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शिवपिंडी पर बिल्वपत्र चढाने की पद्धति

अथर्ववेद, ऐतरेय एवं शतपथ ब्राह्मण, इन ग्रंथों में बिल्ववृक्ष का उल्लेख आता है । यह एक पवित्र यज्ञीय वृक्ष है । ऐसे पवित्र वृक्ष का पत्ता सामान्यतः त्रिदलीय होता है । यह त्रिदल बिल्वपत्र त्रिकाल, त्रिशक्ति तथा ओंकार की तीन मात्रा इनके निदर्शक हैं ।

१. शिवपिंडीपर बिल्वपत्र चढानेकी पद्धति तथा बिल्वपत्र तोडनेके नियम

         बिल्ववृक्ष में देवता निवास करते हैं । इस कारण बिल्ववृक्ष के प्रति अतीव कृतज्ञता का भाव रखकर उससे मन ही मन प्रार्थना करनेके उपरांत उससे बिल्वपत्र तोडना आरंभ करना चाहिए । शिवपिंडी की पूजा के समय बिल्वपत्र को औंधे रख एवं उसके डंठल को अपनी ओर कर पिंडी पर चढाते हैं । शिवपिंडी पर बिल्वपत्र को औंधे चढाने से उससे निर्गुण स्तरके स्पंदन अधिक प्रक्षेपित होते हैं । इसलिए बिल्वपत्र से श्रद्धालुको अधिक लाभ मिलता है । सोमवार का दिन, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी तथा अमावस्या, ये तिथियां एवं संक्रांति का काल बिल्वपत्र तोडने के लिए निषिद्ध माना गया है । बिल्वपत्र शिवजी को बहुत प्रिय है, अतः निषिद्ध समय में पहले दिन का रखा बिल्वपत्र उन्हें चढा सकते हैं । बिल्वपत्र में देवतातत्त्व अत्यधिक मात्रा में विद्यमान होता है । वह कई दिनोंतक बना रहता है ।

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रंच त्रयायुधम् ।
त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ।। – बिल्वाष्टक, श्लोक १

अर्थ : त्रिदल (तीन पत्र) युक्त, त्रिगुण के समान, तीन नेत्रों के समान, तीन आयुधों के समान एवं तीन जन्मों के पाप नष्ट करनेवाला यह बिल्वपत्र, मैं शंकरजी को अर्पित करता हूं ।

२. शिवजी को त्रिदल बेल चढाने के विविध मनोवैज्ञानिक कारण

अ. ‘सत्त्व, रज एवं तम से उत्पत्ति, स्थिति एवं लय की निर्मिति होती है । कौमार्य, यौवन एवं जरा (वृद्धावस्था), इन अवस्थाओं के प्रतीकस्वरूप शंकरजी को बिल्वपत्र अर्पित करें अर्थात त्रिगुणों की इन तीनों अवस्थाओं से परे जाने की इच्छा प्रकट करें; क्योंकि त्रिगुणातीत होने से ही ईश्वर मिलते हैं ।’ (संदर्भ : अज्ञात)

आ. बेल एवं दूर्वा के समान गुणातीत अवस्था से गुण को लेकर कार्य करने से, वह कार्य कर के भी अलिप्त रह पाना : ‘शिवजी को प्रिय है ‘त्रिदल बेल’ । अर्थात जो सत्त्व, रज एवं तम, अपने तीनों गुण शिवजी को समर्पित कर भगवत्कार्य करता है, उससे शिव संतुष्ट होते हैं । श्रीगणेश को भी त्रिदल दूर्वा स्वीकार्य है । गुणातीत अवस्था में रहते हुए, बेल एवं दूर्वा अपने गुणोंद्वारा भगवत्कार्य करते हैं । इसीलिए भक्तों को वे उपदेश करते हैं, ‘तुम भी गुणातीत होकर भक्तिभाव से कार्य करो । गुणातीत अवस्था से गुण को लेकर कार्य करनेसे, वह कार्य करके भी अलिप्त रहोगे ।’ – प.पू. परशराम माधव पांडे, पनवेल.

विवरण : सर्वसाधारण व्यक्ति के लिए निर्गुण, निराकार की उपासना कठिन है । इसलिए बेल एवं दूर्वा जैसी गुणातीत सामग्री से सगुण भक्ति करते हुए, भक्त के लिए सगुण से निर्गुण की ओर अग्रसर होना सरल हो जाता है ।

३. शिवपिंडी पर बेल चढाने की पद्धति से संबंधित अध्यात्मशास्त्र

अ. तारक अथवा मारक उपासना-पद्धति के अनुसार बिल्वपत्र कैसे चढाएं ?

बिल्वपत्र, तारक शिव-तत्त्व का वाहक है, तथा बिल्वपत्र का डंठल मारक शिव-तत्त्व का वाहक है ।

  • १. शिव के तारक रूप की उपासना करनेवाले : सर्वसामान्य उपासकों की प्रकृति तारक स्वरूप की होनेसे, शिव के तारक रूप की उपासना करना ही उनकी प्रकृति से समरूप होनेवाली तथा आध्यात्मिक उन्नति के लिए पोषक होती है । ऐसे लोगों को शिव के तारक तत्त्व से लाभान्वित होने के लिए बिल्वपत्र का डंठल पिंडी की दिशा में और अग्रभाग अपनी दिशा में रखते हुए चढाएं । (बिल्वं तु न्युब्जं स्वाभिमुखाग्रं च ।)
  • २. शिव के मारक रूप की उपासना करनेवाले : शाक्तपंथीय शिव के मारक रूप की उपासना करते हैं ।
    • अ. ये उपासक शिव के मारक तत्त्व का लाभ लेने हेतु बिल्वपत्र का अग्रभाग देवता की दिशा में और डंठल अपनी दिशा में कर चढाएं ।
    • आ. पिंडी में दो प्रकार के पवित्र कण होते हैं – आहत (पिंडी पर सतत गिरनेवाले जल के आघात से उत्पन्न) नाद के ± अनाहत (सूक्ष्म) नाद के । ये दोनों पवित्र कण एवं चढाए हुए बिल्वपत्र के पवित्रक, इन तीनों पवित्र कणों को आकर्षित करने के लिए तीन पत्तों से युक्त बिल्वपत्र शिवजी को चढाएं । कोमल बिल्वपत्र आहत (नादभाषा) एवं अनाहत (प्रकाशभाषा) ध्वनि के एकीकरण की क्षमता रखते हैं । इन तीन पत्तोंद्वारा एकत्र आनेवाली शक्ति पूजक को प्राप्त हो इस उद्देश्य से बिल्वपत्र को औंधे रख एवं उसका डंठल अपनी ओर कर बिल्वपत्र पिंडी पर चढाएं । इन तीन पवित्रकों की एकत्रित शक्ति से पूजक के शरीर में त्रिगुणों की मात्रा घटने में सहायता मिलती है ।

आ. बिल्वपत्र चढाने की पद्धति के अनुसार व्यष्टि एवं समष्टि स्तर पर होनेवाला शिवतत्त्व का लाभ

बिल्वपत्र का डंठल पिंडी की ओर तथा अग्र (सिरा) अपनी ओर कर जब हम बिल्वपत्र चढाते हैं, उस समय बिल्वपत्र के अग्र के माध्यम से शिवजी का तत्त्व वातावरण में अधिक पैâलता है । इस पद्धति के कारण समष्टि स्तर पर शिवतत्त्व का लाभ होता है । इसके विपरीत बिल्वपत्र का डंठल अपनी ओर तथा अग्र पिंडी की ओर कर जब हम बिल्वपत्र चढाते हैं, उस समय डंठल के माध्यम से शिवतत्त्व केवल बिल्वपत्र चढानेवाले को ही मिलता है । इस पद्धति के कारण व्यष्टि स्तर पर शिवतत्त्व का लाभ होता है ।

इ. बिल्वपत्र को औंधे क्यों चढाएं ?

शिवपिंडी पर बिल्वपत्र को औंधे चढाने से उस से निर्गुण स्तर के स्पंदन अधिक प्रक्षेपित होते हैं, इसलिए बिल्वपत्र से श्रद्धालु को अधिक लाभ मिलता है । शिवजी को बेल ताजा न मिलने पर बासी बेल अर्पित कर सकते हैं; परंतु सोमवार का तोडा हुआ बेल दूसरे दिन अर्पित नहीं करते हैं ।

४. बेल के त्रिदलीय पत्ते की सू्क्ष्म-स्तरीय विशेषताएं दर्शानेवाला चित्र


अ. चित्र में अच्छे स्पंदन : ४ प्रतिशत’ – प.पू. डॉ. जयंत आठवले

आ. ‘बिल्वपत्र के त्रिदलीय पत्ते में स्पंदनों की मात्रा : शिवतत्त्व ५ प्रतिशत, शांति ३ प्रतिशत, चैतन्य (निर्गुण) ३ प्रतिशत, शक्ति (मारक) २.२५ प्रतिशत

इ. अन्य सूत्र : बेल के एक पूर्ण पत्ते में ३ उपपत्ते अंतर्भूत होते हैं । इसलिए यहां पर पूर्ण पत्ते का उल्लेख ‘त्रिदलीय पत्ता’ ऐसा किया है ।

  • १. बेल के त्रिदलीय पत्ते की ओर देखने से मुझे उसमें ध्यानस्थ शिवजी के अर्धोन्मिलित नेत्र दिखाई दिए तथा बेल के त्रिदलीय पत्तेमें से ऊपरी (उप)पत्ते में शिवजी का तृतीय नेत्र दिखाई दिया ।
  • २. सूक्ष्म-ज्ञानसंबंधी परीक्षण करते समय मुझे सूक्ष्म से एक दृश्य दिखा, ‘एक ऋषि बेल के वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ बैठकर उपासना कर रहे हैं एवं उनके समक्ष की शिवपिंडी पर बेल के पत्तों की बौछार हुई ।’’
    – कु. प्रियांका लोटलीकर

ई. सूक्ष्म-ज्ञानसंबंधी परीक्षण

  • १. ‘ऐसा लगा कि बिल्वपत्र त्रिगुणात्मकता का प्रतीक है ।
  • २. शिवतत्त्व की अनुभूति : बिल्वपत्र से बहुत शीतल तरंगें प्रक्षेपित हो रही थीं । इससे शांति के स्पंदनों की जबकि पत्र के बाह्य भाग में शक्ति के ऊर्जात्मक स्पंदनों की अनुभूति हो रही थी । ये दोनों अनुभूतियां बिल्वपत्र में विद्यमान शिवतत्त्व के कारण हुर्इं ।
  • ३. बिल्वपत्र के कारण ध्यान लगने में सहायता मिलना : ऐसा अनुभव हुआ कि बिल्वपत्र के डंठल से वातावरण में चैतन्य के स्पंदन प्रक्षेपित हो रहे थे और इसी कारण वे ध्यान लगने में (मन के एकाग्र होनेमें) सहायक हैं ।
  • ४. अनाहत नाद की अनुभूति होना : मेरे मन को अनाहत नाद का भान हो रहा था तथा वह नाद सूक्ष्म से भी सुनाई दे रहा था ।’
    – कु. प्रियांका लोटलीकर, रामनाथी, गोवा.

५. स्वास्थ्य की दृष्टि से बेल के लाभ

अ. आयुर्वेद के कायाकल्प में त्रिदलरस-सेवन को महत्त्व दिया गया है ।

आ. बेलफल को आयुर्वेद में अमृतफल कहते हैं । ऐसा कोई भी रोग नहीं, जो बेल से ठीक नहीं हो । यदि किसी परिस्थिति में औषधि न मिले, तो बेल का प्रयोग करना चाहिए; केवल गर्भवती स्त्री को बेल न दें, क्योंकि उससे गर्भपात होने की संभावना होती है ।

संदर्भ : भगवान शिव (भाग २) शिवजी की उपासना का शास्त्रोक्त आधार

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