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यमदीपदान

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यमराजका कार्य है प्राण हरण करना । कालमृत्युसे कोई नहीं बचता और न ही वह टल सकती है; परंतु ‘किसीको भी अकाल मृत्यु न आए’, इस हेतु धनत्रयोदशीपर यमधर्मके उद्देश्यसे गेहूंके आटेसे बने तेलयुक्त (तेरह) दीप (टिप्पणी १) संध्याकालके समय घरके बाहर दक्षिणाभिमुख लगाएं । सामान्यतः दीपोंको कभी दक्षिणाभिमुख नहीं रखते, केवल इसी दिन इस प्रकार रखते
हैं ।

१. धनत्रयोदशीके दिन यमदीपदान करनेका अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व

दीपावलीके कालमें धनत्रयोदशी, नरकचतुर्दशी एवं यमद्वितीया, इन तीन दिनोंपर यमदेवके लिए दीपदान करते हैं । इनमें धनत्रयोदशीके दिन यमदीपदानका विशेष महत्त्व है, जो स्कंद-पुराणके इस श्लोकसे स्पष्ट होता है,

कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे ।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनिश्यति ।।

     – स्कंदपुराण

इसका अर्थ है, कार्तिक मासके कृष्णपक्षकी त्रयोदशीके दिन सायंकालमें घरके बाहर यमदेवके उद्देश्यसे दीप रखनेसे अपमृत्युका निवारण होता है ।

इस संदर्भमें एक कथा है, कि यमदेवने अपने दूतोंको आश्वासन दिया कि धनत्रयोदशीके दिन यमदेवके लिए दीपदान करनेवालेकी अकाल मृत्यु नहीं होगी ।

दीप प्राणशक्ति एवं तेजस्वरूप शक्ति प्रदान करता है । दीपदान करनेसे व्यक्तिको तेजकी प्राप्ति होती है । इससे उसकी प्राणशक्तिमें वृद्धि होती है तथा उसे दीर्घ आयुकी प्राप्ति होती है ।

यमदीपदान करनेका अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व – दृश्यपट (Video)

१ अ. दीपदानसे दीर्घ आयुकी प्राप्ति होना

        दीप प्राणशक्ति एवं तेजस्वरूप शक्ति प्रदान करता है । दीपदान करनेसे व्यक्तिको तेजकी प्राप्ति होती है । इससे उसकी प्राणशक्तिमें वृद्धि होती है और उसे दीर्घ आयुकी प्राप्ति होती है ।

१ आ. यमदेवके आशीर्वाद प्राप्त करना

धनत्रयोदशीके दिन ब्रह्मांडमें यमतरंगोंके प्रवाह कार्यरत रहते हैं । इसलिए इस दिन यमदेवतासे संबंधित सर्व विधियोंके फलित होनेकी मात्रा अन्य दिनोंकी तुलनामें ३० प्रतिशत अधिक होती है । धनत्रयोदशीके दिन संकल्प कर यमदेवके लिए दीपका दान करते हैं तथा उनके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

१ इ. यमदेवके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना

यमदेव मृत्युलोकके अधिपति हैं । धनत्रयोदशीके दिन यमदेवका नरकपर आधिपत्य होता है । साथही विविध लोकोंमें होनेवाली अनिष्ट शक्तियोंके संचारपर भी उनका नियंत्रण रहता है । धनत्रयोदशीके दिन यमदेवसे प्रक्षेपित तरंगें विविध नरकोंतक पहुंचती हैं । इसी कारण धनत्रयोदशीके दिन नरकमें विद्यमान अनिष्ट शक्तियोंद्वारा प्रक्षेपित तरंगें संयमित रहती हैं । परिणामस्वरूप पृथ्वीपर भी नरकतरंगोंकी मात्रा घटती है । इसीलिए धनत्रयोदशीके दिन यमदेवके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेके लिए उनका भावसहित पूजन एवं दीपदान करते हैं । दीपदानसे यमदेव प्रसन्न होते हैं ।

संक्षेपमें कहें, तो यमदीपदान करना अर्थात दीपके माध्यमसे यमदेवको प्रसन्न कर अपमृत्युके लिए कारणभूत कष्टदायक तरंगोंसे रक्षाके लिए उनसे प्रार्थना करना ।

२. यमदीपदान विधिके लिए आवश्यक पूजासामग्री

यमदीपदान विधिमें नित्य पूजाकी थालीमें घिसा हुआ चंदन, पुष्प, हलदी, कुमकुम, अक्षत अर्थात अखंड चावल इत्यादि पूजासामग्री होनी चाहिए । साथ ही आचमनके लिए ताम्रपात्र, पंच-पात्र, आचमनी ये वस्तुएं भी आवश्यक होती हैं । यमदीपदान करनेके लिए हलदी मिलाकर गुंथे हुए गेहूंके आटेसे बने विशेष दीपका उपयोग करते हैं ।

३. गेहूंके आटेसे बने दीपका महत्त्व

धनत्रयोदशीके दिन कालकी सूक्ष्म कक्षाएं यमतरंगोंके आगमन एवं प्रक्षेपणके लिए खुली होती हैं । इस दिन तमोगुणी ऊर्जातरंगें एवं आपतत्त्वात्मक तमोगुणी तरंगें अधिक मात्रामें कार्यरत रहती हैं । इन तरंगोंमें जडता होती है । ये तरंगें पृथ्वीकी कक्षाके समीप होती हैं । व्यक्तिकी अपमृत्युके लिए ये तरंगें कारणभूत होती हैं । गेहूंके आटेसे बने दीपमें इन तरंगोंको शांत करनेकी क्षमता रहती है । इसलिए यमदीपदान हेतु गेहूंके आटेसे बने दीपका उपयोग किया जाता है ।

४. यमदीपदानके समय दीप रखनेके लिए कृष्णतत्त्वसे संबंधित रंगोली बनानेका शास्त्रीय आधार

यमदीपदानके उद्देश्यसे की जानेवाली पूजाके लिए दीप स्थापित करनेके लिए श्रीकृष्णयंत्रकी रंगोली बनाते है । यमदीपदान हेतु इसप्रकार कृष्णतत्त्वसे संबंधित रंगोली बनानेका विशेष महत्त्व है ।

दीपकी पूजनविधिसे पूर्व श्रीविष्णुके २४ नामोंसे उनका आवाहन कर विधिका संकल्प करते हैं  । ‘श्रीकृष्ण’ श्रीविष्णुके पूर्णावतार हैं । यमदेवमें भी श्रीकृष्णजीका तत्त्व होता है । इस कारण पूजनके पूर्व किए जानेवाले आवाहनद्वारा विधिके स्थानपर अल्प समयमें ही यमदेवका आगमन तत्त्वरूपमें होता है । मृत्युसे संबंधित जडत्वदर्शक तरंगोंसे व्यक्तिको होनेवाला कष्ट,  श्रीकृष्णजीके तथा यमदेवके अधिष्ठानके फलस्वरूप घट जाता है । यही कारण है, कि धनत्रयोदशीके दिन श्रीकृष्णजीका तत्त्व आकृष्ट करनेवाली रंगोली बनाते हैं । यमदेवमें शिवतत्त्व भी होता है । इस कारण शिवतत्त्वसे संबंधित रंगोली भी बना सकते हैं । इसका लाभ श्रीकृष्ण तत्त्वकी रंगोलीसे प्राप्त लाभ समानही होता है ।

कृष्णतत्त्वसे संबंधित रंगोली बनानेका शास्त्रीय आधार दृश्यपट

५. यमदीपदान पूजनविधि

यमदीपदान पूजनविधि – दृश्यपट (Video)

१. प्रथम आचमन, प्राणायाम, उपरांत देशकालका उच्चारण किया जाता है ।

२. उपरांत यमदीपदानके लिए संकल्प किया जाता है । संकल्प करते समय इस प्रकार उच्चारण किया जाता है ।

मम अपमृत्यु विनाशार्थम् यमदीपदानं करिष्ये ।

इसका अर्थ है, अपनी अपमृत्युके निवारण हेतु मैं यमदीपदान करता हूं ।

३. उपरांत ताम्रपात्रमें रखा गेहूंके आटेसे बने तेलयुक्त (तेरह) दीप ( कुछ स्थानोंपर १३ दीप लगानेकी प्रथा है ।) प्रज्वलित किया जाता है ।

४. प्रज्वलित दीपको रंगोलीसे बनाए गए श्रीकृष्णयंत्रके मध्यबिंदुपर रखते  हैं ।

५. दीपको चंदन, हलदी,कुमकुम, एवं अक्षत अर्पित किए जाते हैं ।

६. दीपको पुष्प अर्पित किया जाता है ।

७. दीपको नमस्कार किया जाता है ।

८. अब ताम्रपात्रमें दीपको आसन देने हेतु अक्षत रखा जाता है ।

९. इसके पश्चात यह दीप उठाकर घरके बाहर ले जानेके लिए ताम्रपात्रमें रखा जाता है ।

१०. दीपको घरके बाहर ले जाते हैं ।

११. घरके बाहर दीपको दक्षिण दिशाकी ओर मुख कर रखा जाता है । सामान्यतः दीपोंको कभी दक्षिणाभिमुख नहीं रखते, केवल इसी दिन इस प्रकार रखते हैं ।

१२. यमदेवताको उद्देशित कर प्रार्थना की जाती है ।

मृत्युना पाशदंडाभ्यां कालेन श्यामयासह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यज: प्रीयतां मम ।। – स्कंदपुराण

इसका अर्थ है, धनत्रयोदशीपर यह दीप मैं सूर्यपुत्रको अर्थात् यमदेवताको अर्पित करता हूं । मृत्युके पाशसे वे मुझे मुक्त करें और मेरा कल्याण करें ।

जिन्हें श्लोककी जानकारी नहीं, वे अर्थको समझ कनेके लिए एवं अपने कल्याणके लिए प्रार्थना कर सकते हैं । प्रार्थना जितनी भावपूर्वक की जाती है, उतना र मृत्युके पाशसे मुक्त होही  लाभ अधिक होता है ।

१३. इसके उपरांत दीपदान हेतु जल छोडा जाता है ।

६. दीपका पूजन करनेके परिणाम

दीपको चंदन लगानेपर विष्णुतत्त्वकी नीली आनंददायी ज्योति दीपके मध्यमें विराजमान होती है । दीपको फूल अर्पण करनेपर नीली ज्योतिमें पीले बिंदुके रूपमें तेजका अस्तित्व दिखाई देता है ।

दीपको अक्षत अर्पित करनेपर नीली ज्योतिमें पीले बिंदुके रूपमें विद्यमान तेजतत्त्व क्रियाशील होता है । इस तेजतत्त्वद्वारा वातावरणमें तेजतत्त्वकी तरंगें वलयोंके रूपमें प्रक्षेपित होती हैं । हमने यमदीपदान के लिए किए जानेवाले दीपपूजनके सूक्ष्म-परिणाम देखे ।

यमदीपदान विधिमें किए जानेवाले अन्य उपचार – दृश्यपट (Video)

७. पूजित दीप घरके बाहर दक्षिण दिशामें रखनेके परिणाम

        पूजनके उपरांत घरके बाहर दक्षिण दिशामें दीपकी स्थापना करनेसे होनेवाली सूक्ष्म-स्तरीय प्रक्रिया समझ लेते हैं,

दक्षिण दिशा यमतरंगोंके लिए पोषक होती है अर्थात दक्षिण दिशासे यमतरंगें  अधिक मात्रामें आकृष्ट एवं प्रक्षेपित होती हैं ।

दक्षिण दिशासे यमतरंगोंका प्रवाह दीपकी ओर आकृष्ट होता है । यमतरंगोंका यह प्रवाह दीपके चारों ओर वलयांकित रूपमें फैलता है । यमतरंगोंके कारण कनिष्ठ प्रकारकी अनिष्ट शक्तियां दूर हट जाती हैं । यमतरंगोंके रूपमें आए यमदेवके दर्शन हेतु स्थानदेवता एवं वास्तुदेवता भी तत्त्वरूपमें उस स्थानपर आते हैं । इन देवताओंके आगमनके कारण वायुमंडल चैतन्यमय बनता है । वास्तुमें रहनेवाले सभी सदस्योंको इसका लाभ होता है ।

    इस प्रकार यमतरंगोंके निकट आनेके कारण धनत्रयोदशीके दिन दीपका पूजन कर उसका यमदेवके लिए किया दान उन्हें अल्पावधिमें एवं सहजतासे प्राप्त होता है । परिणामस्वरूप अपमृत्युके लिए कारणभूत तरंगोंसे व्यक्तिकी रक्षा होती है ।

८. यमदीपदान करनेके संदर्भमें  सनातन आश्रम, पनवेलके संत प.पू. परशराम पांडे महाराजजी बताते हैं

        यम, मृत्यु एवं धर्मके देवता हैं । हमें सतत भान होना आवश्यक है, कि प्रत्येक मनुष्यकी मृत्यु निश्चित है । ऐसे भानसे मनुष्यके हाथों कभी बुरा कर्म अथवा धनका अपव्यय नहीं होता । यमदेवके लिए दीपदान कर कहें, कि हे यमदेव, इस दीप समान हम सतर्क हैं, जागरूक हैं ।जागरूकता एवं प्रकाशका प्रतीक यह दीप हम आपको अर्पित कर रहे हैं, इसको स्वीकार करें । प.पू. पांडेमहाराजजीद्वारा बताए अनुसार सदैव मृत्युका भान  रखकर हम जीवन बिताएंगे, तो हमसे अवश्यही धर्मपालन होगा ।

संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव व व्रत’

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