सारणी
- १. श्रीविठ्ठल के दर्शन से संबंधित एक बोधप्रद अनुभूति
- १ अ. विठोबा की देहपर विद्यमान शुभचिह्न देखने की इच्छा होना, उन्हें सूक्ष्म से देखना एवं पश्चात वही चिह्न प्रत्यक्ष में देखने को मिलना
- २. श्रीविठ्ठल के सूक्ष्म-दर्शनसंबंधी सूक्ष्म-चित्र
- ३. श्री विठ्ठल की प्रतिमा से संबंधित मूर्तिविज्ञान, प्रतिमा की कुछ विशेषताएं एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उनका महत्त्व
१. श्रीविठ्ठल के दर्शन से संबंधित एक बोधप्रद अनुभूति
१ अ. विठोबा की देहपर विद्यमान शुभचिह्न देखने की इच्छा होना, उन्हें सूक्ष्म से देखना एवं पश्चात वही चिह्न प्रत्यक्ष में देखने को मिलना
सनातन के सूक्ष्म-विभाग की साधिका श्रीमती अंजली गाडगीळजी पंढरपुर गई थीं । विठोबा की महापूजा देखते समय मुझे उनकी देहपर विद्यमान शुभचिह्न देखने की इच्छा हुई । परंतु मैं विठोबा की प्रतिमा से ६-७ फुट की दूरीपर थी । इसलिए मुझे ये चिह्न दिख नहीं रहे थे । मैं प्रतिमापर ध्यान एकाग्र करने लगी । सूक्ष्म से प्रतिमा के पास जाते समय मुझे आनंद प्रतीत हो रहा था । जैसे-जैसे मेरी एकाग्रता बढने लगी, वैसे-वैसे मुझे शांति प्रतीत होने लगी । मुझे पांडुरंग की देहपर विद्यमान चिह्न प्रतीत हुए एवं तत्पश्चात वहां के पुजारीजी ने मुझे बुलाकर वही चिह्न प्रत्यक्ष दिखाए । उस समय मेरे पास कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं थे । मैं सहज ही ईश्वर के प्रति लीन हो गई ।
२. श्रीविठ्ठल के सूक्ष्म-दर्शनसंबंधी सूक्ष्म-चित्र
२ अ. सिर पर विद्यमान शिवपिंडी के सर्व ओर निर्गुण शिवतत्त्व विद्यमान होता है ।
२ आ. आज्ञाचक्र से चैतन्य का प्रवाह प्रक्षेपित होता है ।
२ इ. प्रतिमा के कानों में मकराकृत कुंडल चैतन्य से युक्त दिखाई देते हैं ।
२ ई. गले में धारण कौस्तुभ मणि में शक्ति प्रतीत होती है ।
२ उ. विठोबा के अनाहतचक्र के स्थानपर विद्यमान विष्णुपद से शांति प्रतीत होती है ।
२ ऊ. छातीपर भृगुऋषि के चरणों के अंगुठे के चिह्न के सर्व ओर चैतन्य का वलय प्रतीत हुआ ।
२ ए. श्रीविठ्ठल की प्रतिमा के दोनों पैरों के बीच में विद्यमान लाठी से कृष्णतत्त्व की तारक तरंगें प्रक्षेपित होती हैं ।
२ ऐ. श्रीविठ्ठल की प्रतिमा के चरणोंतले उन्हें पुंडलिकद्वारा खडे रहने के लिए दी हुई र्इंट है । इस र्इंट से दसों दिशाओं में चैतन्य के प्रवाह प्रक्षेपित होते हैं ।
इस सूक्ष्म-चित्रद्वारा हमने श्रीविठ्ठल की प्रतिमा के सूक्ष्म-स्तरीय प्रभाव की प्रक्रिया को समझ लिया ।
३. श्री विठ्ठल की प्रतिमा से संबंधित मूर्तिविज्ञान, प्रतिमा की
कुछ विशेषताएं एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उनका महत्त्व
श्री विठ्ठल की प्रतिमा स्वयंभू है । यह प्रतिमा वालुका कणों से अर्थात रेत के कणों से बनी है । श्रीविष्णु की शक्ति के साथ वालुका के अर्थात रेत के कणों का घनीकरण अर्थात solidification, होने के कारण यह प्रतिमा बनी है । विठ्ठल की कमर के नीचे का भाग ब्रह्मारूपी, कमर के ऊपर गर्दनतक का भाग श्रीविष्णुरूपी एवं मस्तक का भाग शिवरूपी है । श्रीविठ्ठल की दो शक्तियां हैं, राई एवं रुक्मिणी । राई एवं रुक्मिणी ये दो शक्तियां क्रमानुसार चंद्रनाडी तथा सूर्यनाडी से संबंधित हैं । राई की उपासना से चंद्रनाडी जागृत होती है तो रुक्मिणी की उपासना से सूर्यनाडी जागृत होती है । चंद्रनाडी उत्पत्ति से संबंधित है, इससे लयविषयक कार्य को मारक बल प्राप्त होता है ।
३ अ. प्रतिमा की छातीपर विराजमान श्रीवत्सलांच्छनात्मक चिह्न
३ आ. श्री विठ्ठल की प्रतिमा में कमरपर रखे हाथ
३ इ. श्री विठ्ठल की प्रतिमा में हाथ में पकडे शंख
३ ई. श्री विठ्ठल की प्रतिमा में हाथों में पकडे कमल
३ उ. श्री विठ्ठल की प्रतिमा के चरण
३ ऊ. प्रतिमा के दोनों पैरों के बीच में विद्यमान लाठी
आषाढ एकादशीव्रत का जो भी पालन करते हैं, अथवा करने की इच्छा रखते हैं, वे श्रद्धाभाव से यह व्रत कर पाएं तथा हम सब करुणाकर श्री विठ्ठल के कृपापात्र बन पाएं एेसी श्री विठ्ठल के चरणों में प्रार्थना !
(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत’)