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कुंभमेलेका धार्मिक महत्त्व

सारिणी


१. पुण्यदायी

         कुंभपर्व अत्यंत पुण्यदायी होनेके कारण उस समय प्रयाग, हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्वर-नासिकमें स्नान करनेसे अनंत पुण्यलाभ होता है । इसलिए करोडों श्रद्धालु एवं साधु-संत इस स्थानपर एकत्रित होते हैं ।

अ. ‘कुंभमेलेके कालमें अनेक देवी-देवता, मातृका, यक्ष, गंधर्व तथा किन्नर भी भूमंडलकी कक्षामें कार्यरत रहते हैं । साधना करनेपर इन सबके आशीर्वाद मिलते हैं तथा अल्पावधिमें कार्यसिद्धि होती है ।

आ. ‘गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी एवं क्षिप्रा’ इन नदियोंके क्षेत्रमें कुंभमेलेका आयोजन किया जाता है । नदीके पुण्यक्षेत्रमें वास करनेवाले अनेक देवता, पुण्यात्मा, ऋषिमुनि, कनिष्ठ गण इस समय जागृत रहते हैं । इससे उनके आशीर्वाद मिलनेमें भी सहायता होती है ।

इ. इस कालमें किए पुण्यकर्मकी सिद्धि अन्य कालसे अनंत गुना अधिक होती है । इस कालमें कृत्य कर्मके लिए पूरक होता है तथा कृत्यको कर्मकी सहमति मिलती है ।

ई. कुंभमेलेके कालमें सर्वत्र आपतत्त्वदर्शक पुण्य तरंगोंका भ्रमण होता है । इससे मनुष्यके मनकी शुद्धि होती है तथा उसमें उत्पन्न विचारोंद्वारा कृत्य भी फलदायी होता है, अर्थात ‘कृत्य एवं कर्म’ दोनोंकी शुद्धि होती है ।’

– एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, कार्तिक कृष्ण पक्ष २, कलियुग वर्ष ५११४, ३१.१०.२०१२)

 

२. पापक्षालक

पवित्र तीर्थक्षेत्रोंमें स्नान कर पाप-क्षालन हो, इस हेतु अनेक श्रद्धालु कुंभपर्वमें कुंभक्षेत्रमें स्नान करते हैं ।

 

३. गंगास्नान

इन कुंभपर्वोंमें प्रयाग (गंगा), हरिद्वार (गंगा), उज्जैन (क्षिप्रा) एवं त्र्यंबकेश्वर-नासिकके (गोदावरीके) तीर्थोंमें गंगाजी गुप्त रूपसे रहती हैं । कुंभपर्वमें गंगास्नान धार्मिक दृष्टिसे लाभदायी है । इसलिए श्रद्धालु एवं संत कुंभमेलेमें स्नान करते हैं ।

३ अ. कुंभमेलेके समय सत्पुरुषोंद्वारा गंगास्नान करनेका कारण

कुंभमेलेमें सत्पुरुष गंगाजीमें स्नान करते हैं; क्योंकि उस समय अन्योंके स्नानसे अशुद्ध हुई गंगाजी सत्पुरुषोंकी शक्तिसे शुद्ध होती हैं । कुंभक्षेत्र एवं गंगा नदीका एक-दूसरेसे संबंध ! प्रयाग तथा हरद्वारके कुंभमेले प्रत्यक्ष गंगा नदीके तटपर ही होते हैं । त्र्यंबकेश्वर-नासिकका कुंभमेला गोदावरी नदीके तटपर होता है । गौतमऋषि गंगाको ‘गोदावरी’के नामसे त्र्यंबकेश्वर-नासिक क्षेत्रमें लाए थे । ब्रह्मपुराणमें कहा गया है कि विंध्य पर्वतके दक्षिणमें गंगाका गौतमी (गोदावरी) नाम पडा है । उज्जैनका कुंभमेला क्षिप्रा नदीके तटपर होता है । यह उत्तरवाहिनी पवित्र नदी जहांपर पूर्ववाहिनी होती है, उस स्थानपर प्राचीन कालमें गंगा नदीसे उसका संगम हुआ था । आज वहां गणेश्वर नामक शिवलिंग है ।  इस प्रकार सर्व कुंभक्षेत्रोंका इतिहास गंगानदीसे जुडा है ।

 

४. पितृतर्पण

गंगाजीका कार्य ही है ‘पितरोंको मुक्ति देना’ । इस कारण कुंभपर्वमें गंगास्नानसहित पितृतर्पण करनेकी धर्माज्ञा है । ‘वायुपुराण’में कुंभपर्व श्राद्धकर्मके लिए उपयुक्त बताया गया है ।

 

५. हिंदुओंका विश्वका सबसे बडा धार्मिक मेला

कुंभमेला एक प्रकारका धार्मिक मेला ही है । कुंभमेलेमें सर्व पंथ तथा संप्रदायोंके साधु-संत, सत्पुरुष तथा सिद्धपुरुष सहस्रोंकी संख्यामें एकत्रित होते हैं । करोडों श्रद्धालु भी कुंभपर्वमें देवदर्शन, गंगास्नान, साधना, दानधर्म, तिलतर्पण, श्राद्धविधि, संतदर्शन इत्यादि धार्मिक कृत्य करनेके लिए जाते हैं । करोडोंके जनसमूहकी उपस्थितिमें संपन्न होनेवाले कुंभक्षेत्रके मेले हिंदुओंका विश्वका सबसे बडा धार्मिक मेला है ।

 

६. संतसत्संग

कुंभमेलेमें भारतके विविध पीठोंके शंकराचार्य, १३ अखाडोंके साधु, महामंडलेश्वर, शैव तथा वैष्णव संप्रदायके, अनेक विद्वान, संन्यासी, संत-महात्मा एकत्रित आते हैं । इस कारण कुंभमेलेका  स्वरूप अखिल भारतवर्षके संतोंके सम्मेलनके समान भव्यदिव्य होता है । कुंभमेलेके श्रद्धालुओंको संतसत्संगका सबसे बडा अवसर उपलब्ध होता है ।

(संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – कुंभमेलेकी महिमा एवं पवित्रताकी रक्षा )

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