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नारियल पूर्णिमा

सारणी


१. नारियल पूर्णिमा का महत्त्व

श्रावण पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधनके दिन ही मनाया
जानेवाला श्रावणमासका अन्य महत्त्वपूर्ण त्यौहार है नारियल पूर्णिमा !

श्रावण पूर्णिमा पर समुद्र के किनारे रहनेवाले लोग वरुणदेव हेतु समुद्र की पूजा कर, उसे नारियल अर्पण करते हैं । इस दिन अर्पित नारियल का फल शुभसूचक होता है एवं सृजनशक्ति का भी प्रतीक माना जाता है । नदी से संगम एवं संगम की अपेक्षा सागर अधिक पवित्र है । ‘सागरे सर्व तीर्थानि’ ऐसी कहावत है, अर्थात सागर में सर्व तीर्थ हैं । सागर की पूजा अर्थात वरुणदेव की पूजा । जहाज द्वारा माल परिवहन करते समय वरुणदेव को प्रसन्न करने पर वे ही सहायता करते हैं । यह त्यौहार संपूर्ण भारतखंड के समुद्री तटोंपर बडी धूमधाम से मनाया जाता है ।

२. नारियल पूर्णिमा त्यौहार की एक झलक

        इस दिन समुद्रको अर्पण किया जानेवाला नारियल सजाते हैं । उसे जुलूसके साथ समुद्रतट पर ले जाते हैं । इसके उपरांत वरुणदेवताके प्रतिकके रूपमें नारियलकी पूजा की जाती हैं । इसके लिए एक पीढेपर वस्त्र डालकर उसपर सजाया हुआ नारियल रखा जाता हैं । नारियलकी शिखा सागरकी दिशामें होती है । नारियलको गंध, अक्षत एवं पुष्प चढाते हैं । इसके उपरांत धूप एवं दीप दिखाते हैं । तथा श्रद्धाभावसहित उस नारियलको अर्पण करते हैं ।

३. नारियल पूर्णिमा का अध्यात्मशास्र

इस दिन ब्रह्मांडमें आपतत्त्वात्मक यमतरंगोंका प्राबल्य होता है । ये तरंगे ब्रह्मांडमें भंवरसमान गतिमान होती हैं । वरुणदेवताका आवाहन करनेसे उनके कृपाशीर्वादसे यमतरंगें नारियलके जलकी ओर आकृष्ट होती हैं । नारियलके जलमें विद्यमान तेजतत्त्व इन यमतरंगोंको नियंत्रित करता है,  उनमें विद्यमान रज-तमकणोंका विघटन करता है और उन्हें सागरमें विलीन करता है । इससे वायुमंडल भी शुद्ध होता है । इसलिए इस दिन समुद्ररूपी वरुणदेवताको नारियल अर्पण करनेका महत्त्व है ।

४. समुद्रको नारियल अर्पण करनेके सूक्ष्म-स्तरीय परिणाम

         अब देखते हैं, इस कृत्यमें सूक्ष्म स्तरपर होनेवाली गतिविधियां सनातन संस्था की सूक्ष्म-चित्रकर्ती साधिका कु. प्रियांका लोटलीकरजी द्वारा बनाए एक सूक्ष्म-चित्रद्वारा ।

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१. समुद्रदेवताका भावपूर्ण वंदन करनेसे व्यक्तिमें भावके वलय जागृत होते हैं ।

२. नारियलका पूजन करनेसे उसमें परमेश्वरीय तत्त्वके वलय कार्यरत होते हैं ।

३. नारियलमें चैतन्यके वलय कार्यरत होते हैं ।

३ अ. समुद्रदेवताको शरणागत भावसे नारियल अर्पण करनेसे  समुद्रकी ओर चैतन्यके प्रवाह प्रक्षेपित होते हैं ।

४. समुद्रदेवताका भावपूर्ण पूजन करनेसे परमेश्वरीय तत्त्वके प्रवाह समुद्रकी ओर आकृष्ट होते हैं ।

४ अ. अप्रकट रूपमें विद्यमान परमेश्वरीय तत्त्व वलयके रूपमें प्रकट होकर कार्यरत होते हैं ।

५. वरुणदेवताके तत्त्व वलयके रूपमें कार्यरत होते हैं ।

६. निर्गुण तत्त्व समुद्रमें अधिक मात्रामें वलयके रूपमें कार्यरत होते हैं ।

६ अ. निर्गुण तत्वात्मक कण वायुमंडलमें फैलते हैं ।

७, ७ अ, ७ आ , ७ ई . समुद्रमें आनंद, चैतन्य एवं शक्ति के वलय आकृष्ट होते हैं एवं समुद्रमें आनंद, चैतन्य एवं शक्ति के वलय जागृत होते हैं । इन वलयोंसे व्यक्ति की ओर आनन्द, चैतन्य एवं शक्ति के प्रवाह प्रक्षेपित होनेसे व्यक्तिमें आनन्द , चैतन्य तथा शक्तिके वलय जागृत होते हैं । व्यक्तिपर आए काली शक्ति के आवरण दूर होते हैं ।

८. शक्तिके कण कार्यरत होना तथा काला आवरण दूर होता हैं ।

(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ-त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत)

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