सारणी
- १. श्रीकृष्णजन्माष्टमीकी तिथिका महत्त्व
- २. श्रीकृष्णजन्माष्टमीके दिन आकाशमें रंगोंके माध्यमसे श्रीकृष्णके विराट रूपके दर्शन होनेकी अनुभूति होना
- ३. श्रीकृष्णजन्माष्टमी मनानेकी पद्धति
- ४. श्रीकृष्णजन्माष्टमी उत्सव
- ५. श्रीकृष्णजन्माष्टमी व्रत
- ६. श्रीकृष्णजन्माष्टमी व्रतसंबंधी उपवास
- ७. श्रीकृष्णजन्माष्टमीके दिन की जानेवाली पूजाकी विधि
- ८. पूजाका पूर्वायोजन
- ९. श्रीकृष्णकी पूजाविधिमें अंतर्भूत कृत्योंका शास्त्राधार
१. श्रीकृष्णजन्माष्टमी की तिथि का महत्त्व
भगवान श्रीकृष्ण पूर्णावतार हैं । उनकी श्रेष्ठता, कृतज्ञता शब्दोंमें व्यक्त करना हम जैसे सामान्य व्यक्तियोंके लिए असंभवसी बात है । महाभारत, हरिवंश एवं भागवत अनुसार निश्चित की गई कालगणनाके अनुसार, ईसापूर्व ३१८५ वर्षमें, श्रावण कृष्ण अष्टमीकी मध्यरात्रि, रोहिणी नक्षत्रमें भगवान श्रीकृष्णका जन्म हुआ था । विक्रमसंवतके अनुसार यह तिथि भाद्रपद कृष्ण अष्टमीको आती है । इसलिए उत्तर भारतमें श्रीकृष्णजन्माष्टमी भाद्रपद कृष्ण अष्टमीको मनाई जाती है । हिंदुस्थानके सभी वर्णके लोग यह दिन बडे उत्साहके साथ प्रेमपूर्वक मनाते हैं । इस तिथिका विशेष अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व है । इस दिन श्रीकृष्ण तत्त्व वातावरणमें अन्य दिनोंकी तुलनामें एक सहस्र गुना अधिक मात्रामें कार्यरत रहता है । इस कारण श्रद्धापूर्वक उपासना करनेवाले कृष्णभक्तोंको इस दिन भगवान श्रीकृष्णजीके अस्तित्त्वके संदर्भमें विविध अनुभूतियां होती हैं ।
२. श्रीकृष्णजन्माष्टमी के दिन आकाशमें रंगोंके माध्यमसे श्रीकृष्णके विराट रूपके दर्शन होनेकी अनुभूति होना
यह अनुभूति श्री. देवांगजीकी है । श्रीकृष्णजन्माष्टमीके दिन प्रातः मेरी आंख खुलतेही मेरे मनमें विचार आया, ‘आज श्रीकृष्णका जन्मदिवस है ।’ मैं अत्यंत उत्साहसे उठा । तदुपरांत मैंने आकाशकी ओर देखा । आकाशमें श्रीकृष्णके रंगसमान दिखनेवाला नीला एवं उनके उपवस्त्र के रंगसमान गुलाबी रंग बिखरा हुआ था । उस समय मुझे लगा मानो, आकाशमें श्रीकृष्णके विराट रूपके दर्शन ही हुए ।
विश्लेषण : अध्यात्म अनुभूतियोंका शास्त्र है । अध्यात्मशास्त्रके अनुसार शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध एवं उनसे संबंधित शक्ति, इनके सह अस्तित्त्व होता है । श्रीकृष्णजन्माष्टमीकी तिथिपर श्रीकृष्ण तत्त्व अधिक कार्यरत रहता है, सनातन हिंदू धर्मका यह विधान अध्यात्मशास्त्रीय तथ्यपर आधारित है । श्री. देवांगजीकी अनुभूतिसे यह प्रमाणित होता है ।
३. श्रीकृष्णजन्माष्टमी मनानेकी पद्धति
हिंदुस्थानमें ही नहीं, संपूर्ण विश्वमें श्रीकृष्णजन्माष्टमी अर्थात श्रीकृष्ण जयंती अत्यंत धूमधामसे मनाई जाती है । श्रीकृष्णजन्माष्टमी त्योहार, व्रत तथा उत्सव भी है ।
४. श्रीकृष्णजन्माष्टमी उत्सव
गोकुल, मथुरा, वृंदावन, द्वारका, पुरी ये सभी श्रीकृष्णकी उपासनासंबंधी पवित्र स्थल हैं, जहां यह उत्सव विशेष रूपसे मनाते हैं । इन दिनों वृंदावनमें आयोजित दोलोत्सव देखने योग्य होता है । अन्य क्षेत्रोंमें भी स्थान-स्थानपर श्रीकृष्णजीके देवालयोंमें यह उत्सव मनाया जाता है । इस दिन कुछ लोग अपने घरमेंही गोकुल-वृंदावनकी झांकी बनाकर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं । वैष्णव पंथीय यह दिन विशेष भक्तिभावसे मनाते हैं । अनेक वैष्णव देवालयोंमें दीपाराधना, शोभायात्रा, कृष्णलीला, भागवतपाठ, कीर्तन, भजन, नृत्य-गायन इत्यादि कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं । यह उत्सव श्रावण कृष्ण प्रतिपदासे श्रावण कृष्ण अष्टमी तक मनाया जाता है ।
५. श्रीकृष्णजन्माष्टमी व्रत
यह व्रत श्रावण कृष्ण अष्टमीको किया जाता है एवं दूसरे दिन अर्थात श्रावण कृष्ण नवमीके दिन पारण कर व्रतकी समाप्ति होती है । यह व्रत सर्वमान्य है । यह व्रत बाल, युवा, वृद्ध, स्त्री-पुरुष सभी कर सकते हैं । इस व्रत का फल है, पापनाश, सौख्यवृद्धि, संतति-संपत्ति एवं वैकुंठप्राप्ति ।
६. श्रीकृष्णजन्माष्टमी व्रतसंबंधी उपवास
इस दिन दिनभर उपवास रखा जाता है । निराहार उपवास असंभव हो तो फलाहार कर सकते हैं । इससे एक दिन पूर्व अर्थात श्रावण कृष्ण सप्तमीको अंशमात्र भोजन करते हैं ।
७. श्रीकृष्णजन्माष्टमी के दिन की जानेवाली पूजाकी विधि
श्रीकृष्णजयंतीके उपलक्ष्यमें इस दिन श्रीकृष्णकी विशेष पूजा अर्चना की जाती है । भगवान श्रीकृष्णका जन्म मध्यरात्रिको हुआ था । इसलिए श्रीकृष्णकी विशेष पूजा अर्चना मध्यरात्रिको ही की जाती है । मध्यरात्रिको स्नान कर पूजा आरंभ की जाती है । कृपया ध्यान दें, ‘भगवान श्रीकृष्णका जन्म हुआ है’, ऐसी धारणासे पूजा करनी चाहिए । एक दृश्यपट (Video) द्वारा भगवान श्रीकृष्णजीकी पूजाविधि देखते हैं ।
श्रीकृष्णजन्माष्टमी काे श्रीकृष्ण की प्रतिमा का भावपूर्ण पूजन करने के सूक्ष्म-स्तरीय लाभ
८. पूजाका पूर्वायोजन
८ अ. पूजाके लिए चौकीपर एक आसन देकर भगवान श्रीकृष्णजीकी प्रतिमा रखिए ।
८ आ. तदुपरांत श्रीकृष्णजीकी प्रतिमाको चंदन तिलक लगाइए ।
८. इ. अब पुष्प अर्पण किजिए ।
८ ई. यदि उपलब्ध हो तो कृष्णकमलका पुष्प अर्पण कीजिए ।
८ उ. अब श्रीकृष्णजीको तुलसी अर्पण किजिए ।
८ ऊ. यदि उपलब्ध हो तो तुलसीकी माला अर्पण कीजिए ।
८ ओ. अब अगरबत्ती दिखाइए । दो अगरबत्तियां लेकर घडीकी सूइयोंकी दिशामें तीन बार घुमाइए ।
८ औ. अब दीप दिखाइए ।
८ अं. अब दही पोहेका अर्थात दही चुडाका नैवेद्य निवेदित कीजिए ।
पूजाविधिके उपरांत संभव हो, तो भगवान श्रीकृष्णजीकी अल्पतम तीन अथवा तीन गुणाकी संख्यामें परिक्रमा कीजिए । परिक्रमा करना संभव न हो, तो अपने चारों ओर तीन बार घूमकर परिक्रमा लगाइए ।
८ क. उसके उपरांत शरणागत भावसे नमस्कार करते हुए प्रार्थना कीजिए ।
८ ख. अंतमें सबके साथ प्रसाद ग्रहण कीजिए ।
यहां ध्यान रखने योग्य बिंदु यह है कि पूजाविधिमें संप्रदाय, प्रदेश, रूढि इत्यादिके अनुसार कुछ भेद हो सकते हैं ।
९. श्रीकृष्णकी पूजाविधिमें अंतर्भूत कृत्योंका शास्त्राधार
अ. श्रीकृष्णपूजन करनेसे पूर्व स्वयंको मध्यमासे भू्मध्यपर आज्ञा-चक्रके स्थानपर विष्णुसमान दो खडी रेखाओंवाला तिलक लगानेका शास्त्रीय आधार
श्रीकृष्णपूजनसे पूर्व दो खडी रेखाओंवाला तिलक लगाया जाता है । यह तिलक विशेषकर वैष्णव अर्थात भगवान श्रीविष्णुके उपासक लगाते हैं । श्रीकृष्णपूजनसे पूर्व उपासक श्रीविष्णुतत्त्वसे संबंधित खडा भरा हुआ तिलक भी लगा सकते हैं । सामान्यतः श्रीकृष्णपूजनमें गोपीचंदनका उपयोग किया जाता है । इसे `विष्णुचंदन’ भी कहते हैं । यह द्वारकाके क्षेत्रमें पाई जानेवाली एक विशेष प्रकारकी श्वेत मिट्टी है । जैसे गंगामें स्नान करनेसे पाप धुल जाते हैं, उसी प्रकार गोपीचंदनका लेप लगानेसे सर्व पाप नष्ट होते हैं । विष्णु गायत्रीका उच्चारण करते हुए मस्तकपर गोपीचंदन लगानेकी प्रथा है ।
(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ-त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत)