पूजा में जो वस्तु जिस देवता को अर्पण की जाती है, वह उस देवता को भाती है, ऐसी मान्यता है । उदाहरण के रूप में गणपति को लाल पुष्प, शिवजी को बेल, श्रीकृष्ण को तुलसी इत्यादि । वास्तव में उच्च देवताओं की कोई रुचि-अरुचि नहीं होती है । विशिष्ट वस्तु अर्पण करने का कुछ अध्यात्मशास्त्रीय आधार होता है । पूजाका उद्देश्य है, `पूजा की मूर्ति में चैतन्य जागृत हो तथा पूजक को उसका लाभ हो । यह चैतन्य जागृत होने हेतु उस देवता को विशिष्ट वस्तु अर्पित की जाती है, जैसे श्रीकृष्णजी को कृष्णकमल एवं तुलसी चढाते हैं । इन वस्तुओं में श्रीकृष्णजी के महालोकतक के सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण अर्थात पवित्रक आकृष्ट करनेकी क्षमता होती है । इसीलिए श्रीकृष्णजी को कृष्णकमल के पुष्प एवं तुलसी अर्पण करने से श्रीकृष्णजी की प्रतिमा में विद्यमान चैतन्य का लाभ पूजक को शीघ्र प्राप्त होता है । कृष्णकमल में श्रीकृष्णजी की तत्त्वतरंगें अधिक मात्रामें आकृष्ट होती हैं तथा ये तत्त्वतरंगें कृष्णकमल के पुष्पोंसे पवित्रकों के रूप में प्रक्षेपित भी होती हैं, इनकी तुलना में अन्य वस्तुओंमें यह क्षमता अल्प मात्रामें होती है । श्रीकृष्णजी को पुष्प तीन अथवा तीन की मात्रा में तथा लंबगोलाकार अर्थात एलिप्टिकल (Elliptical) आकारमें चढाने से उन पुष्पों की ओर कृष्णतत्त्व शीघ्र आकृष्ट होता है ।
(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ-त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत)