मृत्युपरांत के क्रियाकर्म को श्रद्धा पूर्वक एवं विधिवत् करने पर मृत व्यक्ति की लिंग देह भूलोक अथवा मृत्युलोक में नहीं अटकती, वह सद्गति प्राप्त कर आगे के लोकों में बढ सकती है । पूर्वजों की अतृप्ति के कारण, परिजनों को होने वाले कष्टों तथा अनिष्ट शक्तियों द्वारा लिंग देह के वशीकरण की संभावना भी अल्प हो जाती है ।
परिवार में किसी की मृत्यु पर घर का वातावरण रजतमात्मक हो जाता है । मृत जीव का लिंग देह कुछ समय के लिए उस वास्तु में अथवा परिजनों के आसपास ही घूमता रहता है । मृत जीव की लिंग देह से प्रक्षेपित वेगवान रज-तमात्मक तरंगें परिजनों के केश के काले रंग की ओर आकर्षित होती हैं । वातावरण की रजतमात्मक तरंगों को खींचने का कार्य केश करते हैं । इस कारण परिजनों को सिर में वेदना होना, सिर सुन्न होना, अस्वस्थता इत्यादि कष्ट हो सकते हैं । मृत्योत्तर क्रियाकर्म करने वाले पुरुषों का प्रत्यक्ष विधि में सहभाग होता है, इस कारण उन्हें कष्ट की संभावना अधिक होती है । इस कष्ट से बचने हेतु सिर मुंडाना आवश्यक होता है । यह कष्ट न हो इसके लिए उनका केश पूर्णतःकाटना आवश्यक होता है ।
यहां बताया गया है कि, ‘मृत जीव की लिंग देह से प्रक्षेपित वेगवान रज-तमात्मक तरंगें परिजनों के केश के काले रंग की ओर आकर्षित होती हैं; परंतु अध्यात्मशास्त्रानुसार ऐसा भी कहा गया है कि ‘निश्चित मर्यादा तक केश के कारण अनिष्ट शक्तियों से रक्षण होता है ।’ इन दोनों विधानों में समन्वय कैसे साधें ?
वातावरण में रज-तम का परिमाण ५० प्रतिशत से अधिक हो, तो जीव को अनिष्ट शक्तियों द्वारा कष्ट हो सकता है । इसलिए निश्चित मर्यादा तक अनिष्ट शक्तियों से जीव की रक्षा होती है ।
हिन्दू धर्म में स्त्री को आदिशक्ति की अप्रकट शक्ति का प्रतीक माना गया है । इसलिए हिन्दू धर्म में स्त्री का बहुत आदर किया जाता है । स्त्रियों के लंबे केश शालीनता का दर्शक हैं एवं स्त्रियों का केश काटना हिन्दू धर्म के विरुद्ध है । सत्त्व गुण प्रधान स्त्री के केश अधिकांशतः लंबे होते हैं । केश के अग्र भाग से प्रक्षेपित शक्तिरूपी सत्त्व-रज तरंगों के कारण एक प्रकार से स्त्री की अनिष्ट शक्तियों से रक्षा ही होती है । इसलिए सामान्यतः स्त्रियों का केश काटना निषिद्ध अथवा अपवित्र माना जाता है । इसके विपरीत ‘पुरुष’ कार्यरत शक्ति का प्रतीक होते हैं । परिवार में किसी की भी मृत्यु के उपरांत उसके क्रियाकर्म का उत्तरदायित्व पूर्णतः पुरुषों पर ही होता है । इसलिए पुरुष सिर मुंडाते हैं ।’
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘मृत्युपरांत के शास्त्रोक्त क्रियाकर्म’