है । तथा दिनभर विभिन्न आध्यात्मिक कार्यक्रमोंका भी आयोजन होता है । श्री विठ्ठलकी उपासनामें गोपीचंदन एवं तुलसी अर्पण करना तथा झांझ एवं मृदंगकी ध्वनिपर जयघोष करनेका विशेष महत्त्व है ।
६. श्री विठ्ठलको गोपीचंदन एवं तुलसी अर्पण करनेका शास्त्राधार
श्री विठ्ठलकी प्रतिमामें ७० प्रतिशत विष्णुतत्त्व तथा ३० प्रतिशत कृष्णतत्त्व होता है । गोपीचंदनमें तारक सुगंध विद्यमान होती है । श्री विठ्ठलकी प्रतिमाको गोपीचंदनका उबटन लगानेसे प्रतिमाकी रिक्तिमें विद्यमान विष्णुतत्त्व जागृत होता है, जो श्रद्धालु दर्शनार्थियोंको आध्यात्मिक उन्नतिमें सहायक होता है । तुलसीमें कृष्ण तत्त्व होता है । विठोबा; अर्थात श्री विठ्ठलकी प्रतिमाको तुलसीमंजिरीका हार अर्पण करनेसे प्रतिमाके मध्यभागमें विद्यमान क्रियाशक्तिको गति प्राप्त होती है । साथही मंजिरीद्वारा प्रक्षेपित चैतन्यके प्रवाहके कारण श्रीविठ्ठलकी प्रतिमामें विद्यमान कृष्णतत्त्व जागृत होता है, जो भक्तके भावके अनुसार श्रीविष्णुतत्त्वमें रूपांतरित होता है । इससे श्रद्धालुओं एवं भक्तोंकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं । विठ्ठलभक्त भजन, संकीर्तन करते हैं, तब झांझ एवं मृदंगके तालपर नाचते हैं । श्री विठ्ठलके नामका उसके भक्त तथा संतोंके नामोंसहित जोरसे जयघोष करते हैं ।
७. झांझ एवं मृदंगकी ध्वनिपर जयघोष करनेका महत्त्व
ताल-मृदुंगकी ध्वनिपर जयघोष करनेसे श्री विठ्ठलकी प्रतिमाके सर्व ओर विद्यमान विभिन्न नवग्रहमंडल, नक्षत्रमंडल एवं तारकामंडल जागृत होते हैं । इन मंडलादि देवी-देवताओंके आशीर्वादसे नरजन्मका उद्धार होनेमें सहायता मिलती है ।
८. एकादशी व्रतपालन करते समय ध्यान रखने योग्य कुछ निषेध कृत्य
अन्य व्रतोंके समान ही एकादशी व्रत मनाते समय पालन करने योग्य निषेध कृत्योंके संदर्भमें स्कंदपुराणमें बताया गया है,
अनृतौ वर्जयेत भार्यां मांसं मधु परौदनम् ।।
पटोलं मूलकं चैव वृन्ताकं च न भक्षयेत ।
– स्कंदपुराण
९. आषाढ एकादशीका माहात्म्य
१०. आषाढ एकादशीका महत्त्व
पूरे वर्षमें आनेवाली चौबीस एकादशियोंमें आषाढ एकादशीका अपना एक निराला स्थान है ।
३ आ. आषाढ एकादशीके दिनसे चातुर्मासका आरंभ होता है । यह चातुर्मास अर्थात देवताओंके लिए रात्रिका काल । इस कालमें सभी देव शयन करते हैं । इसीलिए आषाढ एकादशीको ‘देवशयनी एकादशी’, कहते हैं ।
३ इ. इस दिन भगवान श्रीविष्णु भी क्षीरसागरमें योगनिद्रामें लीन होते हैं ।
३ ई. इसी दिन भगवान श्री पांडुरंग अर्थात विठ्ठल भक्त पुंडलिकसे मिलने पंढरपुर आए थे ।
१० अ. भक्त पुंडलिककी कथा
११. कार्तिक एकादशी
१२. कार्तिक एकादशीका अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व
१३. निर्जला एकादशीका महत्त्व
६ आ. हिंदु धर्ममें बताए व्रतोंके पीछे संत अथवा ऋषियोंका संकल्प है । इस संकल्पके कारण ही उस व्रतद्वारा मनुष्यको फल प्राप्त होते हैं।
(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत’)