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दहीकाला (कलेवा) एवं उसके प्रमुख घटक

 

सारणी


 

१. जन्म से र्इसार्इ स्त्री (साधिका) को हुर्इ अनुभूती : श्रीकृष्णजन्माष्टमी के कार्यक्रममें जानेपर देवताओंके दर्शन होना

        आइए अब देखते हैं इस संदर्भमें यूरोपकी एक साधिकाको हुई अनुभूति ।

वर्ष २००७ के सितंबर माहमें स्वामी विश्वानंदजीका वास्तव्य यूरोपमें था । उनके दर्शन करनेका श्रीमती ड्रागाना एवं अन्य साधकोंको आमंत्रण मिला था । उसके अनुसार ४ सितंबर २००७ को अर्थात श्रीकृष्णजन्माष्टमीके दिन श्रीमती ड्रागाना अन्य साधकोंके साथ स्वामीजीके दर्शन करने गईं । वहांपर श्रीकृष्णका चित्र रखा था । उस चित्रको देखकर श्रीमती ड्रागानाको आनंद अनुभव होने लगा तथा उनके नेत्रोंसे भावाश्रू बहने लगे ।

        १५ मिनट वे उसी अवस्थामें रही । तत्पश्चात उन्होंने सर्व ओर दृष्टि फेरी, तब वहां उपस्थित लोगोंके स्थानपर उन्हें देवताही प्रतीत हो रहे थे । श्रीकृष्ण अभिषेक के समय श्रीकृष्णका अस्तित्त्व भी श्रीमती ड्रागानाको प्रतीत हो रहा था, इससे भाव बढनेमें  उनकी सहायता हुई ।
          भगवान श्रीकृष्णकी अनुभूति प्राप्त होनेके लिए ना स्थान की सीमा है, ना ही धर्मकी । शुद्ध भावके कारण भगवान भक्तके निकट आ जाते हैं । जन्मसे हिंदु न होते हुए भी इस साधिकाको श्रीकृष्णतत्त्वकी इस प्रकारकी अनुभूति प्राप्त होना अपने आपमें विशेष है ।
        जन्माष्टमीका यह उत्सव कई घरों में मनाया ही जाता है, साथही सार्वजनिक रूपमें भी मनाया जाता है । रात्रि बारा बजे पूजनके उपरांत जन्मोत्सव मनाते हैं । भगवान श्रीकृष्णकी लीलाओं संबंधी कुछ कथा, कीर्तन, नृत्य, गीत इत्यादि कार्यक्रम कर पूरी रात्रि जागरण किया जाता है ।

२. श्रीकृष्णजन्माष्टमी के दूसरे दिनके आचार संबंधी विधि

       श्रावण कृष्ण नवमीके दिन सुबह भगवान श्रीकृष्णजीका पंचोपचार पूजन कर महानैवेद्य निवेदित किया जाता है । दहीकाला अर्थात कलेवाके प्रसादका सेवन कर उपवास समाप्त किया जाता है । भगवान श्रीकृष्णकी मूर्ति यदि मृत्तिका अर्थात मिट्टीकी हो, तो वह जलमें विसर्जित की जाती है । यदि धातुकी मूर्ति हो, तो उसे घरके पूजाघरमें रखते हैं अथवा पुरोहितको दानमें देते हैं ।

 

३. दहीकाला अर्थात कलेवा

         भगवान श्रीकृष्ण ब्रजमें गाय चराने ले जाते थे । तब वे अपने सर्व साथी गोपगोपियोंके खाद्यपदार्थोंका कलेवा बनाकर ग्रहण करते थे । साथही वे गोपियोंके घर जाकर उनके घरमें ऊंची टंगी दहीहंडी फोडकर उसमें से दही, मक्खन खाते थे । इसके प्रतीकस्वरूप जन्माष्टमीके दूसरे दिन दहीकाला करने तथा दहीहंडी फोडनेकी प्रथा आरंभ हो गई है ।

 

४. दहीकाला अर्थात कलेवाके प्रमुख घटक एवं उनका भावार्थ

४ अ. पोहा अर्थात चुडा

यह वस्तुनिष्ठ गोपभक्ति का प्रतीक है ।

४ आ. दही

यह वात्सल्यभावसे प्रसंगानुसार दंड देनेवाली मातृभक्ति का प्रतीक है ।

४ इ. छाछ

        यह गोपियोंकी विरोधभक्ति का प्रतीक है । विरोधभक्ति अर्थात वह भक्ति जिसमें श्रीकृष्णसे प्रेमकी अपेक्षाके कारण उनसे रूठ जाना, असंतुष्टि व्यक्त करना  इत्यादि आचरण होते हैं ।

४ ई. मक्खन

         यह श्रीकृष्णके प्रति निर्गुण भक्ति का प्रतीक है । गोपालकला ग्रहण करनेसे श्रीकृष्णभक्तको कृष्णतत्त्वका लाभ होता है ।

 भावपूर्ण पद्धति से दही की हांडी फाेडते समय हाेनेवाली सूक्ष्म स्तरीय प्रक्रिया

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६. दहीहांडी फाेडने का सुक्ष्म स्तरीय प्रभाव

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(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ – त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत)

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