महाशिवरात्रिपर कार्यरत शिवतत्त्वका अधिकाधिक लाभ लेने हेतु शिवभक्त शिवपिंडीपर अभिषेक भी करते है । इसके रुद्राभिषेक, लघुरुद्र, महारुद्र, अतिरुद्र ऐसे प्रकार होते हैं । रुद्राभिषेक अर्थात रुद्रका एक आवर्तन, लघुरुद्र अर्थात रुद्रके १२१ आवर्तन, माहारुद्र अर्थात ११ लघुरुद्र एवं अतिरुद्र अर्थात ११ महारुद्र होते है ।
१. शिवजीका अभिषेक करनेका महत्त्व
अ. शिव-पार्वतीको ‘जगत
पितरौ’, अर्थात ‘जगतके माता-पिता’ मानते हैं । अभिषेकपात्रसे गिरनेवाली संततधाराके कारण पिंडी एवं अरघा नम रहते हैं । अरघा योनिका प्रतीक है । जगन्माताकी योनि निरंतर नम रहना, शक्तिके निरंतर कार्यरत होनेका प्रतीक है । शक्ति शिवको कार्यान्वित करनेका कार्य करती है । शिव कार्यान्वित होना अर्थात शिवका निर्गुण तत्त्व सगुण तत्त्वमें प्रकट होना । अभिषेक करनेवालेको इस प्रकार शिवकी सगुण तरंगोंका लाभ मिलता है ।
आ. जलकी धारा
पिंडीमें शिव-शक्ति एकत्रित होनेके कारण प्रचंड ऊर्जा उत्पन्न होती है । इस ऊर्जाका पिंडीके कणोंपर एवं दर्शनार्थियोंपर कोई प्रतिकूल परिणाम न हो, इसलिए पिंडीपर निरंतर पानीकी धारा पडती रहनी चाहिए । पानीकी इस धारासे खर्ज स्वरमें सूक्ष्म ओंकार (ॐ, निर्गुण ब्रह्मका वाचक) उत्पन्न होता है । वैसे ही मंत्रकी निरंतर धार पडते रहनेसे कालपिंड खुल जाता है, अर्थात जीव निर्गुण ब्रह्मतक पहुंच जाता है ।
२. प्रकार
शिवजीको ‘रुद्र’ मानकर अभिषेक करते हैं । रुद्र यजुर्वेदमें है एवं इसके दो प्रकार हैं – नमकार (नमक) एवं चमकार (चमक) । नमकारमें ‘नमः’ एवं चमकारमें ‘चमः’ शब्द अधिक आता है । इस अभिषेकमें रुद्र अध्यायका पाठ करते हैं । ‘रुद्र’ अथवा ‘रुद्राध्याय’ के नामसे प्रचलित मंत्रोंका समूह कृष्णयजुर्वेदका भाग है । रुद्र, एकादशनी, लघुरुद्र, महारुद्र, अतिरुद्र, ये रुद्रके पारायण हैं ।
अ. रुद्रका एक आवत्र्तन
एक ब्राह्मण बैठकर रुद्रका एक पारायण करे, तो रुद्रका एक ‘आवर्तन’ होता है । इस (एक आवर्तन में) में नमकके ११ अनुवाक एवं चमकके ११ अनुवाक बोलते हैं ।
आ. एकादशनी
अभिषेक करते समय रुद्रका ग्यारह बार पठन करनेसे एक ‘एकादशनी’ होती है । यह एक अथवा ग्यारह लोग करें, तब भी चलता है । एकादशनी करते समय नमकके ग्यारह अनुवाक बोलनेके उपरांत चमकका एक अनुवाक बोला जाता है । पुन: ग्यारह अनुवाक बोलकर चमकका दुसरा अनुवाक बोला जाता है । प्रत्येक बार नमकके ग्यारह और चमकका एक अनुवाक ऐसा अंतिम चमकतक किया जाता है ।
इ. लघुरुद्र
ग्यारह ब्राह्मण रुद्रके ग्यारह आवर्तन करें, तो उसे ‘लघुरुद्र’ कहते हैं । लघुरुद्रमें रुद्रके १२१ आवत्र्तन होते हैं । यह आवर्तन करते समय ग्यारह बार नमक बोलनेके उपरांत ग्यारह बार पहला चमक, पुनः ग्यारह बार नमक बोलकर ग्यारह बार दूसरा चमक ऐसा अंतिम चमकतक बोला जाता है ।
ई. महारुद्र
ग्यारह लघुरुद्रका एक महारुद्र होता है । महारुद्रमें रुद्रके १३३१ आवर्तन होते हैं ।
उ. अतिरुद्र
ग्यारह महारुद्रका एक अतिरुद्र होता है । अतिरुद्रमें रुद्रके १४६४१ आवर्तन होते हैं ।
३. महाशिवरात्रिपर शिवपिंडी-अभिषेकका ‘सूक्ष्म-ज्ञानसंबंधी परीक्षण’
२६.२.०६ को दिनमें ८.१५ से १० के मध्य वेरीसुर्ल, गोवा स्थित शिवपिंडी पर सनातनके साधक-पुरोहित श्री. दामोदर वझेने अभिषेक किया । उस समय सनातन की साधिका कु. मधुरा भोसलेद्वारा किया गया सूक्ष्म-ज्ञानसंबंधी परीक्षण प्रस्तुत है ।
प्रातः ६.४५ : मंदिरमें अत्यधिक शीतलता अनुभव हो रही थी एवं निर्गुण तत्त्व अधिक मात्रामें प्रतीत हो रहा था ।
दिनमें ८.३० : श्री गणपतिपूजन जारी था । मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि ‘जिस नारियलमें श्री गणपतिका आवाहन किया गया है, उसमें विद्यमान गणेशतत्त्व शिवपूजन हेतु निर्गुणसे सगुणमें साकार हो रहा है ।’ नारियलसे लाल रंगके प्रकाशकिरण शिवपिंडीकी दिशामें धीरे-धीरे प्रक्षेपित होते दिखाई दिए । उन किरणों का स्पर्श अत्यंत कोमल था और वे नम्रता और आदरपूर्वक शिवचरणोंमें सर्मिपत हो रहे थे । यह प्रक्रिया देखते समय मेरे नेत्रोंको शीतलता अनुभव हो रही थी ।
दिनमें ८.४५
अ. मंदिरकी शीतलता घटकर उष्णता (शक्ति) अनुभूत होने लगी । शिवका सगुण तत्त्व अधिक मात्रामें अनुभूत होने लगा ।
आ. मंदिरके गर्भगृहके निकटके द्वारपाल (मूर्ति) सात्त्विक दिखाई दे रहे थे । ऐसा प्रतीत हुआ कि गर्भगृहकी दाहिनी ओर स्थित द्वारपालका भाव जागृत हो रहा है ।
इ. पिंडीपर जलकी धार संथ गतिसे पड रही थी । उस समय आंखें मूंदे ध्हृाानस्थ शिवके दर्शन हुए । ऐसा अनुभव हो रहा था कि उनकी जटाओंमें ‘आकाशसे गंगा अवतरित हो रही है ।’ शिवपिंडीपर अभिषेक करते समय ऐसा अनुभव हुआ कि शिवके जटाधारी मस्तकपर अभिषेक हो रहा है ।
ई. शिवपिंडीके निकट स्थित पीतलका नाग बीचमें ही जीवित होकर आंखें मूंदे आनंदसे डोलता दिखाई दिया ।
दिनमें ९.१४ : शिवपिंडीके स्थानपर पीतांबर धारण किए श्रीकृष्णके चरणोंके स्पष्ट दर्शन हुए ।
दिनमें ९.२० : जब शिवपिंडीपर अभिषेक हो रहा था, तब मुझे यह दृश्य दिखाई दिया, ‘पत्र-पुष्पोंके बीच एक शिवपिंडी दिखाई दी । उसपर एक गाय दूधकी धार छोडकर अभिषेक कर रही थी । गायकी आंखोंमें भावाश्रु दिखाई दे रहे थे ।’ पूजा समाप्त होनेके उपरांत मंदिरके पुजारीने बताया, ‘‘यह शिवलिंग स्वयंभू है । मंदिरके निकट ही एक नदी है । निकटके गांवसे एक गाय प्रतिदिन नदी पार कर आया करती थी तथा शिवपिंडीपर दूधकी धार छोडती थी ।’’
दिनमें ९.३५ : सनातनके साधक-पुरोहित श्री. दामोदर वझे जब शिवपिंडीपर बेल चढा रहे थे । उस समय ऐसा लगा जैसे ‘वे शिवके चरणोंमें बेल चढा रहे हैं ।’ शिवजीके चरणोंको वे आदरपूर्वक एवं कोमल स्पर्श कर रहे थे । इस स्पर्शसे शिवजी ध्यानावस्थासे बाहर आने लगे । सर्वप्रथम उनके मूंदे हुए नेत्रोंमें हलचल होती प्रतीत हुई । तदुपरांत उन्होंने धीमे-धीमे पलवेंâ उठार्इं । उनके नेत्र एक दशांश खुले थे । ऐसा प्रतीत हुआ कि, उनके खुले हुए नेत्रोंसे वातावरणमें सात्त्विकता, चैतन्य, आनंद एवं शांतिकी तरंगोंका प्रक्षेपण हो रहा है । शिवपिंडी देखते समय शीतलता एवं आनंदका अनुभव हो रहा था । शिवपिंडीसे संपूर्ण गर्भगृहमें चमकीली पीली तेजस्वी प्रकाशकिरणोंका बडी मात्रामें; परंतु धीमे-धीमे प्रक्षेपण हो रहा था ।
दिनमें ९.४५ : भगवानको दिखाई गई कर्पूर-आरती ग्रहण करते समय ऐसा अनुभव हुआ कि मेरी हथेलियोंको शक्ति प्राप्त हो रही है । आरती ग्रहण किए हुए हाथको सिर, नेत्रों एवं गर्दनपर फेरनेपर थकान भी न्यून हो गई ।
दिनमें ९.५० : शिवपिंडीके निकट स्थित दो पीतलके सर्प पहलेकी अपेक्षा अधिक तेजस्वी दिखाई देने लगे एवं ऐसा प्रतीत हुआ कि शिवजीके प्रति उनका भाव भी पूर्ण जागृत हो गया है ।
दिनमें ९.५५ : शिवपिंडीकी पूजा पूर्ण होनेपर गर्भगृहके बार्इं ओर स्थित द्वारपालकी मूर्तिमें भाव जागृत हो गया तथा पूजाके दो घंटे उपरांत भी भावावस्था प्रतीत हो रही थी । मूर्तिके चरण देखते समय मेरा भाव जागृत हो रहा था । वे मुरलीधर श्रीकृष्णके
चरणोंके समान दिखाई दिए – दाहिना पैर बाएं पैरके निकट टिका हुआ ।
दिनमें १०.०० : शिवालयमें भी श्रीविष्णुका अस्तित्व कुछ मात्रामें प्रतीत हो रहा था । श्रीराम अथवा श्रीकृष्णके मंदिरमें जितना आनंद अनुभव होता है, उतना ही शिवमंदिरमें भी हो रहा था । (अन्य समय मुझे शिवमंदिरमें शक्ति अधिक अनुभव हो रही थी ।)’
कु. मधुरा भोसले, सनातन संस्था.
संदर्भ : भगवान शिव (भाग २) शिवजी की उपासना का शास्त्रोक्त आधार