हिंदु संस्कृतिके अनुसार वर्षारंभका दिन

सारणी


१. वर्षारंभदिन दिन अर्थात नववर्षदिन

        वर्षारंभका दिन अर्थात नववर्षदिन । इसे कुछ अन्य नामोंसे भी जाना जाता है । जैसे कि, संवत्सरारंभ, विक्रम संवत् वर्षारंभ, वर्षप्रतिपदा, युगादि, गुडीपडवा इत्यादि । इसे मनानेके अनेक कारण हैं ।

१.१ वर्षारंभ मनानेका नैसर्गिक कारण

भगवान श्रीकृष्णजी अपनी विभूतियोंके संदर्भमें बताते हुए श्रीमद्भगवद्गीतामें कहते हैं,

बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् ।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ।।
(श्रीमद्भगवद्गीता – १०.३५)

        इसका अर्थ है, ‘सामोंमें बृहत्साम मैं हूं । छंदोंमें गायत्रीछंद मैं हूं । मासोंमें अर्थात्‌ महीनोंमें मार्गशीर्षमास मैं हूं; तथा ऋतुओंमें वसंतऋतु मैं हूं ।’

        सर्व ऋतुओंमें बहार लानेवाली ऋतु है, वसंत ऋतु । इस कालमें उत्साहवर्द्धक, आह्लाददायक एवं समशीतोष्ण वायु होती है । शिशिर ऋतुमें पेडोंके पत्ते झड चुके होते हैं, जबकि वसंत ऋतुके आगमनसे पेडोंमें कोंपलें अर्थात नए कोमल पत्ते उग आते हैं, पेड-पौधे हरे-भरे दिखाई देते हैं । कोयलकी कूक सुनाई देती है । इस प्रकार भगवान श्रीकृष्णजीकी विभूतिस्वरूप वसंतऋतुके आरंभका यह दिन है ।

१.२ वर्षारंभ मनानेके ऐतिहासिक कारण

        शकोंने हूणोंको पराजित कर विजय प्राप्त की एवं भारतभूमिपर हुए आक्रमणको मिटा दिया । शालिवाहन राजाने शत्रुपर विजय प्राप्त की और इस दिनसे शालिवाहन पंचांग प्रारंभ किया ।

१.३ वर्षारंभ मनानेके पौराणिक कारण

        इस दिन रामने वालीका वध किया । राक्षसोंका एवं रावणका वध कर इसी दिन भगवान श्रीरामचंद्र अयोध्या लौटे ।

२. चैत्र शुक्ल प्रतिपदाके दिन

वर्षारंभदिन मनानेके विविध अध्यात्मशास्त्रीय कारण

         भिन्न- भिन्न संस्कृति अथवा उद्देश्यके अनुसार नववर्षका आरंभ भी विभिन्न तिथियोंपर मनाया जाता हैं । उदाहरणके रूपमें, ईसाई संस्कृतिके अनुसार इसवी सन् १ जनवरीसे आरंभ होता है, जबकि हिंदु वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदासे आरंभ होता है । आर्थिक वर्ष १ अप्रैलसे आरंभ होता है, शैक्षिक वर्ष जूनसे आरंभ होता है, जबकि व्यापारी वर्ष कार्तिक शुक्ल प्रतिपदासे आरंभ होता है । इन सभी वर्षारंभोंमेंसे अधिक उचित नववर्षका आरंभ दिन है, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ।

२.१ ब्रह्मांडकी निर्मितिका दिन

        ब्रह्मदेवने इसी दिन ब्रह्मांडकी निर्मिति की । उनके नामपर ही ‘ब्रह्मांड’ नाम प्रचलित हुआ । सत्ययुगमें इसी दिन ब्रह्मांडमें विद्यमान ब्रह्मतत्त्व पहली बार निर्गुणसे निर्गुण-सगुण स्तरपर आकर कार्यरत हुआ तथा पृथ्वीपर आया ।

२.२ सृष्टिके निर्माणका दिन

        ब्रह्मदेवने सृष्टिकी रचना की तदूपरांत उसमें कुछ उत्पत्ति एवं परिवर्तन कर उसे अधिक सुंदर अर्थात परिपूर्ण बनाया । इसलिए ब्रह्मदेवद्वारा निर्माण की गई सृष्टि परिपूर्ण हुई, उस दिन गुडी अर्थात धर्मध्वजा खडी कर यह दिन मनाया जाने लगा ।

चैत्रे मासि जगद् ब्रम्हाशसर्ज प्रथमेऽहनि ।
– ब्रम्हपुराण

        अर्थात ब्रम्हाजीने सृष्टिका निर्माण चैत्र मासके प्रथम दिन किया । इसी दिनसे सत्ययुगका आरंभ हुआ । यहींसे हिंदु संस्कृतिके अनुसार कालगणना भी आरंभ हुई । इसी कारण इस दिन वर्षारंभ मनाया जाता है । यह दिन महाराष्ट्रमें ‘गुडीपडवा’ के नामसे भी मनाया जाता है । गुडी अर्थात् ध्वजा । पाडवा शब्दमेंसे ‘पाड’ अर्थात पूर्ण; एवं ‘वा’ अर्थात वृद्धिंगत करना, परिपूर्ण करना । इस प्रकार पाडवा इस शब्दका अर्थ है, परिपूर्णता ।

३. सप्तलोकोंकी सात्त्विकतामें वृद्धि होना एवं पातालसे

अनिष्ट शक्तियोंद्वारा होनेवाले आक्रमणोंकी मात्रा भी कम रहना

        वर्षारंभके दिन प्रक्षेपित तरंगोंका सप्तलोकोंपर परिणाम होता है । इससे उन लोकोंकी सात्त्विकतामें वृद्धि होती है । रज-तमकी मात्रा कम होनेके कारण पातालसे अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमणकी मात्रा भी कम रहती है । वर्षारंभके दिन सगुण ब्रह्मलोकसे प्रजापति, ब्रह्मा एवं सरस्वतीदेवी, इनकी सूक्ष्मतम तरंगें प्रक्षेपित होती हैं । उनमेंसे ९० प्रतिशत तरंगें इस ब्रह्मलोककी अधोदिशामें विद्यमान लोकोंकी ओर तथा १० प्रतिशत तरंगें ऊर्ध्व दिशामें जाती हैं । अधोदिशामें स्वर्गलोक, शिवलोक, नागलोक, भुवलोक, भूलोक एवं सप्तपाताल, इन लोकोंसे प्रवाहित होते समय इन तरंगोंका इन लोकोंपर परिणाम होता है । इन सभी लोकोंकी शुद्धता ३ प्रतिशत होती है । उनकी सात्त्विकतामें भी ३ प्रतिशत वृद्धि होती है । इस दिन सप्तपातालोंमें रज-तमकी मात्रा ३ प्रतिशत कम होती है । इसी कारणसे इस दिन पातालसे अनिष्ट शक्तियोंद्वारा होनेवाले आक्रमणोंकी मात्रा भी कम रहती है ।

४. ब्रह्मतत्त्वके सर्वाधिक प्रक्षेपणका दिन

        अन्य दिनोंकी तुलनामें चैत्र शुक्ल प्रतिपदाके दिन ब्रह्मदेवकी ओरसे सगुण-निर्गुण ब्रह्मतत्त्व, ज्ञानतरंगें, चैतन्य एवं सत्त्वगुण का ५० प्रतिशतसे भी अधिक मात्रामें प्रक्षेपण होता है ।

५. प्रजापति तरंगें सर्वाधिक मात्रामें पृथ्वीपर आना

        चैत्र शुक्ल प्रतिपदाके दिन प्रजापति तरंगें सबसे अधिक मात्रामें पृथ्वीपर आती हैं । इस दिन सत्त्वगुण अत्यधिक मात्रामें पृथ्वीपर आता है । यह दिन वर्षके अन्य दिनोंकी तुलनामें सर्वाधिक सात्त्विक होता है ।

५.१ प्रजापति तरंगे पृथ्वीपर आनेसे होनेवाले लाभ

        वनस्पतिके अंकुरनेकी भूमिकी क्षमतामें वृद्धि होती है । तो बुद्धि प्रगल्भ बनती है । कुओं-तालाबोंमें नए झरने निकलते हैं ।

६. धर्मलोकसे धर्मशक्तिकी तरंगें पृथ्वीपर अधिक मात्रामें आना

       चैत्र शुक्ल प्रतिपदाके दिन धर्मलोकसे धर्मशक्तिकी तरंगें पृथ्वीपर अधिक मात्रामें आती हैं और पृथ्वीके पृष्ठभागपर स्थित धर्मबिंदुके माध्यमसे ग्रहण की जाती हैं । तत्पश्चात् आवश्यकताके अनुसार भूलोकके जीवोंकी दिशामें प्रक्षेपित की जाती हैं ।

७. वातावरण अधिक चैतन्यदायी रहना

        इस दिन भूलोकके वातावरणमें रजकणोंका प्रभाव अधिक मात्रामें होता है, इस कारण पृथ्वीके जीवोंका क्षात्रभाव भी जागृत रहता है । इस दिन वातावरणमें विद्यमान अनिष्ट शक्तियोंका प्रभाव भी कम रहता है । इस कारण वातावरण अधिक चैतन्यदायी रहता है ।

८. साढेतीन मुहूर्तोंमेंसे एक मुहूर्त

        चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अक्षयतृतीया एवं दशहरा, प्रत्येकका एक एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदाका आधा, ऐसे साढेतीन मुहूर्त होते हैं । इन साढेतीन मुहूर्तोंकी विशेषता यह है, कि अन्य दिन शुभकार्य हेतु मुहूर्त देखना पडता है; परंतु इन चार दिनोंका प्रत्येक क्षण शुभमुहूर्त ही होता है ।

(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ-त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत)

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  1. नवम्बत्सर आगया ऐसा चैत्र महीने की तिथि के अनुसार तो मालूम पड़ता है ! किन्तु मौसम में तो उसकी अभिव्यक्ति नहीं प्रतीत होती है ! वसंत पंचमी में वसंत ऋतू का अनुभव नहीं हुआ ! और होली में फाल्गुन की प्राकृतिक मसती नदारद रही !लोग उत्सव बिना उत्साह के मनाते रहे ! बे मौसम वारिश ने फसलें बर्बाद करदी !बाजारों में जिन्होंने किसी प्रकार से रूपया कमा लिया है ! खरीदारी में उनकी भीड़ रही ! निर्धन लोग हमेशा की तरह खरीदारी से वंचित रहे ! लेकिन पैसे वालों को भी शुद्ध खाद्य पदार्थों की प्राप्ति नहीं हुई !चर्वी से बना घी केमिकल से निर्मित खोवा पनीर दूध और सूअर की चर्वी और गाय की चर्वी से बने चॉकलेट आदि बाजारों में खरीद के लिए उपलब्ध रहे ! और इन्ही से पैसे वाॅलों ने अपने त्यौहार मनाये ! समर्थ रामदास ने दासबोध में लिखा है कलियुगी श्रिष्टि अतिवृष्टि अनावृष्टि ! इसलिए इस बार इतनी अधिक बे मौसिम बर्षात हुई की उसने पिछले १०० साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया! यह तो हुई युग से उत्पन्न मुसीबत और दूसरी मुसीबत है गुलामी की मानसिकता की जिसने हमारी सांस्कृतिक और सनातन धर्म की प्रवृत्ति को नष्ट कर दिया है ! !गाय जो श्रिष्टि के आरम्भ से भारतीय धर्म संस्कृति और लोक जीवन को धारण करने वाली रही है ! आज पूरे भारत में क़त्ल की जारही है ! जिसका दूध घी पनीर मक्खन खाया जाता था आज उसी को खाने के पक्छ में व्यान दिए जा रहे हैं ! एक गाय जो बर्षोँ तक हजारों लोगो का पालन पोषण अपने दूध आदि से करती है ! वह अब कुछ लोगों के माष से पेट भरने का साधन बन गयी है ! गाय जब तक जीती है तब तक दूध घी आदि के रूप में अमृत प्रदान करती है ! और मृत्यु के बाद अपनी हड्डी चर्वी आदि से जैविक खाद प्रदान करती है !उसके मूत्र गोबर में भी औषधीय गुण है!हम नकली अपवित्र पदार्थों से निर्मित खाद्य पदार्थ खा कर असाध्य रोगों से ग्रस्त होकर डॉकटरों की आमदनी तो बड़ा रहे हैं ! किन्तु गाय के वध पर प्रतिबन्ध का विरोध कर रहे हैं ! आप सब लोगों को नव सम्बत सर की शुभ कामनाएं !

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