कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, बलिप्रतिपदाके रूपमें मनाई जाती है । इस दिन भगवान श्री विष्णुने दैत्यराज बलिको पातालमें भेजकर बलिकी अतिदानशीलताके कारण होनेवाली सृष्टिकी हानि रोकी । बलिराजाकी अतिउदारताके परिणामस्वरूप अपात्र लोगोंके हाथोंमें संपत्ति जानेसे सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गई । तब वामन अवतार लेकर भगवान श्रीविष्णुने बलिराजासे त्रिपाद भूमिका दान मांगा । उपरांत वामनदेवने विराट रूप धारण कर दो पगमेंही संपूर्ण पृथ्वी एवं अंतरिक्ष व्याप लिया । तब तीसरा पग रखनेके लिए बलिराजाने उन्हें अपना सिर दिया । वामनदेवने बलिको पातालमें भेजते समय वर मांगनेके लिए कहा । उस समय बलिने वर्षमें तीन दिन पृथ्वीपर बलिराज्य होनेका वर मांगा । वे तीन दिन हैं – नरक चतुर्दशी, दीपावलीकी अमावस्या एवं बलिप्रतिपदा । तबसे इन तीन दिनोंको ‘बलिराज्य’ कहते हैं ।
बलिप्रतिपदाका ऐतिहासिक महत्त्व, मनानेकी पद्धति – दृश्यपट (Video)
१.बलिराज्य
धर्मशास्त्र कहता है कि ‘बलिराज्यमें शास्त्रद्वारा बताए निषिद्ध कर्म छोडकर, लोगोंको अपने मनानुसार आचरण करना चाहिए ।’ अभक्ष्यभक्षण, अपेयपान (निषिद्ध पेयका सेवन) एवं अगम्यागमन; ये निषिद्ध कर्म हैं । इसीलिए इन दिनों लोग बारूद उडाते हैं (आतिशबाजी करते हैं); परंतु मदिरा नहीं पीते ! इसका योग्य भावार्थ समझकर हमें बलिप्रतिपदा मनानी चाहिए । इसीलिए पूर्वकालमें इन दिनों लोग मदिरा नहीं पीते थे !
शास्त्रोंसे स्वीकृति प्राप्त होनेके कारण परंपरानुसार लोग मनोरंजनमें समय बिताते हैं । परंतु आज इसका अतिरेक होता हुआ दिखाई देता है । लोग इन दिनोंको स्वैराचारके दिन मानकर मनमानी करते हैं । बडे मात्रामें पटाखे जलाकर राष्ट्रकी संपत्तिकी हानि करते हैं । कुछ लोग जुआ खेलकर पैसा उडाते हैं ।
२. बलिप्रतिपदा मनानेकी पद्धति
बलिप्रतिपदाके दिन जमीनपर पंचरंगी रंगोलीद्वारा बलि एवं उनकी पत्नी विंध्यावलीके चित्र बनाकर उनकी पूजा करते हैं । उन्हें मांस-मदिराका नैवेद्य दिखाते हैं । इसके पश्चात बलिप्रीत्यर्थ दीप एवं वस्त्रका दान करते हैं । इस दिन प्रातःकाल साभ्यंगस्नान करनेके उपरांत स्त्रियां अपने पतिकी आरती उतारती हैं । दोपहरमें ब्राह्मणभोजन एवं मिष्टान्नयुक्त भोजन बनाती हैं । इस पूजाका उद्देश्य है, कि बलिराजा वर्षभर अपनी शक्तिसे पृथ्वीके जीवोंको कष्ट न पहुंचाएं तथा अन्य अनिष्ट शक्तियोंको शांत रखें । इस दिन लोग नए वस्त्रावरण धारण कर समस्त दिन आनंदपूर्वक बिताते हैं । इस दिन रात्रिमें खेल, गायन इत्यादि कार्यक्रम कर जागरण करते हैं ।
३. गोवर्धनपूजन
इस दिन गोवर्धनपूजा करनेकी प्रथा है । भगवान श्रीकृष्णद्वारा इस दिन इंद्रपूजनके स्थानपर गोवर्धनपूजन आरंभ किए जानेके स्मरणमें गोवर्धन पूजन करते हैं । इसके लिए कार्तिक शुक्ल प्रतिपदाकी तिथिपर प्रात:काल घरके मुख्य द्वारके सामने गौके गोबरका गोवर्धन पर्वत उसपर दूर्वा एवं पुष्प डालते हैं । शास्त्रमें बताया है कि, इस गोवर्धन पर्वतका शिखर बनाएं । वृक्ष-शाखादि और फूलोंसे उसे सुशोभित करें । इनके समीप कृष्ण, इंद्र, गाएं, बछडोंके चित्र सजाकर उनकी भी पूजा करते हैं एवं झांकियां निकालते हैं । परंतु अनेक स्थानोंपर इसे मनुष्यके रूपमें बनाते हैं और फूल इत्यादिसे सजाते हैं । चंदन, फूल इत्यादिसे उसका पूजन करते हैं और प्रार्थना करते हैं,
गोवर्धन धराधार गोकुलत्राणकारक ।
विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव ।। – धर्मसिंधु
इसका अर्थ है, पृथ्वीको धारण करनेवाले गोवर्धन ! आप गोकुलके रक्षक हैं । भगवान श्रीकृष्णने आपको भुजाओंमें उठाया था । आप मुझे करोडों गौएं प्रदान करें । गोवर्धन पूजनके उपरांत गौओं एवं बैलोंको वस्त्राभूषणों तथा मालाओंसे सजाते हैं । गौओंका पूजन करते हैं । गौमाता साक्षात धरतीमाताकी प्रतीकस्वरूपा हैं । उनमें सर्व देवतातत्त्व समाए रहते हैं । उनके द्वारा पंचरस प्राप्त होते हैं, जो जीवोंको पुष्ट और सात्त्विक बनाते हैं । ऐसी गौमाताको साक्षात श्री लक्ष्मी मानते हैं । उनका पूजन करनेके उपरांत अपने पापनाशके लिए उनसे प्रार्थना करते हैं । धर्मसिंधुमें इस श्लोकद्वारा गौमातासे प्रार्थना की है,
लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता ।
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु ।। – धर्मसिंधु
इसका अर्थ है, धेनुरूपमें विद्यमान जो लोकपालोंकी साक्षात लक्ष्मी हैं तथा जो यज्ञके लिए घी देती हैं, वह गौमाता मेरे पापोंका नाश करें । पूजनके उपरांत गौओंको विशेष भोजन खिलाते हैं । कुछ स्थानोंपर गोवर्धनके साथही भगवान श्रीकृष्ण, गोपाल, इंद्र तथा सवत्स गौओंके चित्र सजाकर उनका पूजन करते हैं और उनकी शोभायात्रा भी निकालते हैं ।
४. ईश्वरीय कार्यके रूपमें जनताकी सेवा करते हुए देवत्वको प्राप्त बलिका स्मरण करें !
‘बलिप्रतिपदापर बलिकी पूजा करते हैं । बलिने राक्षस कुलमें जन्म लेकर भी अपने पुण्यकर्मसे वामनदेवकी कृपा प्राप्त की । उन्होंने ईश्वरीय कार्यके रूपमें जनताकी सेवा की । वे सात्त्विक वृत्तिके एवं दानी राजा थे । इस उदाहरणसे स्पष्ट होता है कि प्रत्येक मनुष्य आरंभमें अज्ञानवश बुरे कर्म करता है; परंतु ज्ञान एवं ईश्वरीय कृपाके कारण वह देवत्वको प्राप्त कर सकता है । ऐसी निर्भयतासे सत्यकर्मका पालन करनेपर उसे मृत्युका भय ही नहीं रहता । यम भी उसका मित्र एवं बंधु बन जाता है ।
इस दिन भगवानने वामन अवतारमें दिखा दिया कि भगवान सर्वस्व अर्पण करनेवालेका दास बननेके लिए भी तत्पर रहते हैं । बलि वास्तवमें तो असुर घरानेसे थे, फिर भी उनकी उदारताके कारण एवं उनके द्वारा भगवानकी शरणमें सर्वस्व अर्पणके कारण भगवानने उनका योग्य मार्गदर्शन कर उनके जीवनकी काया पलट दी एवं उनका उद्धार किया । उनके राज्यमें विद्यमान असुरवृत्तिके लिए पोषक भोगमय विचारोंको मिटाकर, उनके स्थानपर त्यागकी भावनाको पनपाकर, जनताको दैवीविचार देकर सुख एवं समृद्धिका जीवन प्रदान किया ।’ – प.पू. परशराम माधव पांडे महाराज, देवद, पनवेल.
(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव व व्रत’)